दीआ-बाती : कक्षा 6 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक

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बात दीया-बाती के : मातृभाषा, माई आ मातृभूमि के समाने महत्वपूर्ण आ बन्दनीय बा। आदमी जब धरती पर आपन पैर राखेला त मातृभाषा का माध्यम से ही कुछ कहेला, सुनेला भा समझे ला। ओकरा कवनो आवश्यकता के पूर्तियों एकरे माध्यम से मँगला पर हो ला। चाहे कवनो भाषा में हम पढ़ी भा सुनी, पहिले मने-मने मातृभाषा में ओकर अनुवाद करीले तबहीं हमरा समझ में आवेलागांधी जी मातृभाषा के उल्लेख करत कहले रहीं कि जबतक मातृभाषा गुजराती माध्यम से पढली तब तक जल्दी आ आसानी से उनका ज्ञानार्जन भइल। जब उच्च विद्यालय मे कुल्हि विषय अंगरेजी में पढ़े के पड़ल त काफी कठिनाई के सामना करे के पड़ल। साफ-साफ कहलें कि जवन इतिहास, भूगोल, गणित आदि के ज्ञान अंगरेजी माध्यम से चार वर्ष में प्राप्त कइनी गुजराती में एके वर्ष में प्राप्त कर लिहतीं।

एह से बचपने से मातृभाषा के पढाई-लिखाई जरूरी बा। एह पुस्तक में छात्रन के बौद्धिक आ भाषिक क्षमता तथा उनन्ह के रूचि के ध्यान में राख के पाठन के चयन कइल गइल बा। एह मे गद्य आ पद्य दूनो विद्या के लोक गाथा, जीवनी, निबन्ध, कहानी, (दूसर भाषा से अनुदित) यात्रावृतान्त, सांस्कृतिक पर्व त्योहार भक्ति पद देश बन्दना, बुझउअल, प्रकृति वर्णन, राष्ट्रीय भाव जगावे के सन्देश के स्थान दिहल गइल बा।

दीआ-बाती : कक्षा 6 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक
दीआ-बाती : कक्षा 6 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक

भोजपुरी के मानक स्वरूप उभर चुकल बा । हमनी कई गो औपचारिक आ अनौपचारिक बैठकन में विचार-विमर्श के बाद तय कइनी कि “अब भोजपुरी बोली भर नइखे रह गइल । ई खाली गीत-गवनई के भाषा नइखे रह गइल । अब ई विचार आ शास्त्र के भाषा बन चुकल बिया । जल्दीए ई शासन-प्रशासन, ज्ञान-विज्ञान आदि के भी भाषा बनी । अइसन स्थिति में एकरा खातिर देवनागरी लिपि के कवनों अक्षर, संयुक्ताक्षर भा मात्रा छोड़ल ठीक नइखे । एह से अभिव्यक्ति में कठिनाई होई ।

जवान चीज खातिर भोजपुरी में शब्द बा नि:संदेह ओकरा के अपनावे के चाही बाकिर हिंदी, अंग्रेजी आ आउर कवनों भाषा के शब्दन के भोजपुरियावे के फेर में ओकर वर्तनी बिगाड़ल ठीक नइखे। एह से अराजकता पैदा हो जाई । जरूरत पड़ला पर दोसरा भाषा के शब्द बेहिचक अपनावे के चाहीं । एह से भोजपुरी समृद्ध होई । बंगला, मैथिली इहे कइले बा । एह से भोजपुरी के विकास होई । अंग्रेजी के समृद्धि के एगो बड़हन वजह इहो बा कि अपना जरूरत के मुताबिक कवनो भाषा के शब्दन के अपना लेवे ले । शुद्धितावादी दृष्टिकोण से हिंदी के बहुत नुकसान भइल बा । हमनी के खाँटी भोजपुरी के आग्रह से बचे के चाहीं। जब भोजपुरी के हर तरह के अभिव्यक्ति के माध्यम बनावे के बा, त मुख सुख, स्थानीय प्रयोग आदि के आग्रह से उठे के होई । अंग्रेजी, हिंदी सहित सभ भषन के स्थानीय रूप बावे बाकिर ओह हिसाब से लिखल ना जाला । मौखिक भाषा आ लिखित भाषा में हमेशा अंतर रहेला ।

