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दीपक तिवारी जी के लिखल भोजपुरी कविता फरजी चेक

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कई साल पहिले के घटल, आँखों देखी घटना हँ।
बिहार राज्य में भइल रहे, राजधानी जेकर पटना हँ।

परिवार में एकहि लइका रहे,बाप माई के आँख के तारा।
पढ़े लिखे में उम्दा रहे,होशियार नीमन बेवहारा।

खेल कूद में बढ़ चढ़ के, लेत रहे हमेशा उ भाग।
रहे लइका सुन्नर देख के, मन हो जाउ बाग बाग।

एक दिन अइसन आइल, नौकरी लाग गइल सरकारी।
फुले बाप समइले नाही, हरसत रहली महतारी।

भइल सयान शादी के जोगे,आवे लागल लो तिलकहरू।
कहे लो लइकी सुख नु करि, लइका बाटे शहरू।

दान दहेज तई भइल,ओकरा मामा के अगुआई में।
बाप ना तनिको बुझले,की गिरा दी सरवा खाई में।

तिलक के पहिले बात रहे हो,नगद रुपिया देबे के।
तिलक का दिने आके बेटिहा,कहलन हई चेक लेबे के।

भीड़ भाड़ में समय ना मिलs, बैंक में चेक जमा करे के।
वादा के मुताबिक मिल गइल रहे, कवनो बात ना रहे डरे के।

बर बिआह सभ हो गइल,दुल्हिन घरे आ गइली।
खुँश रहे सारा घर, बहु सास के मन के भा गइली।

हित नात के बर बिदाई,बड़ा खुँशी मन से कइल लो।
जब सगरो से छुटकारा मिलल,त चेक बैंक में ले के गइल लो।

रहले हर काम में संघे संघे,बैंक में चेक करवले जामा।
आ ओहिदीन से पता ना चलल, कहा गइले लइका के मामा।

धोखा भइल रहे संघे शुरुवे से,सभ जानत रहले मामा।
आजादी पूरा देले रहली, अपना भाई के लइका के आँमा।

बैंक मैनेजर कहले बोला के, खाता में नइखे माल।
एतना सुनते लइका के बाप के, अखियाँ हो गइल लाल।

धाधाइल रहे लो जवना प, उ चेकवा रहे फरजी।
केकरा लगे जाउ लो अब, ए ममला के लेके अरजी।

उदासी छाँ गइल चेहरा प, मुहँवा गइल लरक।
ई कुल्ह बात जब लइका जनsलस,त गइल उ भड़क।

जे भी जानल कहे लागल बेटिहवा, बड़ा चालू बा।
समोसा के भीतर के जानता, भरल आटा की आलू बा।

आजुओ ले उ नइखे मिलल, तई भइल रहे जवन पइसा।
कई गो नाती नातिन के,बाबा कई दिहले सतइसा।

बात मानब लो दीपक के,अगते ले लेब लो पाई पाई।
आ सचेत रहब लो पहिले से, बात चेक के जब भी आई।

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