दो बैलों की कथा

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झूरी के दू गो बैल थे, हीरा और मोती। मोती बड़ा सज्जन बैल था, झूरी उसकी नाद में जो डाल दे, वह उसी को करम का लिखा बूझ कर खा लेता और मस्त रहता था। पर हिरवा उच्च शिक्षित बैल था,एम्मे पास। झूरी के यहां आने के पहले वह राजधानी के सबसे निमनके पशु विश्वविद्यालय में लात मारने का भोकेसनल टरेनिंग कर चूका था। सब मिला जुला के वह एक प्रगतिशील बैल था। जब भी झूरीया उसके नाद में भूसा डालता तो वह नदवे उलट देता। जब तक झूरी उसकी नाद में शुद्ध सरसो की खरी नही डालता तब तक हीरा नाद में मुह नही डालता। हीरा में एक आदत यह भी थी कि अपनी नाद का लेदी भले छोड़ दे, पर मोती की नाद में मुह जरूर डालता था। मोती कभी डरते डरते हीरा को मना करता तो हीरा कहता- मैं खाने नही आया, मैं तो ई जाँचने आया हूँ कि झुरिया तुम्हरे नाद में बढ़िया लेदी डालता है कि नहीं, अगर झूरी ने तुमको बढ़िया काजू किसमिस नही खिलाया तो हम तुम्हारे लिए अनसन करूँगा। मोती बेचारे के पास इतनी हिम्मत तो थी नही कि हीरा की बात काटे, वह जानता था कि अगर ज्यादा तिगिड़ बिगिड़ किया तो हिरवा एक्के लात में मेरा थुथुर फोड़ देगा। इस तरह हिरवा हमेशा मोती के हिस्से का चोकर खरी खा जाता था।

हिरवा में एक और बड़ी उटपटांग आदत थी। वह मोती से हमेशा चंदा मांगता रहता था। वह सीधे साधे मोती को कहता कि हमारा मालिक चोर है। वह हमलोगों को बढ़िया काजू किसमिस नही खिलाता है। तुम अपना हिस्सा का चोकर हमको चंदा में दे दोगे तो हम खा के तनिक मजबूत हो जायेंगे। और तब हम मालिक का लाद फाड़ देंगे। इस तरह मोती बेचारे से उसके हिस्से का चोकर लेकर बड़े प्रेम से हिरवा खा जाता था।
इतने के बाद भी हिरवा खुश नही था। वह दिन भर झूरी को गरियाता रहता था। वह हमेशा झूरी पर खाली भूसा खिलाने का आरोप मढ़ता रहता था।
मोटा मोटी बात यह थी कि हीरा खाली चोकर और खरी दाना खाता था, जबकि मोती बेचारे छूँछे भूसा पर दिन काट रहे थे।
हिरवा दिन पर दिन मोटाते जाता था, मोतिया दिन पर दिन दुबराते जाता था।

झूरी था तो किसान पर बड़ा अड़ियल था। बड़े बड़े बिगड़ैल बैलों को पल भर में ठीक करने के लिए जवार भर में मशहूर था। बैलों को पीटने वाला सटका के आगे नोखी वाला काँटी ठोकने वाला पहला हलवाहा था वह, जब भी कोई बैल ज्यादा उछल कूद या हर जोतने में तिगिड़-बिगिड़ करता तो हिरा सटका के खोभना से उ खोभान खोभता कि बैल ससुर पिनपिना के रह जाते और फिर महीनों तक बदमासी करने की हिम्मत नही होती। हीरा-मोती के पहले भी वह कई जोड़ी बैलों को लंगड़ी भोजपुरी का तेरहवां पाठ पढ़ा चूका था। झूरी जब हीरा-मोती की जोड़ी को सोनपुर के मेला से खरीद कर लाया तो चार दिन में ही बुझ गया कि हिरवा पक्का नेता है। उसने मन ही मन सोचा कि इसकी खंचड़ाई तो पल भर में ही सुधार देंगे, पर पाहिले तनिक इसकी औकात तो देख लें। वह ताड़ना चाहता था कि हिरवा चाइनीज टाइप है कि ठेंठ देहाती माल है। चार छः माह में झूरी समझ गया कि इसमें चाइनीज भेराइटि वाला गुण नही है, यह ठेंठ दिल्ली मार्का देहाती माल है।
अढ़ाई महीने बीत गए। अब झूरी को बुझा गया कि हिरवा को सबक सिखाने का समय आ गया। पर झूरी चाह रहा था कि हीरा को उसकी बेईमानी की सजा मोतिये दे। झूरी अपने सर पर कलंक का टीका नही लगवाना चाहता था।

