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सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी के लिखल बिहार में दारू

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सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी

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गजिब बन भईल बिहार में दारू
पहीले से ई बिकाए लागल आरू
गजिब बन ——– पहीले से —-

पहीले तऽ बिकात रहे भठीए-भाठा पऽ
अब तऽ भेंटा जाता दुईए-चार काठा पऽ
दूधे के साँथे-साँथे ई हो गईल उठावना
खूब मिलऽता होता कवनो मोल-भाव ना
कुछ लो खाती हो गईल ई गाय दूधारू
गजिब बन भईल बिहार में दारू
पहीले से ई बिकाए लागल आरू

सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी
सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी

आजो थाना-थूनी पईसे पऽ बान्हाईल बा
एकरे इशारा पऽ बिकाता काल्हो बिकाईल बा
गरीब पियक्कड़ हूँकाला-थूराला जेल भेजाला
अमीर पईसा के बल पर बरी हो जाला
अईसन दारू-बंदी के मुँह ना मारूँ
गजिब बन भईल बिहार में दारू
पहीले से ई बिकाए लागल आरू

सफर करत बा बलेण्डो-मरसीटीज कार में
काँहा नईखे भेंटात महाराज ई बिहार में
खुलमखुला बिकाली उत्तर प्रदेश में लैला
रोजदिन सूँघीए लेता लो सीमा से सटल छैला
झाड़ू मारत-मारत मरद के थाक गईलीसन मेहरारु
गजिब बन भईल बिहार में दारू
पहीले से ई बिकाए लागल आरू

बिहार में एकर अबहीं आछा दिन आईल बा
कतहीं-कतहीं तऽ दूध के डिब्बे में लुकाईल बा
अब हेह से आछा दिन का एकर आई
हातना ईजत के साथ ना बिकाईल होई ना बिका
एही पऽ पल्टू काका फेर से दूल्हा बने पऽ बाड़ें उतारू
गजिब बन ———————- पहीले से —————

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