बब्लु सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघुकथा निष्ठुर नियति

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा बब्लु सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघुकथा निष्ठुर नियति ( Bhojpuri Laghu katha Nishthur niyati) , पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा बब्लु सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघुकथा (Bhojpuri laghu katha ) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह लघुकथा के शेयर जरूर करी।

बबुआ दिन कापार पर चढ़ गईल अभी तक सुतले बाडऽ ( बाबुजी के तेज़ आवाज राहुल के काने में चहुँपल)
उठ ऽ माई तोहार तीन बेर चाह { चाय } ली अईली आ तिनु बेर सेरा गईल लेकिन उठलऽ ना !!

राहुल कुनमुना के चादर मुँह पर से हटा, तकिया के निचे से मोबाइल निकाल, टाइम देखलें त भोरे के साढ़े सात बजत रहे । असोरा में लें घाम आ गईल रहे आ उनके बाबुजी रणधीर सिंह दुआरे पर अख़बार पढ़त रहलें ।

चऊकी के लगे, टेबुल पर चाह राखल रहे, आँख बंद कईले एकसुरिये पी के, फेरु राहुल चादर तान लेहलें ।

दू भाई में छोट राहुल, तीन साल बिदेस कमईला के बाद गाँवे गईल रहलें, बहुत कुछ बदल गईल रहे, लेकिन सबसे ज्यादा बदलल रहे त उ अपनत्व के एहसास जवन पहिले रहे ।

बब्लु सिंह जी
बब्लु सिंह जी

ई सच्चाई राहुल के आँखी के सोझा लउकत रहे की, बदलाव ही प्रकृति के शाश्वत नियम होला । बासे दोस्त लो त रहे लेकिन उनका लो के लगे आपना मोबाइल से ही फुर्सत ना रहे की क्रिकेट भा कुछो, साथे फेरु खेले लो ।
भलही उ हमेशा सोंच सोंच के, रोमांचित होखल करस की जाईब त उ दोस्तन के संघे, पुरनका वक्त कसहु जिअब ।

चादर ओढ़ इ सभ सोचते रहलें की उनके बाबुजी फेर कहलें – का हो सुनात नईखे का? उठब ऽ

रउवा त तनिको ना सोहाला लइकन के ख़ुशी, तीन साल पर त आइल बाड़े बबुआ, तनी सुतहु दी आराम से, देखी कवनो लईका जाले सन दोकानी त हरिअर मरीचा मंगवा देब, खतम हों गईल बा – राहुल के माई के आवाज अंदर निकसार से आईल ।

रुक माई हम लें आवतानी – राहुल आँख मींचत उठले ।
आ दोकानी के ओरिया चल गईले ।

रणधीर सिंह दुआरे अख़बार पढ़त पढ़त अभी लें तीन कप चाय पी चुकल रहलें, उनकर रोजे के नियम रहे, ब्रह्म मुहूर्त में जाग के, नित्यकर्म से निवृत भईला के बाद, पूरा दुआरे खरहरा करस, तबले अंजोर हों जाव ।
अख़बार वाला दैनिक जागरण चहुँपा जास, आ दुआरे चऊकी कुर्सी लगा 9-10 बजे लें पढ़स, ओह दरम्यान चार पाँच हाली चाह बनावे के आर्डर घरे दिआ जाव ।

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चाह पकडावत राहुल के माई कहली :- ए जी सुनी ना, छोडी तनी अख़बार, रउवा त देश दुनिया से ही फुरसत ना मिले, बइठल बइठल दिन भर में दस बेर चाह पिअब आ दु चार लोग के बईठा के बतकूचन करत रहे के बा ।

रणधीर सिंह चस्मा निकालत कहले – जी गृहमंत्री जी फ़रमाई का कहे चाहतानी रउवा ।

रउवा त मजाके लागल रहेला, बबुआ काल्ह जाये आला बा त सोचनी ह, उन्हा भुंजा मिलत होई की ना, एहीसे दु किलो चाना आ मकई के भुंजा भुजवा देती ।

ठीक बा, एक किलो घरवा वाला घीऊवा भी ओकरा बैग में चुपके से ध दिहअ, जान जाई त ना ले जाई, आजकल के लईका हीरो हो गईल बाड़े सन, हमनी के टाइम में माई भर बैग सतुआ आ मरीचा ध देव, कहीं जाये के रहे त आ केतना सुवाद मिले – रणधीर सिंह अख़बार बंद करत कहले आ चाना किने चल गईले ।

दिन भागम भाग में ही बीत गईल, आधा रात तक राहुल आ उनके माई बतिअवलस लो फेर सभे सुते चल गईल ।

अगिला दिने ब्रह्म मुहूर्त में खरहरा के आवाज से रणधीर सिंह के आँख खुलल त देखले की आज राहुल एतना भोरे जाग के दुआर बहार रहल बाड़े ।

पुरा घर में चहल कदमी रहे, राहुल के माई अलगे परेशान रहली की का बनाई का खिआई । रौशनी { राहुल के छोट बहिन } सूजी के हलुआ बना के लिअईली की भईया के पसंद ह आ आज रणधीर सिंह के भी चाह एको बेर पिये के मन ना भइल

पुरा परिवार एक जगे बईठ के बतिआवत रहे, राहुल कहले की माई भईया से बात भईल ह, अगिला छुटी में आएब त रौशनी के बिआह करे के सोचत बानी ।

ना ना हम लईकी देखले बानी, अगिला साल ताहार करब आ ओकरा बाद कन्यादान करब – रणधीर सिंह हँसत कहले ।

अच्छा माई एक घंटा में निकलब, बैग तइयार कर द तनी हम बाजारे से आवतानी एगो सामान ले के – राहुल कहले ।

आरे बबुआ खीर बनवले बानी, खा के जा कहीं – उनके माई उठत कहली ।

निकाल के राख़ माई, पाँच मिनट में आ गईनी – कह के मोटर सायकिल चालू कर राहुल चल देहले ।

गाडी चलावत रहले आ मन में तरह तरह के बात, इयाद आवत रहे, माई के दुलार, पापा के प्यार, बहिन के शरारत इ सभ एक साल बाद भेंटाई अब । रौशनीया के बिआह, कऊनो सरकारी नौकरी आला लईका से करब ।

तलही पीछे से तेज धक्का राहुल के गाडी में लागल आ कुछ दूर रोड पर घसीटात चल गईले ।
अभी कुछ सोंच पवते की सामने से आवत, उहे ट्रक फेरु इनके किचारत तेजी से भाग गईल, पुरा रोड पर खून बहे लागल आ राहुल के आँख, घर के तरफ जात रोड के ओर देखत आ माई के हँसत चेहरा इयाद करत, हमेशा हमेशा खातिर बंद हो गईल……….।

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