आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस, बरखा में पिया रहितन पासवा बटोहिया।
पिया अइतन बुनिया में,राखि लेतीं दुनिया में, अखरेला अधिका सवनवाँ बटोहिया।
आई जब मास भादों, सभे खेली दही-कादो, कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया।
आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम दिनवाँ के, लूकवा समानवाँ बुझाला हो बटोहिया।
कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में, हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया।
अगहन- पूस मासे, दुख कहीं केकरा से? बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया।
मास आई बाघवा, कँपावे लागी माघवा, त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया।
पलंग बा सूनवाँ, का कइली अवगुनवाँ , भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया।
कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली, पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया।
चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब, जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया।
मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल, कहत ‘भिखारी’ खोजऽ पिया के बटोहिया।
राहुल सांकृत्यायन के ‘अनगढ़ हीरा’ , जगदीशचंद्र माथुर के ‘भरत मुनि के परंपरा के कलाकार’ , भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के जनम 18.12.1887 के बिहार के सारन ज़िले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव मे भएल रहे । बंगाल , खड़गपुर , जगन्नाथपुरी घुमलन फेर उनका पर सरसत्ती सहाय भइली । भिखारी ठाकुर अपना नाटकन में नासाखोरी, धर्मिक पाखण्ड, संयुक्त परिवार बिखरे के त्रासदी, बेटी बेचे के कुप्रथा, नारी पर अत्याचार वगैरह के खिलाफ आवाज बुलंद कइलन । भोजपुरी के सनेस चहुंपावे वाला, नारी-दलित विमर्श के उद्घोसना करे वाला , लोक गीत , भजन कीर्तन के साधना करे वाला “भिखारी” सामंती सोच, समाज के छल-प्रपंच आदि के अइसन चुहल व्यंग्य मे कह देहलन जेकर ऊपरी सरूप जेतना सरल रहे भीतर से उ ओतने हाहाकार से भरल रहे। मनुष्यता के चीख, दर्द जे बेचैन करे, गहन संकट काल में विश्वास देवे , दुख से, प्रपंच से लड़े खातिर शक्ति देवे । उ 10 जुलाई, 1971 के 84 बरिस के अरदोआये मे रामनामसत्त भईलन।
– डा. एस के सिंह जी के फेसबुक वाल से