ई सन 1971 के बात ह।पाकिस्तान आ भारत मे लड़ाई शुरु हो गईल रहे।पूरा देश मे येगो उत्साह छा गईल रहे।हर जगह येही के चर्चा होत रहल।बुझात रहल की लड़ाई लंबा खिंची।रात के ब्लैक आऊट होखे लागल।
सेठ चंदूलाल जब कालेज मे पढत रहलं त एन.सी.सी के कैडेट भी रहलं।खेलकूद मे भी उत्साह से भाग लेत रहलं।दौड़ मे भी भाग लेत रहलं बाकी हर बेरी पीछे से प्रथम आवत रहलं।हां वजन उठवले आ फ्री स्टाइल कुश्ती मे हरदम प्रथम पुरस्कार पावत रहलं कांहे कि इनके वजन वर्ग मे दूसर प्रतियोगी मिलल ओतने मुश्किल रहल जेतना कि गदहन के कपारे सींग होखल।
सन 1965 के लड़ाई के बादे कानपुर मे “नागरिक सुरक्षा दल” के गठन भईल रहल।सेठ चंदूलाल भी बड़ा उत्साह से ओमे आपन नाम लिखवलं।ओ समय ऊ खाली चंदूलाल रहलं।सेठ नाही बनल रहलं।”नागरिक सुरक्षा दल” के गठन येही उद्देश्य से भईल रहल कि देश पर संकट अईले पर येकर सदस्य आपन सगरो ताकत लगा के नागरिक सुरक्षा के भार संभार लीहं।
चंदूलाल क सपनो मे ई आशा ना रहल कि सुरक्षा दल के गठन भइले के थोड़े दिन बादे, लड़ाई शुरू हो जाई और उनहू के लड़ाई मे सेवा देवे के पड़ी।ऊ इ जनतं त भुलाउ के आपन नाम नागरिक सुरक्षा दल मे ना लिखवतं।
नागरिक सुरक्षा दल के सदस्य अन्हार होते अपने डयूटी पर निकल जात रहलं।पारा-पारी सब सदस्यन के रात-रात भर जाग के पहरा देत रहलं।
सेठ चंदूलाल के तीन चीज पर बस ना रहल।पहिला मेहरारू दूसर खाना और तीसर नीद पर।वइसे त ऊ अपने बहादुरी के बड़ा डींग हांकत रहलन लेकिन अपने मेहरारू के सामने पड़त भर मे उनके सगरो हिम्मत जवाब दे देत रहल आ ऊ भीगी बिल्ली बन जां।
ऊ बहुते मोट-झोट रहलं।डॉक्टर उनके कम खाये
के हिदायत कईले रहलं बाकी खयका सामने देखते ऊ हिदायत भुला जां आ डट के खयका पर हाथ मारत रहलं।नीद के त ई हाल रहल कि जागत कम रहलं आ सुतत ज्यादा रहलं।दूसरे के ओंघातो देखें त इनके नींद आवे लागे।सिनेमा के परदा पर केहू के सूतत देख लें त इनके नाक संगीत सुनावे लागे।ऊ अपने कक्षा मे सबसे पाछे वाला सीट पर बैठे कि सूतले के आराम रहे।
चंदूलाल के डियूटी कब्बो-कब्बो रतीयो मे लाग जा।लड़ाई शुरु भईले के पांच दिन बाद ऊपर से आदेश आईल कि नागरिक सुरक्षा दल के सब सदस्य लोगन के मेडिकल जांच कईल जा और जे फिट होखे ओके तुरते मोर्चा पर भेजल जां।सब सदस्य लोगन के जांच भईल।चंदूलाल के भी जांच भईल आ उनके शारीरिक रुप से फिट पावल गईल।खाली आंखी के जांच बाकी रहल।दूसरे दिन आंखी के जांच होखे के रहल।ये ही चिंता मे उनके रात भर नींद ना आईल।कब्बो एकाध गो झपकियो आईल त ऊ अपने के छम्ब आ कसूर मे लड़त आ गोली खात देखलं।
भिनसहरे ऊ हमरे पास आ धमकलं आ आपन परेशानी बतवलं।रात के सपनवो बतईलं।ऊ डेरात रहलं कि कहीं सपनवा सच न हो जा।ऊ कवनो उपाय बतावे के कहलं जेसे उनके लड़ाइ के मोर्चा पर न जाये के पड़े।हम उनके येगो आसान उपाय बता देलीं।
दूसरे दिन उनके आंखी के जांच करावे खातीर डॉक्टर सेठ के सामने हाजिर होखे के पड़ल।डाकटर के डिसपेन्सरी के अंदर समनवे अक्षरन वाला बोर्ड लागल रहल जेके पढा के आंखीन के जांच कईल जात रहल।डाःसेठ पूछलं कि सामने बोर्ड के सबसे ऊपर वाला के लाइन मे का लिखल बा, त ऊ हमरे सिखवले के अनुसार चंदूलाल तुरते बोललं कि “कईसन लाइन?”
डॉक्टर सेठ झुंझला के बोललं “ऊ समनवे उज्जर रंग के बोर्ड पर करीया रंग से कई गो लाईन लिखल बा ओमे सबसे उपर वाला पहिला लाइन मे का लिखल बा?”
चंदूलाल रटल-रटावल बोललं”कईसन बोर्ड?”
