परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा संजीव शुक्ल जी के लिखल भोजपुरी कविता नवका जमाना, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा संजीव शुक्ल जी के लिखल इ रचना कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि शेयर जरूर करी।
आईल घोर कलयुग भरल सगरो हताशा
जेने देखीं ओने लऊके बीगड़ल जमाना,
कइसन ई जुग आईल कइसन ई जमाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।१।।
बबुआ बबुनी घुमत बाड़े बाईक पर सटके
लाज लजाई बाकीर बईठी नाही हट के,
बापू , भाई देखे देखे सगरो जमाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।२।।
बबुआ बड़हन बाल राखे मोछ राखे छील के
बबुनी के चाल बीगड़ल, सेन्डिल ऊचा हील के,
शरम सगरो छुटल उठल लाज के जनाजा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।३।।
माई बाबू तीत भईलें रोजे बा तमाशा
सास ससुर मीठ जईसे चीनीया बतासा,
बाप माई बोझ लागे ससुर भाग्य दाता
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।४।।
कहाँ से हम शुरू करीं कहाँ ले हम जाईं
भाई – भाई मुदई भईले रोजे बा लड़ाई,
चोरी कईके घरमें करे भाई से बहाना
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।५।।
खोज ना खबर तनिको बाटे माई बाप के
बबुआ फुटानी जोते जघे जघे चांप के,
बबुआ निकम्मा खेरलस बाप के हताशा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।६।।
जेने देखीं झूठ-सांच पाप के बाजार बा
पापीयन के चलत नाहीं दउड़त सरकार बा
धरम करम पर जे रहे खायेला तमाचा
कइसन – कइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।७।।
रउवा खातिर:
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देहाती गारी आ ओरहन
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