देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल भोजपुरी कविता कईसन बिधना के रीत आ कहां हेराईल ग्यान

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कईसन बिधना के रीत

समय अईसने बा बहकि जाला केहु,
तनीए सा मिलते सहकि जाला केहु।

चाहला प तनिको मिलल ना जवन,
छनही में काहे बमकि जाला केहु।

बिधना के दिहल जे मोल ना बुझल,
उ अचके में जाने सनकि जाला केहु।

जवन मिलेला ओहके बचवले रहीं ,
जाने कहते में काहे पनकि जाला केहु।

काम रहले तक सभे रहे साथ में ,
काम होते पलक में सरकि जाला केहु।

एकदिन सटल रह ई कहियो देनी,
बात सुनते हुंमच के भड़कि जाला केहु।

अब त सुसुकि सुसुकि राहि चलत चलीं,
देखते हमके डगर में छरकि जाला केहु।

कहां हेराईल ग्यान

पिलुआ जस पिचुटा गईनी
भोथर धार से थुरा गईनी,
अईसन लोग बोलल बोली
कि अपने के भुला गईनी।।

रहीं पंडितई के पेस्तउल
उ ग्यान के गगरी हेरा गईनी,
बुधी के बटलोही मुरुचाईल
कानून के कनस्तर भोरा गईनी।।

प्यार के बरगुना चुए लागल
नेह के कठवत हेरा गईनी,
सवांग के कराही में छेदछेद
पचकल तसला जस बिका गईनी।।

बेवहार के पुता अईसन भसल
कि राखि अस उडि़या गईनी,
खरिहान के खंखरी जस जरीं
सुखल पुअरा अस भभा गईनी।।

देखि दुनिया के रीत राय,
हमरा बुझात नईखे कहां गईनी?

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