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संजय कुमार ओझा जी के लिखल भोजपुरी कविता जहर बना के धरम के

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संजय कुमार ओझा जी

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जात पात के खेल खेलाऽता,
नफरत के रोज बीया बोआता,
राम रहीम में फरक बता के,
रोज रोज भाईचारा तूड़ाता ।
आंख पर पड़ल परदा अइसन,
बूझ ना पावे मरम के,
समाज में केहू घोर ना पावे,
जहर बना के धरम के ।।

संजय कुमार ओझा जी
संजय कुमार ओझा जी

भाई भवऽधी छूटत जाता,
तोर मोर का खेला में,
दिन-इमान के भाव बही ग‌इल,
राजनीति का रेला में ।
इरखा द्वेस में डूबल बा मन,
भूल गइल बा करम के,
समाज में केहू घोर ना पावे,
जहर बना के धरम के ।।

आईं एगो काम क‌रीं जा,
माटी के कर्जा इयाद करीं जा,
आपन सवारथ छोड़ छाड़,
कुछ इन्सानी काम करीं जा ।
देशहित के उपर राखीं
तियाग अहं अउर शरम के,
समाज में केहू घोर ना पावे,
जहर बना के धरम के ।।

चाहे पढ़ी गीता रामायण,
गुरूवाणी, बाईबील, कुरान,
पाठ पढ़ाईं र‌उरा अइसन,
लोग के मरो नाहीं इमान ।
चलीं मिली के दूर क‌रीं जा,
लोग के मन का भरम के,
समाज में केहू घोर ना पावे,
जहर बना के धरम के ।।

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