जगदीश खेतान जी के लिखल भोजपुरी कहानी चार गो भूतन से भेंट

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आयी पढ़ल जाव जगदीश खेतान जी के लिखल एगो बेहतरीन भोजपुरी कहानी चार गो भूतन से भेंट:-

रउवा लोग अपने जीवन मे भूत, प्रेत, चुड़ैल और जिन्न देखले बानी की नाही? सायद न देखले होखब।बाकी नाव जरूर सुनले होखब। भूते पर कई ठो फिलिम भी बनल बा।भूत-प्रेत के फिलिम भी देखले मे डर लागेला त जो भूत सामने आजा त केतना डर लागी ? हमहूं के डर लगेला।आधी रात के सूनसान जगह जाइलां त हनुमान चालीसा के पाठ करत जाइलां।रउवो लोग भी भूत के नाव से डेरात होखब?

बहुत जने भूते के डरे, पूरा हनुमान चालीसा इयाद कइ लेलं कि कब्बो डर लागी त ओकर पाठ कइल जा सके। हनुमान चालीसा मे लिखल भी बा —

भूत पिसाच निकट नही आवे।
महाबीर जब नाम सुनावे।

येसे पता चलता कि भूत पिसाच होलं, नाही त इ हनुमान चालीसा मे ना लिखल जात।आ हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास के लिखल ह, जे संस्कृत आ हिंदी के प्रकांड विदवान रहलं। राम चरित मानस जइसन अमर ग्रंथ के रचना कइलं।उनके लिखल बात भला कइसे गलत हो सकेला।हम त लरीकई पर से भूत प्रेतन के बार सुनत चली आवतानी।

हम जब नौ-दस साल क भइलीं त हमके भाइ लोगन से मालूम होत गइल कि हमरे नगर मे कहां-कहां भूतन के बसेरा बा।इहो पता चलल कि भूत प्रेत रात मे या दिन मे विसेस कर के बारह बजे के करीब परकट होलं।इहो पता चलल कि उनकर पंजा उल्टा मुड़ल रहेला आ उ मुहे से न बोलके नाकी से बोलेलं।

इहे सब सुन के हम दिन मे बारह बजे के करीब कहींं अकेले ना जात रहलीं। रात के बारह बजे कहीं जाये के त सवाले ना उठत रहल। ओ समय हमरे नगर मे कइ जगह मसहूर रहल जहां लोग भूतन के रहे के स्थान बतावें।एक त विजली विभाग के सब इसटेसन के लगे तरकूले के पेड़ रहल।उ जगह ओ समय सूनसान रहल।दूसर जगह बलाक जाये के रसता मे इमली के पेड़ रहल। ओ समय उहो सूनसान रहल आ दिनवो मे, ओ पड़े अकेल जात हाड़ कांपे।बरसात मे उहां पानी लग जात रहल। थोड़ अउर बड़ भइलीं त पता लागल की समसान मे भी भूतन के बसेरा होला। रात मे समसनवे मे औघड़ आ पंचमकारी तांत्रिक मुरदन के उपर बइठ के तांत्रिक साधना करेला ।साधना से भूत परकट होलं आ भूत भीसन अटटहास करेलं।

.. येगो धकोरहो के बारे मे भी लरीकइये से सुनत आवत बानी।धकोरहा के खातीर इ कहल जाला कि इ जेकरे लगे रहेला ओकरे घरे उ दूसरे के घर के धन आ जेवर लेआके धरल करेला।

राजस्थान के येगो किला मे अनमुनहार भइले के बाद रूकले के मनाही बा कांहे कि सांझ के बाद किला मे जो केहू रही जाला त भिनसहरा उनके मुरदा शरीर मिलेला।

इंगलैंड मे भी कई गो भूतहा किला बा।उंहों रात मे रूकले पर खतरा हो जाला।

रउवा लोगन मे से अधिकतर लोगन के इ मालूमे ना होई कि भूत परेतन के भी येगो अलग भासा होला।हमहू के ना मालूम रहल।केहू सोच सकेला कि भूत परेतन के भी बोलचाल के भासा हो सकेला?हमहू इ सपनवो मे ना सोचले रहलीं।