डाः सेठ परीशान होके मन ही मन कहलं कि कवने आन्हर से पाला पड़ल बा कि बोर्ड तक ना दिखाता।तब्बो आपन गुस्सा दबा के कहलं “अरे ऊ का सामने देवाल पर बोर्ड लउकता।”
येकरे जवाब मे चंदूलाल कहलन “कइसन देवाल ?”
ई जवाब सुनले पर डॉक्टर सेठ चुप ना रही पईलं और अपने हृदय के उदगार ये शब्दन मे व्यक्त करे लगलं “लोग केतना आन्हर बा जो अइसनो अन्हरन के आंखी के जांच करावे बदे भेज देला जेके बोर्ड आ देवाल तक ना दिखाई देला ई मोर्चा पर जाके खाक निशाना लगइहं।ई ससुरा त लड़ाई मे जाई त बेमौत मारल जाई।
डॉक्टर सेठ अपने सहायक के बोला के कहलं “येगो रिक्सा बुला के आ इनके हाथ पकड़ के रिक्सा पर बइठा द।” उनके सहायक रिक्सा ले आईल आ उनके हाथ पकड़ के ओपर बइठा देलस।
लोग परीक्षा मे पास भइले पर मिठाई बांटेला आ खुशी मनावेला बाकी ओ दिन चंदुलाल आंखी के परीक्षा मे फेल भइले पर जौन मिठाई बटलं ओइसन मिठाई आज ले केहू ना बंटले होई।परीक्षा मे फेल भइले पर चंदूलाल से प्रेरणा लेके अगर लोग मिठाई बांटे लागे त चीनी के अकाल हो जाई आ मिठाई बेचे वाला लाल आ दुनिया खुशहाल हो जाई।
ये घटना के दू-चार दिन बाद के बात ह।शहर के “हीर”टाकीज मे बड़ा नीक फिलीम लागल रहे।सेठ चंदूलाल भी बालकनी के टिकट कटा के अपने सीट पर बइठ
गइलं आ फिलीम शुरु होखे के अगोरा करे लगलं।तब ले उनके बुझाइल कि बगली मै जौन आदमी बइठल बा ओके कहीं देखल बा आ चीन्हार बुझाता।दिमाग पर जोर देलं बाकी इयाद ना पड़ल।एक बेर सोचलं ओही से पूछ के देखीं।ऊ मुह खोल के पूछे के रहलं कि तब तक उनके इयाद आईल कि अरे ई त उहे आंख वाला डॉक्टर सेठ हवे।उनके चीन्हते उ धक रही गईलं।उनके चिंता लागल कि कहीं डॉक्टर उनके चीन्ह न ले नाही त बड़ा मिट्टी पलीद होई।लड़ाई के मोर्चा पर भी जाए के पड़ सकेला।
चंदूलाल अकील के कमजोरों न रहलं।उनके दिमाग में येगो विचार बिजली के लेखां कौंध गइल।ऊ आपन आंख फैला के अपने आंखी के पुतलीयन के स्थिर कईलं और डाकटर के अपने दूनो हाथे से झिंझोड़ के कहलं- “बहन जी,बहन जी, ई बस क बजे छूटी।”
डाः सेठ चौंक के चंदूलाल के नाराजगी से देखे लगलं जौन उनके बहन जी कही के संबोधित करत रहे।लेकिन चंदूलाल के देखत भर मे उनके रीस शांत हो गईल आ उल्टे उनके हाल पर तरस आवे लागल।ऊ चंदूलाल के देखते चीन्ह गईलं आ मुसकी मार के कहलं-“हे बहिन के बहनोई ई सिनेमा हाल ह।जब रउरे आंखीन के ई हाल बा त येकर दवाई
कौनो आंखी के निम्मन डाक्टर से करावल चाहता नाही त कही दुर्घटना मे जान चल जाई।”
“दवाई त बहुत करवलीं बाकी ठीक ना भईल।अगर रउवा के जानकारी कौनो नीक डॉक्टर होखे त बताईं।बड़ा आभारी होखब।” चंदूलाल कहलं।
अब डॉक्टर सेठ अपने मुह से कइसे कहतं कि ऊ शहर के सबसे मशहूर डॉक्टर हवं।ई त अपने मुंहे मिया
मिट्ठू बनल होत।लेकिन चंदूलाल के सही सलाह भी देहल जरुरी रहल।अतः ऊ कहलं कि-“डॉक्टर सेठ के देखाव त ठीक रही।मोतियाबिंद के संभावना बा।हो सकेला आपरेसन करावे के पडे। लेकिन जल्दी करीं।आंखी के मामला बा।
सेठ चंदूलाल उठ के खड़ा भईलं आ कहलं-“रउरे नेक सलाह के लिये बहुत-बहुत धन्यबाद।हम डॉक्टर सेठ से काल्हे जा के परामर्श करब।”
डाः सेठ चंदूलाल के हाथ पकड़ के कहलं ” चलीं रउआ के बसे मे बइठा दीं नाही त ये बेरी कहीं रउआ बस मे गईले के जगही केहू के घरवे मे घुस जाईब।”
डाःसेठ, सेठ जी के बस मे बैठाई के दम लेहलं।सेठजी बस मे बइठले-बईठल ई कीरीया खईलन कि जबले लड़ाई चली ऊ घर से बहरा ना निकलीहं नाही त कब्बो फेर डाकटर सेठ से भेंट हो गईल त उनके आंखी के कलई खुल जाई आ उनके लड़ाई करे भी जाये के पड़ी।
लेखक: जगदीश खेतान जी