चूँकि भाषा सामाजिक संपत्ति हवे, ई समाज में जनम लेले आ समाजे में विकसित होले । एह से समाज में आइल बदलाव के हिसाब से भोजपरी के अपना के ढाले के पडी। एह घडी कई गो कारण से एक जगे से दोसर जगे के आवागछ, संपर्क बढ़ रहल बा । एकर प्रभाव भाषा पर भी पड़ रहल बा ।

भाषा में बदलाव होत रहेला। एकरा के रोकल नईखे जा सकत । भोजपुरी में जवन बदलाव आ रहल बा ओकर स्वागत करे के चाहीं । हरेक भाषा के एगो ग्राम रूप (cocknex) आ एगो शिष्ट होला भोजपुरी खाली गँवई लोग के भाषा नइखे रह गइल ।”

गद्य विद्या में लोक कथा का रूप में सुशीला पांडेय के ‘बाँट-बखरा’ का माध्यम से वेइमानी ना करे के सन्देश दिहल गइल बा। गाँव में सद्भाव के प्रसार में पर्व -त्योहार के भूमिका ‘गांव के त्योहार’, आपसी सदभाव’ में दर्शावल बा। ‘सोनपुर मेला के सैर’ जहवाँ यात्रा-वृतान्त बा उहँवे हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार रामवृक्ष बेनीपुरी के ‘गोशाला, कहानी के अनुवाद आदमी में आदमीयत उत्पन्न करे के कोशिश के साथे गरीब अक्ल के जिनगी सामाजिक सद्भाव के प्रतीक बा।

पेड़-पौधा हमार जिनगी पर्यावरण से सम्बधित पाठ बा त भोजपुरी क्षेत्र के महान आदमी भारत के पहिल राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के प्रेरक जीवनी छात्र लोगन के प्रेरणा के स्रोत बनींएकरा संगे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के पहचान आ मुहावरा के ज्ञान करावें के भी प्रयास भइल बन।

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पद्य विधा में भोजपुरी के जानल-मानल गीतकार अनिरूद्ध के ‘जय-जय भारत देश’ के देश बन्दना के रूप मे पहिल पाठ में स्थान दिहल गइल बा। नीति परक दोहा में कबीर के दोहा आ लड़िकन के दिमागी कसरत द्वारा बुद्धि के विकास ला बुझउअल राखल गइल बा। प्रकृति वर्णन में डॉ० शांति जैन के ‘बहार गीत गाई जा’ में बसन्त के सरस वर्णन बा त साहिसिक भाव भरे वाला कविता के रूप सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ के ‘बढ़ल चल……..’ चयनित बा। अन्त में राष्ट्रीय भाव जगावत सुप्रसिद्ध गीतकार भोलानाथ गहमरी के गीत ‘देशवा के दिहलु बरदान मइआ भारती’ प्रस्तुत कएल गइल बा।

पाठ का संगे-संगे रचनाकार के दिहल परिचय आ विषय के परिचय, पाठेत्तर वस्तुनिष्ठ, लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न गइल बा। भाषा, तथ्य, चिन्तन का अलावे अभिव्यक्ति-शक्ति बढ़ावे के भी जोगार एह पुस्तक में बा।

देहात में कवनो लड़िका जब पढ़े-लिखे में कोताही करेला त माई कहेली तनि दीयो-बाती त जड़ा ले, माने तनिको त कुछ पढ़-लिख। यही से प्रारंभिक वर्ग के एह पाठ्य-पुस्तक के नाम ‘दीया-बाती’ दिहल जा रहल बा। ‘दीया-बाती’ उजाला के प्रतीक बा, रोशनी के प्रतीक बा। एकर निर्माणे भइल बा अंध कार दूर करेला। अज्ञानता के करिया कुच-कुच अन्हरिया दूर क के ज्ञान के दक-दक अँजोरिया छात्रन के भीतर भरे में एकरा सफलता मिली त मेहनत सुफल मानल जाई।

बाकिर एतना जरूर बा कि ‘दीया-बाती’ के अंजोर पावेला छात्रन के श्रम के तेल जरावे के पड़ी। पुस्तक में यथा संभव चित्र देके एकरा के आकर्षक बनावे के एगो कोशिश कइल गइल बा। बाकिर एकरा के अउरी अच्छा आ उपयोगी बनावल जा सकेला, जेकरा ला अध्यापक आ अभिभावक लोगन से निहोरा बा, आपन सुझाव दी हमरा खुशी होखी।

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