देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल 7 गो भोजपुरी गीत आ कविता

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कोरोनो काल में मजदूरन के दरद प हो रहल राजनीति प एगो भोजपुरी गीत

गाँवे पहुंचा दे सरकार

दल के नाता छोड़ि छाड़ि के करिले सभे बिचार,
गांवे पहुंचा दे सरकार, हम मजदूर लाचार।टेक।

अइसन कोरोना से विकट बा भूख के माया,
जाने गरीबी पर कइसन पड़ल छाया,
दिन रात चलीं पैदल घर माई बाड़ी बेमार,
गांवे पहुंचा दे————–मजदूर लाचार।टेक।

हमरा जखम के शासन का दर्द के जाने,
अइसन दशा के नीति अवसर एक माने,
आन्हर नीति के प्रीत में लागे होई ना भिनुसार,
गांवे पहुंचा दे————-मजदूर लाचार।टेक।

क्षुधा के आगि मिटावे जब महलन में जाईं,
ओहिजा से आंचर में खाली नफरत के पाईं,
हमरे बनावल महल के हमसे बडुए ना दरकार,
गांवे पहुंचा दे————–मजदूर लाचार।टेक।

दुई कदम चलि-चलि केहू फोटो खिंचवावता,
ओकरे के देखाके उ हमदर्द बतावत बा,
नइखे नाता केहू केहूसे अजबे भइल संसार,
गांवे पहुंचा दे————–मजदूर लाचार।टेक।

पर्यावरण से संबंधित भोजपुरी कविता

चल मिलजुलि के धरती बचाईं

कतनो कमइब उ कामे ना आई,
चल मिलजुलि के इ धरती बचाईं।
मैनी के बेटी सुलोचनी ना आइल,
जहिए ले नाधा जोती खुंटी टंगाइल।
धनवा के सिरिका ना छपरे टंगाता,
बोली फुदगुदी के अब ना सुनाता।
हरिअर धरती के थार ना बनाईंं।चल–

पण्डुक परा गइले जाने कवना देश,
नीलकण्ठ के मिले ना कतही सनेश।
फेंड-रुख दुअरा से भइले नापाता,
बाजा कठफोरवा के अब ना सुनाता।
घर पिछुवरिया में गीत के सुनाई।चल–

खोजलो प बदुरी के लउके ना लटकल,
चिल्ह गीध गंउवा के रहिया के भटकल।
कोइलर के गीत प बिपति बड़ी भारी,
कागा ना आवसु अब हमरो दुआरी।
दूध भात कटोरिया में कइसे खिआईं।चल–

पइनी में गरइ के छउकल गुम बा,
पोठिया आ चेल्हवा के रुपे दुलुम बा।
माहुर से जरि गइले पनिया के साड़ी,
सपनो में लउकसु ना फरहा बरारी।
अपने करम से हम गइनी लजाई।चल–

दादुर दोहना के घर भइल भूतही,
सुखले तवां गइली दुलहिन सितुही।
छुटि गइल चुंटी के गइल बरात,
भंवरन के खोंता अब नइखे सेवात।
देवेन्दर के दरद के कइसे कहाई।चल–

दियवा कहंवा जराईं

आगि लागल बा मन में बोताईं कहां,
सुतल हियरा के फेरु से जगाईं कहां।

केहू कतनो बन्धावेला हमरो के धीर,
छछनत जियरा के कह पेठाईं कहां।

चाहे रह गमगीन सभे अपने में लीन,
मन पर परल खोराठी लुकाईं कहां।

दाग दरद के दरिया अपार हो गइल,
दुख के नइया कगारे लगाईं कहां।

राज राजे रही केहू कुछऊ कही,
ठोढी़ छोड़िके कहीं सुहुराईं कहां।

रहे पुरुखन के जवन संइच के धइल,
जोगवल हीरा-रतन भेंटाईं कहां।

चान सुरुजो के घर जब अन्हारे रहे,
दीयना रउवे कहीं अब जराईं कहां।

जाति में जग नसाइल ना मनइ रहल,
माथा पत्थर पर कसिके ठेंठाईं कहां।

जोति अछइत सगरो धुँआ हो गइल,
राय तुंहीं बताव कि जाईं कहां।

बिछौना बेवधान के | भोजपुरी गीत(छपरहिया पूर्वी)

करे खातीर शासन सभे बेंचलसि बिचार,
हार होइबे करी।
चुटुकी भर पावे खातीर करब जब मार,
हार होइबे करी।टेक।

बसुधा कुटुम्ब सोंच पुरुखन के रहे,
सुख दुख मिलिजुल सभकेहु सहे,
लालच लोभ दिहलसि दुखवा आपार
हार होइबे करी।चुटुकी——–जब मार।।

