ढहल दलानी अब त सउँसे,
पुरवइया क झांटा मारे,
सनसनात ठंढा झोका से,
देहिया काँप गइल बा।
मेजुका-रेवां गली- गली में,
झेंगुर छोड़े मिठकी तान,
रोब गांठ के अँगनैया में,
डेरा डाल गइल बा!
बइठ मचाने देके थपरी,
दादी हुलें- सिवान।
तब्बो चिरई नइखे भागत,
पँखवा तोड़ गइल बा।
सन किरवा क चमक दमक त,
आग- सरीखा लागे ला।
पकड़-पकड़ हाथे से ओके,
हथवा लहक गइल बा।
रोज निहारीं बदरा-बदरा,
चँदा कब्बो ना लउकल!
केतना देखीं ऊपर-नीचे ,
अँखियाँ उब गइल बा।
अरूआइल चेहरा क लेखा,
दुपहरिया अब लागेला।
लाल बुझक्कड़ हमें बताके,
पियवा सरक गइल बा।
मनवा त सावन में बाउर,
केहू पार न पावे ला।
बन- ठन के बौराइल जिउवा,
सगरो- झेल गइल बा।
जरत पेट पर पत्थर बँधली,
तब्बो साँझ सतावेला।
दहकत- आग बुतावे ख़ातिर,
सावन-सिसक गइल बा!
डॉ राधेश्याम केसरी
ग्राम, पोस्ट-देवरिया
जिला-ग़ाज़ीपुर, (यूपी)
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