सुनी सभे आपन बा बतावतानी
घर के प्रेम प्रीत राग सुनावतानी।
भोरे पराती रोजे सुनाई
बीबी भैरवी पंचम में गाईं।
सातो सुर आ सातो थाट
हरदम खोजे मेहरि घाट।
जे जे गावल मेहरि तान
सफल होला उहे गान।
झुम झुम हम रोजे कजरी गाईला
कतही रहीं बीबी ध्रूपद दोहराईला।
ठोक के छाती जे मेहरि ड्यूटी बजावेला
एह तान के उहे आन्द उठावेला।
एह राग के अईसन महिमा
बनल रहेला घर के गरिमा।
ई राग अनमोल होला
तबे गावे गुरू आ चेला।
एह राग के जे ना जानल
प्रेम के उ हाल ना जानल।
राय रसिक हो चाहे मणी
जुटल रहल बा एही कडी़।
दारा राग के कर अभ्यास
दुख के कबहीं ना होई आभास ।
देवेन्द्र कुमार राय
(ग्राम-जमुआँव, पीरो, भोजपुर, बिहार )