आई पढ़ल जाव मणि बेन द्विवेदी के लिखल भोजपुरी लघु कथा नवल भोर, पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा इ भोजपुरी कहानी कइसन लागल आ रचनाकार के मनोबल बढ़ाई
बीस बरीस बाद अचके से मीना एगो रेस्त्रां में अमन के पीछे से ही देख के पहचान लेहली। “अमन ये अमन झट से अमन पीछे मुड़ के देखले त मीना के देखते चिन्ह गइले।” गुलाबी बार्डर के उजर साडी में आज भी उहे कोमलता झलकत रहे मीना के चेहरा पर जइसन बीस साल पाहिले।
मीना तूं इहवाँ??? आश्चर्य भइल मीना के यह हाल में इहवाँ देख के। “हां अमन बाक़िर तूँ कहाँ चल गईल रहल हमरा के छोड़ के?” तूँ अइसन काहे कईल एको बार ना सोचल हमरा बारे में।
एतना कहते कहत तप टप लोर छुए लागल मीना का आँख से। आरे पगली एहिजे खड़े खड़े सब पूछ लेबू चल ओहिजा बइठल जाव।
एगो कुर्सी खींच के बईठ गइले अमन तुहु बईठ मीना आव।
दुनो कुर्सी पर आमने सामने बईठ गइले। मीना के आँख से लोर अभिओ बहत रहे! मीना के मन ना पतियात रहे कि अमन ज़िन्दगी के यह मोड़ पर भेंटा जइहें। चुप हो जा मीना तहरा आँख में एतना आंसू ठीक नइखे लागत। कुछ त बताव मीना कैसे बाड़ू यह शहर में? का तहार ससुराल बा इहवाँ?
का बताईं अमन हमरा जिनगी में अब बतावे के बचल का बा?
जेकरा जिनगी में बस अन्हारे अन्हार लिखल होखे ऊ ख़ुशी के सवेर के इंतज़ार कैसे करी?
अमन तहरा से बिछड़ला के बाद हमार शादी एगो सेना के बहुत बड़ा अधिकारी से हो गईल बाक़िर हमार दुर्भाग्य इहां भी पीछा ना छोड़लस एक बार फेर बिपत के पहाड़ टूटल हमरा पर। अभी त हाथ के मेहँदी छूटल भी ना रहे आउर एगो आतंकी मुठभेड़ में हमार पति शहीद हो गइले।
एतना सुनते नमन के आँख भी डबडबा गईल रुमाल से आपन आँख पोछत अमन बोल उठलें इ देख मीना परेशान हो गइली।
मीना,….त फेर तूँ आपन जिनगी के बारे में ना सोचलू कुछ?
ना अमन ना हम त पहिलहीं आपन बिआह समाज के लोक लाज आ आपन बाबूजी के इज्जत बचावे ख़ातिर स्वीकार कइनी दूसर त कबो सोच भी नइखीं सकत। फ़ेर बुजुर्ग़ सास ससुर के जिम्मेदारी हम आपन कर्तव्य कैसे छोड़ सक तानी?
“खैर छोड़ अमन हमहू केतना पागल बानी एतना दिन बाद तूँ भेटइल आ हम आपन दुःख ले के बईठ गइनी।” बताव अमन तूं अपना बारे में कुछ बताव।
मीना हमार अचानक एक्सीडेंट हो गईल जेमे दुनू पैर फ्रैक्चर हो गईल बाकीर जब ठीक होक तहरा लगे गइनी त तोहरा बाबूजी के बदली कउनो दूसरा शहर में हो गईल रहे। तोहके हम बहुत खोजनी पर कहीं पता ना लागल।
मीना नमन के ब्याकुलता पढ़ लेहली। “फ़ेर का भईल?”
फ़ेर का मीना हम जिनगी भर कुंआरे रहे के फ़ैसला क लेहनी। का ,,,,,,,,???? त तूं शादी ना कईल……??
ना मीना तोहार जगह केहू ना ले सकेला आज भी सुरक्षित बा। एतना कहके अमन अचानक उदास हो गइले।
मीना के आँख के लोर अब धार में बदल गईल मीना खुद के एकर जिम्मेदार माने लगली। दुनो ओर एकदम सन्नाटा छा गईल।
पानी के गिलास मीना के ओर बढ़ावत अमन कह उठले तहरा अगर बुरा ना लागे त एगो बात कहीं???
प्रश्न के ज़वाब देहले बिना ही मीना अमन के मुँह की ओर ताके लगली, जइसे कि कहत होखस,……., बोल अमन मीना हम तहरा जिनगी के अन्हरिया मेटा के ख़ुशी के प्रकाश भरे चाह तानी
तोहरा से बिआह क के,…….बोल मीना।
ख़ुशी के दीया जरावे चाहतानी। मीना बिना कुछ बोलले अमन के हाथ थाम लेहली।
दूर से सूरज जैसे धीरे धीरे छितिज़ के आगोश में समाये ख़ातिर आतुर होखे।
मणि बेन द्विवेदी, वाराणसी ( उत्तर प्रदेश )
रउवा खातिर:
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देहाती गारी आ ओरहन
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