लेकिन हमार विसवास तब खंडित हो गइल जब हमार गुरूभाई रामानंद राय अयोध्या के दारसनिक आसरम मे उ पुसतक हमके देखवलं जवने मे विसतार से भूतन के बोलचाल के भासा के उल्लेख रहल।उ पुस्तक अयोध्या के येठो आसरम के संत लिखले रहलं। उ संत अकसरहा ओ भूतन से ओही के भासा मे बात कइल करें।श्री रामानंद राय के ८-९ साल पहिले देहावसान हो गइल रहे। उनके अयोध्या के बहुतेरे संत आ महंथ लोगन से परिचय रहल। उनहूं के सब लोग संते कहत रहल।

इ अटल सत्य ह कि आदमी के अपने पिछले जनम के पाप पून्य के फल आगे के जनम मे भोगे के पड़ेला।पुनर्जन्म के हजरो से बेसी घटना देस विदेस मे घट चूकल बा।गीताप्रेस से कल्याण के पुर्नजन्म विसेसांक निकल चूकल बा।करीब ४०-५० साल पहिले हमरे इहां येगो सोहनी नाव के गांव मे एक जने मर गइलं।उनके समसान घाट लोग ले गइल। लेजाके चिता पर सुता के लकड़ी बिछावल गइल।जब आगी लगावल गइल त उ उठ के बैठ गइल।बुझाइल कि सूत के उठल होखे।ओके घरे ले आवल गइल। गांव मे अइले पर पता चलल कि ओही नाव के दूसर अदमी मर गइल बा।हमके बुझाइल कि चित्रगुप्त भूल सुधार कइके सही अदमी के अपने लगे बुला लेहलं।दरअसल मे यमराज के दूतन से गलती भइल रहल कि उ मौत के वारंट गलती से ओही नाव के दूसरे आदमी के तामील करा आइल रहलं।

अब असल विसय पर आवतानी। ३०-४० साल पहिले के बात ह। हम एक दिन गोरखपुर के तरंग टाकीज मे रात के छ बजे से नौ बजै के सो मे कवनो फिलिम देखे गइल रहलीं। ओहीं येगो भलेमानस से कवनो बात पर तू-तू, मै-मै हो गइल।अब उ रिसिआ के कहलस–“हम अभीये तोहके हमसे उलझले के मजा चखावतानी।”

येतना कही के उ अपने मूंहवे से येगो सीटी मरलस।सीटी के आवाज सुनत भर मे न जाने कहां से तीन गो मुसटंडा आके खड़ा हो गइलं।पहिलका वाला मनइ ये तीनों जने के बोलल:-“आज ये बाबूसाहब के छठी के दूध इयाद दिआवे के बा।इ सरवा हमके चीन्हलस नाही।” इ सुनते हम हक्का-बक्का हो गइलीं।हम गिड़गिड़ाये लगलीं आ दया के भीख मांगे लगलीं।बाकी उ सब एक ना सूनलं।येगो जीप आके समनवे खड़ा हो गइल। हमके डरन आ मजबूरन ओ जीपे मे बइठे के पड़ल। दूसर कवनो चारा नाही रहल।जीप चल देलस।आगे कुछ मिनट चलले के बाद उ सब हमार हाथ आ गोड़ रसरी से बांध देलन।आंखीन पर पट्टी अलगे बन्हाइल।

येतना सब कइले के बाद उ सब हमार ससुरारी के मिलल घड़ी आ सोना के अंगूठी निकार लेहलं।ओकरे बाद हमरे पैंट आ कमीज के सगरो पाकिट के टो टा के खाली कइ देलं।ओ कुलहीन के नजर से येगो चोर पाकीट बच गइल । इहे गनीमत भइल।ओ पाकीट मे चालीस रूपया अलग से धइले रहलीं।हम जान के रूपया कई पाकेट मे राखीलां कि अगर एक पाकेट के रूपया जेबकतरा काट ले तब्बो एक पाकेट के रूपया बचल रहे। जीप भागल जात रहे।

करीब 35-40 मीनट चलले के बाद येगो सूनसान जगह पर जीप रूकल।उ सब हमके जीप पर से उतार देलं।ओही मे से एक आदमी बांस के सीढी ले आइल।सीढी के सहारे ओमे से एक आदमी कवनो उंच जगह पर चढ गइल।उपर से उ येगो रसरी फेकलस।नीचे तीनो मिलके हमरे कमर मे रसरीया के कस के बान्ह देहलं।अब उपर वाला हमके रसरी के सहारे उपर खींच लेलस।अब उ हमरे आंख के पट्टी आ हाथ के रसरी खोल देलस।अब उ, इ कही के नीचे उतर गइल-“आज के रात अगर भूतन से बच गइल तब्बे काल के सुरज के रोसनी देख पइब।”
नीचे उतरले के बाद उ सीढीओ नीचे खींच लेलस।

