परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा ममता सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता औरत , पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा ममता सिंह जी लिखल भोजपुरी कविता ( Bhojpuri Kavita) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कविता के शेयर जरूर करी।
औरत के कोई परिभाषा नाही इ त अपरिभाषित बारी
आपन कोई रंग नईखे
बाकी हर रंग में समाहित बारी
समय परिस्थिति जईसन होला
ओह में खुद से ढल जाएली
औरत एहीला कहलाएली।
जईसे जल के कोई रंग ना होला
ना कोई आकार होला
जल बिना इ जीवन
निराकार असाध्य होला
ई जीवन भी औरत बिना
असाध्य आ निराकार होला
पिता के इज्जत रहली पहीले
पति के सम्मान बन जाएली
इनकर सीमा निश्चित कईल बा
रसोईघर आ बिस्तर तक
आ घर के चहारदीवारी तक
दया और प्यार के प्रति मूर्ति बन
मां के प्यार लुटावेली
पति के प्रेयसी बनके जीवन बगिया महकावेली ।
आए केहु पर कोई विपत्ती
दुर्गा काली बन जाएली।
ई सब एक अतीत के बात ह,
समय के साथ परिभाषा बदलल
औरत अब अबला ना रहली
हर कदम पर साथ चल के
बराबर की भागीदारी बारी।।
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