बिछल बा डेगडेग बिछौना बेवधान के,
केहु के ना बांचल अब सोच समाधान के,
जीनीगी के एक एक पल भइल बा पहाड़
हार होइबे करी।चुटुकी———जब मार।।

बने खातीर गुरु जग के करे के परी त्याग जी,
उंच-नीच कइला से कबो जागी ना भाग जी,
मिलिजुल रहब ना त छटाको लागी भार
हार होइबे करी।चुटुकी———जब मार।।

आदत सुधरब ना त जइब बिलाई,
लटि बुड़ि के संइचल कवनो कामे नाहीं आई,
राय देवेन्दर काहे आदत से लाचार
हार होइबे करी।चुटुकी——–जब मार।।

एगो समसामयिक भोजपुरी गीत

वेतनमान भइल भगवान

वेतनमान भइल भगवान रे भइया,
वेतनमान भइल भगवान।।टेक।।

उहे सुनर आ ज्ञान के मुनरी,
जे ओढ़ले वेतनमान के चुनरी,
रोजदारी आ नियोजन हो गइल
सबसे बडा़ अज्ञान रे भइया
वेतनमान———–भगवान।।टेक।।

जुग स्रष्टा जुग द्रष्टा बा वेतनमानी,
नियोजित से बड़का ना केहू अज्ञानी,
अब इहे चलल अभियान रे भइया
वेतनमान———–भगवान।।टेक।।

हीत मीत सभे वेतनमाने के पुजे,
सउंसे समाज हमके जाहिल बुझे,
सगरो रोपेए के होता गुनगाइ रे भइया
वेतनमान———–भगवान।।टेक।।

रोजा रोजगारी के सभे दूतकारे,
बुरबक पागल कहि के पुकारे,
वेतनमाने देवेन्दर विज्ञान रे भइया
वेतनमान———–भगवान।।टेक।।

कोरोना वारियर्स जे दोसरा के जीनीगी बचावे खातीर अपना जीनीगी के दाव प लगा देले बा, आजु लोग ओही देवदूतन प पत्थरबाजी करता एही भाव के लेके एह भोजपुरी गीत के भाव बा

केहु अरज सुने ना मोरा

पूजा के मरम ना जाने कोय
शायरी-जेकरा खातीर जान लुटवनी उहे कहेला चोरा
जे छद्मी बा ओकरे से लोग करत चलेला निहोरा,
कइसन करकस काभइल जग- केहु अरज सुने ना मोरा।।

जामल बाडे़ देश में दुसासन जी
प्रशासन कइसे काम के करी,
भइल काहे दुश्मन दुराचारी जी।टेक।

जनता के जान खातीर आपन सभ भुलइले
उनुके सेवा के खातीर घरे-घरे गइले
रउरा बदला में पत्थर काहे मारीं जी
प्रशासन कइसे काम के करी
भइल काहे——काम के करी।

डॉक्टरे नरस पुलिस असली बीरनवा
इन्हिके से पुरा होला सभके सपनवा
साथ दीही साथ ना त देश जाइ हारी जी
प्रशासन कइसे काम के करी
भइल काहे———काम के करी।

दूरी बनल रही कोरोना ना आई
निकलीं त मुंहवा प मास्क के लगाईं
कोरोना त हउवे महामारी जी
प्रशासन कइसे काम के करी
भइल काहे——–काम के करी।

मिलजुल राय के आवे सभे साथ में
पत्थर उठावे ना केहु अपना हाथ में
भारत माई के इहे असली पुजारी जी
प्रशासन कइसे काम के करी
भइल काहे——–काम के करी।

समय के गंवाईं मति

शासन प्रशासन लागल हिन्द के बचावे में,
छिपल मुदइया लागल झूठ फैलावे में।टेक।

लइका जवान बुढ़ देश के डेराइल बा
कोरोना से बचे खातीर घर में बन्हाइल बा,
जीनीगी बचावे खातीर जाँच करवाईं जी
डाक्टर नरस के सांच-सांच बताईं जी,
ओकरा के धरीं जवन भागता देखावे में
छिपल मुदइया———झूठ फैलावे में।

कुछ लोग के मतलब नइखे देश जाए भांड में
छिपल बाडे़ अइसन दुश्मन धरमे के आड़ में,
धरमे के धुन में भारत बेहाल भइल
अइसन धरम अब जीव के जंजाल भइल,
सभे सहयोग करे देशवा बचावे में
छिपल मुदइया——–झूठ फैलावे में।

कोरोना के करमवीर के देवे सभे बधाई जी
अइसन देव पूजे में तनिको मति लजाईं जी,
देश के नियम में चाहीं होखे के कडा़ई
बिना भय के राय जी के छुटी ना ढिठाई,
समय के गंवाईं जनि बात समझावे में
छिपल मुदइया——-झूठ फैलावे में।

देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल 7 गो भोजपुरी गीत आ कविता
देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल 7 गो भोजपुरी गीत आ कविता

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