अबले हम समझ गइल रहलीं कि हम येगो बहुत बड़हन संकट मे फंस गइल बानी। गनीमत इहे रहे कि कुछ-कुछ चांदनी रात रहे। मतलब कि चौथ चाहे पंचमी रहल होई।लेकिन उ अदमीया जात-जात जवन भूते के डर देखा गइल रहे ओसे हम अंदर ले डेरा गइल रहलीं।हम सचहूं सोच लेलीं कि आज हमार जान बचल बड़ा कठिन बा।फिर सोचलीं जवन होइ तवन देखल जाई।

गोड़े मे रसरी अबहीन ओइसे बन्हल रहल।अब अपने दूनो हाथे से ओ रसरी के खोले के कोसिस करे लगलीं।थोड़ देर ले कोसिस कइल रंग ले आइल आ गोड़े के रसरी खूल गइल।अब हम कुछ चैन के सांस लेहलीं।अब हम मौका मुआयना करे लगलीं, आ इहां से बच निकरे के तजवीज करे लगलीं।इ त समझ मे आ गइल रहे कि हम जमीन से काफी उंच जगह पर आ गइल बानी। धीरे-धीरे हमार आंख अंधेरा के अभयस्त होखे लागल आ कुछ-कुछ दिखाई देवे लागल।डेरा त गइले रहलीं। घबराहट भी होत रहे।भीतरे भीतर हनुमान चालीसा के पाठ त सुरूये से चालू रहल, जब हम जीप मे बइठावल गइल रहलीं।अब अउर तेजी से पाठ शुरू हो गइल।

इ जगहीया चौकोर बुझात रहल।एक ओर कोने मे येगो संकरा रास्ता लउकल।हम ओ कोने वाला रास्ता मे घुसलीं लेकिन वापस आ गइलीं कांहे कि आगे रास्ता बंद रहल। दूसरका कोने मे येगो रास्ता लउकल आ हम ओंहर बढ गइलीं।ये रास्ता मे ढूकलीं त येगो जानवर के गुर्रइले के बोली सुनाइल त डेरा के वापस लौट गइलीं।डर के मारे घिघी बंध गइल।बेचैनी आ घबराहट बढले जात रहे।हम कई बेर चिल्ला-चिल्ला के सहायता के लिये भी पुकार कइलीं बाकी सब बेकार सिद्ध भइल

अब बाकी बचल दूनो कोना भी देख लेलीं कि कवन जाने कवनो रास्ता मिल जा बाकी ओहू दूनो कोना मे ढेर खान झाड़- झंखाड़ रहल आ सांपो के डर लागत रहल।अब हम वापस घूमलीं आ बीच वाला जगह पर गइलीं त का देखतानी कि येगो चारपाई पर चार गो मनई बइठल बान आ बीड़ी के कस पर कस लेत बान आ धुंवा उड़ावत बान।

हम उनके नगीचे गइलीं आ कहलीं-” का हो कइसन मनई बाड़ लोगन। सहायता खातीर हम केतना हांक लगवलीं बाकी चारों जने का ना सुनाईल। निराल आंखी के आन्हर बाल का लोगन? येतना सुनत भर मे चारो ठठा के अटृहास करे लगलं आ कहलन-“हां हम चारो जनी अन्हरे त बानी।”
हम गौर से देखलीं ता का देखतानी की चारों के आंख नदारद बा।हमके भूतन वाला बात इयाद आ गइल।

हम डर के मारे घिघिआये लगलीं। तबले हमके केहू कस के झिंजोड़े लागल आ बोलल-“अजी उठीं।सपना मे भूत देख लेलीं ह का?कबसे घिघिआत बानी।पत्नी के बोली सुनके हमरे जान मे जान आइल। हमके होस आ गइल आ हम बोल उठलीं-“हं हम भूतवे देखलीं ह।उहो येगो नाहीं इकटठे चार-चार भूत आ उहो बिलकुल आन्हर।”

इ सुन के उ कहली-“आजे रउवा के मौलाना साकीर अली के लगे ले चलब आ गंडा ताबीज़ बंधवाईब कि फिर रउवा सपना मे भूत न देख पाईं। अउर हां आज से रउवा के तकिया के नीचे येगो चाकू भी राखब।”

रउवा खातिर:

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