मणि बेन द्विवेदी जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा सुगनी

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राते से सुगनी तेज बोख़ार में तप तिया!

काल्ह दिन भर घामा में गेहूं कटलस बुझाता लूह लाग गइल बा।

कवनो दावा बीरो काम नइखे करत!

सुगनी के माई काँचा आम उसीन के भर देहें छपले बाड़ी।

उसीनल कच्चा आम लूह के सबसे कारगर दवाई ह,सब जर खींच लेला।

सगुनी के माथा अपना गोदी में ले के बईठल बाड़ी सगुनी के दादी आ सगुनी के बाबूजी आपना गमछी से ओकर तलुआ सुघराव तारे दादी कहेली कि अइसन कईला से सब बोख़ार तरवा महे उतर जाला!

”हे काली माई,…हे सती माई कवन अयगुन भईल हमारा से?
”माफ़ करीं हे ब्राह्ण बाबा हमरा सुगनी के नीमन करीं।”
कवना का नज़र में बालू परल हमरा बछिया के बोखार नइखे उतरत, राते से दवाई दे तानी,……
”कवन बिटेव परल हे सोखा बाबा हम भुलाइल नइखी रउआ के”।
”हे गंगा मईया राउर भारा भुलाईल नईखी”।

जेतने सुगनी के दादी दईब देवता बिनवत रहली ओतने तेजी से सगुनी के आँख से धिकल धिकल लोर के धार तेजी से बह के दादी के जांघ भिजावे लागल त दादी झट से सुगनी के उठा के करेजा से लगा लेहली।

मणि बेन द्विवेदी जी
मणि बेन द्विवेदी जी

ना हमार रानी ना तूँ जन रोअ बोख़ार त आवेला जाला अबे उतर जाई।

एतना सुनि के सगुनी जोर से दादी के हाँथ पकड़ लेहलस आ धीरे से आँख खोल के जबरन मुस्काये के कोशिश करे लागल
”ना दादी ना तूँ मत मनाव देव पीतर लोग के हम एहींगा बेमार रहे चाह तानी”
काहे बबुनी तूँ हमरा घर के रौनक़ हउ तूँ काहें अइसन कह तारु?”
गमछी का कोर से आँख पोछत बाबूजी बोलले।

”अइसन काहे कह तारु? दादी का आँख से टप टप लोर चुये लागल।”

ना दादी हम बेमार रहब त सब लोग हमरा के एतने दुलार करी जेतना भईया के करेल लोग नीमन हो जायेब त फ़ेरु तूँ गारी देबू दादी।

आज हमारा बहुते नीमन लागता दादी तहरा कोरा में सूत के”

”हमरा के अइसही सुतल रहे द दादी!”

सुगनी अनजाने में ही सब सच्चाई उजागर क देलस।

सबकर आँख खुलल के खुलल रह गईल, सब एक दूसरा के मुँह ताके लागल।

अनजाने में कईल भेद भाव सुगनी के मन के कहीं ना कहीं छलनी क देत रहे

दादी सगुनी के कस के करेज़ा से लगा लेहली।

उ बुझ गईली कि कमज़ोर परब त सुगनी के भावना के बाढ़ सबका के बहा ले जाई!!

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