एक दिन साँझ की बेला झूरी हीरा-मोती के पास आया और पुचकार के पूछा- काहें जी हीरा, तुमको भूसा बिल्कुल पसंद नही है?
हिरवा गरजा- बिल्कुल नहीं, तुम हमेशा हमारा हक मारते रहते हो। किसी दिन हम तुम्हारा लाद फार देंगे।
झुरिया मुस्किआया, और जिलेबी के रस नियर मीठ बोली में बोला- अच्छा तो आज से भूसा बन्द। अब हम तुम दोनों को कपिला पशु आहार खिलांगा।
हिरवा तुरंत तो कुछ समझ नही पाया, पर रात को जब चैन से सूता तब उसको बुझाया, आहि रे देवा, ई झुरिया तो बड़ी चोख खोभना से खोभ दिया है। ई तो जेतना दुखायेगा, ओ से दूना परपरायेगा और चार गुना बिसबिसायेगा। हिरवा मने मन बूझ गया कि अब तो काजू किसमिस दिलवाने के नाम पर कवनो चंदाबाजी नही चलेगी। ऊपर से कपिला पशु आहार खा के मोतिया भी मजबूत हो जायेगा तब डेरायेगा भी नहीं। इस तरह तो दोकाने चौपट हो जायेगी।

अगले दिन बिहाने बिहाने हिरवा हल्ला किया कि झूरी हमारा सारा भूसा खा गया। उ हमारा भूसा चुरा के कपिला पशु आहार खिला रहा है। कपिला पशु आहार खा के तो हमारा लिबर गोंय गोंय करने लगेगा, हमारा पेट में बरेन हेमरेज हो जायेगा। हम किरांति करेंगे। अगर तीन दिन में झूरी फैसला वापस नही लिया तो हम देश भर में आग बो देंगे।

इधर मोतिया को अब जा के सुकून मिला था। उ देखा था कि कइसे जनम से ले कर आज तक उसके हिस्सा का चोकर हिरवा खाता रहा है। उ बुझ गया कि अब धांधली बन्द हो जाने के डर से हिरवा ई लफड़ा लगाया है। उ अब मुस्कुरा के मजा लेने लगा। हमेशा भूसा के भरोसे जीने वाले मोती को भूसा छोड़ने पर थोडा कष्ट तो होइए रहा था, पर हिरवा की बेचैनी देख कर उसको एतना मजा आ रहा था, कि उ सब कष्ट भूल गया था। उ अब चुपचाप तमाशा देखने लगा। इधर हिरवा की बेचैनी मिनट मिनट पर बढ़ रही थी। अगले दिन उ दोनों का नाद उलट दिया, पशु आहार में गोबर छेर दिया, झूरी को खुलेआम गारी देने लगा।

दो दिन बीतते बीतते हालत यह हो गयी कि हिरा का उत्पात देख कर सबको बुझाने लगा कि अब झूरी को अपना फैसला वापस लेना पड़ेगा।
अब मोतिया को गुस्सा आने लगा। उ पहली बार आजादी का अनुभव कर रहा था, पर अब उसे बुझाया कि हिरवा फिर गुलाम बना के ही मानेगा। इधर आजादी के एहसास से कमजोड़ मोती में भी बल आ गया था।

मोती चुपचाप हिरा के पास गया। हिरा उत्पात मचा रहा था। उ सारदुआर गोबर से भर दिया था। मोती ने दम साध के और सारा ताकत लगा के एक्के बार अपना दुनु सिंघ हीरा में पेट में अइसे घुसेड़ दिया कि उ चार ढीमुलिया खा गया। पल भर में हिरवा के गोबर से दुआर भर गया। अब हीरा जमीन पर छितराया था अउर मोती उसकी छाती पर लात रखे गर्व् से मुस्किया रहा था।

उधर झूरी चुपचाप सारा खेल देख कर मुस्कियाते हुए कपिला पशु आहार किनने खातिर पइसा जोगड़िया रहा था।

लेखक
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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