भोजपुरी लोकगाथा : सत्यव्रत सिन्हा

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किसी देश की सांस्कृतिक चेतना का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वहाँ के लोकसाहित्य का अध्ययन करना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है। युग-युग का जन जीवन इसमें परिलक्षित होता है। यह मेरा परम सौभाग्य है कि प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष पूज्य डा०धीरेन्द्र वर्मा एम.ए. डी. लिट्. ने यह विषय (भोजपुरी लोकगाथा का अध्ययन ) मुझे सौंपा । उन्हीं से स्फूर्ति पाकर मैंने यह कार्य प्रारंभ किया । लोकगाथा संबंधी ग्रन्थों के अभाव में तथा भोजपुरी लोकगाथाओं के संग्रह में मुझे जो कठिनाइयाँ हुई वह तो अपनी अनभति का विषय है। गुरुजनों की सतत प्रेरणा से आज यह कार्य समाप्त हुआ है।

प्रस्तुत प्रबन्ध में दस अध्याय हैं। प्रारंभ में भूमिका है तथा अन्त में परिशिष्ट।

प्रबन्ध की भूमिका के तीन भाग हैं । भाग ‘क’ में लोक साहित्य, उसकी महत्ता तथा उसके विभिन्न अंगों पर संक्षिप्त रूप से विचार किया गया है। भाग ‘ख’ और ‘ग’ में भोजपुरी भाषा और साहित्य तथा भोजपुरी लोकसाहित्य का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।

भोजपुरी लोकगाथा : सत्यव्रत सिन्हा
भोजपुरी लोकगाथा : सत्यव्रत सिन्हा

प्रथम अध्याय में लोकगाथा की सैद्धान्तिक विवेचना प्रस्तुत की गई है। साथ ही लोकगाथा की भारतीय परंपरा और लोकगाथा के परंपरागत गायकों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है।

द्वितीय अध्याय के तीन भाग हैं। पहले में, भोजपुरी लोकगाथाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है । दूसरे भाग में, भोजपुरी लोकगथाओं के एकत्रीकरण का विवरण दिया गया है तथा तीसरे भाग में, भोजपुरी लोकगाथाओं का अध्ययन की दृष्टि से वैज्ञानिक वर्गीकरण किया गया है। इसके साथ ही भोजपुरी लोकगाथाओं में निहित उद्देश्य की चर्चा भी की गई है।

तृतीय अध्याय में, भोजपुरी वीरकथात्मक लोकगाथाओं का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । इस वर्ग में भोजपुरी की चार लोकगाथाएँ आती हैं। अतएव प्रत्यक लोकगाथा पर अलग से विचार किया गया है। लोकगाथानों के अध्ययन का क्रम इस प्रकार है :-१-लोकगाथा का परिचय तथा उसमें निहित प्रमुख तत्त्व; २-लोकगाथा गाने का ढंग; ३-लोकगाथा की संक्षिप्त कथा; ४-लोकगाथा के प्राप्त विभिन्न प्रादेशिक रूप, ५-तुलनात्मक समीक्षा, ६-लोकगाथा की ऐतिहासिकता (इसमें भौगोलिकता का भी समावेश है ), ७–लोकगाथा के नायक तथा नायिका का चरित्र चित्रण।

उपर्युक्त क्रम से ही भोजपुरी प्रेमकथात्मक, रोमांचकथात्मक तथा योगकथात्मक लोकगाथाओं का अध्ययन क्रमशः चतुर्थ, पंचम तथा षष्ठम अध्याय में प्रस्तुत किया गया है।

सप्तम अध्याय में भोजपुरी लोकगाथाओं में संस्कृति एवं सभ्यता का चित्र अंकन किया गया है । अधिकाँश भोजपुरी लोकगाथाएँ मध्ययुगीन संस्कृति से संबंध रखती है ; अतएव लोकगाथाओं में वर्णित भोजपुरी प्रदेश की सामाजिक पावस्था, संस्कार, चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था तथा जीवन के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला गया है।

अष्टम अध्याय में ‘भोजपुरी लोकगाथा में भाषा और साहित्य’ पर विचार किया गया है। इसमें लोकगाथाओं में बणित भाषा और साहित्य के विभिन्न अंगों पर विचार किया गया है।

नतम अध्याय में भोजपुरी लोकगाथा में धर्म का स्वरूप’ पर विवेचना की गई है। वस्ततः लोकगाथाओं में धर्म की भावना प्रधान रहती है। भोजपुरी लोकगाथानों में विभिन्न धर्मों का अद्भुत समन्वय हैइन्हें उदाहरण प्रस्तुत कर स्पष्ट किया गया है। इसके साथ ही लोकगाथा में वणित अनेक देवी-देवताओं, अप्सरा, गन्धर्व, मंत्र, जादू, टोना तथा विश्वासों पर भी विचार किया गया है।

दशम अध्याय में पांच प्रकरण है। पहले प्रकरण में, ‘भोजपुरी लोकगाथा में अवतारवाद’ की समीक्षा की गई है। भोजपूरी लोकगाथाओं के अधिकांश नायक एवं नायिकाएं अवतार के रूप में वर्णित हैं । उदाहरण सहित इस विषय पर प्रकाश डाला गया है ।

दूसरे प्रकरण में भोजपुरी लोकगाथा में ‘अमानवतत्त्व’ की मीमांसा की गई है। लोकगाथानों में अमानवतत्त्व की बहुलता रहती है। इसमें थलचर नभचर, तथा जलचर सभी क्रियावान् रहते हैं और कथानक में प्रमुख भाग लेते हैं। अतएव भोजपुरी लोकगाथाओं में अमानवतत्त्व का प्रयोग किस रूप में हुआ हैं, उदाहरण सहित प्रस्तुत किया गया है।

तीसरे प्रकरण में भोजपुरी लोकगाथा में कुछ समानता’ का विवरण दिना गया है। परंपरानुगत मौखिक साहित्य में समानताएं मिलनी स्वाभाविक हैं । इस प्रकरण में प्राप्त समानताओं, अभिप्रायों तथा कथानक रूढ़ियों को प्रस्तुत कर के विचार किया गया है।

चौथे प्रकरण में भोजपुरी लोकगाथा एक जातीय साहित्य’ पर विचार प्रस्तुत किया गया है। संसार के सभी देशों के लोकसाहित्य की विशेषताएं प्रायः समान होती हैं । सांस्कृतिक एवं भौगोलिक अन्तर होने के फलस्वरूप उनमें कुछ अपनी विशेषताएं आ जाती हैं। प्रस्तुत प्रकरण में इसी पर विचार किया गया गया है।

पाँचवां प्रकरण ‘उपसंहार’ है । इसमें लोकगाथानों के अध्ययन की महत्ता, लोकगाथाओं के संरक्षण का उपाय, लोकसाहित्य विषयक अनेक संस्थानों का परिचय, तथा राज्य की सहायता से लोकसाहित्य के अध्ययन के लिए केन्द्रीय संस्था की आवश्यकता का निर्देश किया गया है।

अन्तिम परिशिष्ट है । इसके दो भाग है । भाग ‘क’ में भोजपुरी लोकगाथाओं के प्रमुख अंश प्रस्तुत किए गए है । भाग ‘ख’ में सहायक ग्रंथों एवं पत्र-पत्रिकाओं की सूची दी गई है।

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रउवा खातिर  
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