परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी कहानी सीत-बसंत, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि भोजपुरी लोक कथा सीत-बसंत कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।
एगो राजा रहलन । उन्हुकर दूगो लइका रहलन स- सीत आ बसंत । सीत के जनम सीत रितु में आ बसंत के बसंत रितु में भइल रहे । ओकरा बाद रानी ई दुनिया छोड़ि देले रहली । उदास राजा एक दिन देखलन कि झरोखा पर जवन गवरइया खोंता लगवले रहे, ऊ मू गइलि रहे ।
ओकरा मुवला का बाद जवन गवरइया उहवाँ आइलि रहे, ऊ आवते सभसे पहिले पहिलकी गवरइया के दूनों अंडा के ठोर से मारिके जमीन पर गिरा देले रहेराजा ई देखिके काँपि उठल रहलन आ दोसर बियाह ना करेके निरनय ले लिहलन । बाकिर दूनों लइका जब माई ले आवे के जिद करे लगलन स, त उन्हुका आपन इरादा बदले के परल । जहिया राजा के बियाह के बरियात निकलत रहे, ओही घरी महल से बहरियात लछिमी कहले रहली कि रानी के राति में साँप डॅसि ली । सीत आ बसंत ई बात सुनिके हक्का-बक्का हो गइलन स दूनों रानी के सूतेवाला घर में पलंगरी का नीचे तलवार लेके लुका गइलन स आ रात में जइसहीं साँप घर में ढूके लागल, ऊ तलवार से ओकर गरदन काटि दिहलन स ।
बाकिर मयभा महतारी सीत-बसंत के फुटलो आँखि ना देखल चाहत रहली । ऊ राजा से कहली कि ऊ अपना दूनों बेटन के जब ले कतल कराके खून ना देखइहन, तब ले ऊ कवनो सुख भोग ना कऽ पइहन । मजबूरन राजा एगो चांडाल के बोला के समुझवलन कि ऊ दूनों राजकुमार के वन में ले जाके कतल कऽ देउ आ खून लेके आवो । सीत-बसंत जब चांडाल के सोना के अंगूठी देत जान बचावे के गोहार लगवल स, त ऊ दूनों के दोसरा राज में चलि जाए के कहलस आ एगो सियार के मारिके ओकरे खून राजा के सउँपि दिहलस । तब जाके रानी के चैन मिलल ।
राजा दूनों बेटन के वियोग में छुपि-छुपि के अतना रोवलन कि उन्हुकर दूनों आँखि बइठि गइली स । फेरु त राजकाज रानी के हाथ में आ गइल । आस्ते-आस्ते सउँसे राजपाट हाथ से निकलि गइल आ हाल अइसन बेहाल भइल कि रानी के अब दोसरा का घर में कूटिया-पिसिया कऽके दिन काटे के परत रहे
ओने सीत-बसंत दोसरा राज में जाके दर-दर के ठोकर खात रहलन स । जब भूखि का मारे रहल ना गइल, त सीत मछरी मारिके ले आइल आ बसंत से कहलस, “गाँव से माँगि के आगी ले आवs ! तब तक हम सूखल लकड़ी बिटोरत बानी ।”
बसंत जब बस्ती में दुकलस त उहवाँ के नजारा देखिके अकबका गइल । उहवाँ के राजा के बेटी के बियाह खातिर जयमाल होत रहे । कई जगहा के राजा लोग जुटल रहे आ एगो हाथी जयमाला लेके राजा लोगन का बीचे घूमत रहे । बसंत कौतुक से उहवाँ ठाढ़ हो गइल । हाथी आगा बढिके ओकरे गरदन में माला डालि दिहलस ।
“अरे भाई, ई त कवनो भिखार-कंगाल बुझात बा !” कहिके राजा ओकरा गरदन से माला निकालि लिहलन आ फेरु हाथी के सूंढ में डालि दिहलन बाकिर हाथी घूमि-फिरि के फेरु से माला बसंते के गरदन में पहिरा दिहलस । राजा खिसिया के माला निकाले खातिर जब आगा बढ़लन, त राजकुमारी उन्हुका के रोकत कहली, “हमरा नसीब में इहे दुलहा बा । हमार बियाह अब इन्हिके से होई ।” ऊ खुदो जाके माला डालि दिहली ।
“बाकिर हम त साँचो के भिखार-कंगाल बानी । हमरा त घरो-दुआर नइखे । फेरु हम राजकुमारी जी के कहवाँ राखब !”
बसंत के बेबसी पर राजा कहलन, “हम तहरा सचाई पर बहुत खुस वानी आ आपन आधा राजपाट देत बानी ।”
राजकुमारी आ बसंत के बियाह धूमधाम से भइल । बसत सीतो के बोलवा लिहलस । राजा दोसरकी राजकुमारी के हाथ सीत का सँगें पीयर का दिहलन ।
सीत आ बसंत अपना महतारी-बाप के हाल जाने खातिर जब ओह राज में पहुँचलन स, त आन्हर बाप आ कूटिया -पिसिया करत मजूर माई के हाल देखिके मर्माहत हो गइलन स। सीत आ वसंत के जीयत जानिके एक ओर बाप के खुसी के पारावार ना रहल, उहँवें दोसरा ओर मयभा महतारी अपना करनी पर लोर बहावे लगली । दूनों जाना के सीत-बसंत अपना राज में ले अइलन स । महतारी-बाप के सुख के दिन फेरु लवटि आइल ।
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