पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी गुरु-दक्षिणा

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भोजपुरी कहानी गुरु-दक्षिणा मानव मूल्य परक कहानी बा। एगो छात्र बेरोजगारी के त्रस्त होके चोरी के दुष्कर्म करऽता। बाकिर जब ओकरा पता चलता कि चोरावल सामान ओकरा गुरु प्राचार्य डॉ. करमरकर के बा त ओकरा चरित्र में एकाएक परिवर्तन आव ता आ ऊ कुल्हि सामान क्षमा याचना के संगे लौटावे के नीयत से ट्रेन में राख आवऽता।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर करमरकर सोचलन कि कॉलेज के विज्ञान-यंत्र खुदे पसंद कर के कीनल जाव। एह खातिर पाँच हजार रुपया ले के कलकत्ता चल पड़ले। एगो सूटकेस में आपन कपड़ा आ जरूरी सामान के साथ पाँच हजार रुपया के नोट के गड्डी भी रख ले ले आ पहिला दरजा के टिकट ले के आधा रात के गाड़ी में बनारस कैंटोनमेंट टीसन पर सवार हो गइले। एगो बेंच पर आपन बिस्तर लगवले आ ओही पर सूटकेस रख देले। एकरा बाद ठाट से सूत गइले।

पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी गुरु-दक्षिणा
पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी गुरु-दक्षिणा

भोरे जब उनकर नींद खुलल त गाड़ी एगो टीसन पर खड़ा रहे। जब आपन सूटकेस खोलल चहलन त देखलन कि उनकर सूटकेस गायब बा। बड़ा फेर में पड़ले। कलकत्ता का ओर बढ़स कि इहवेसे से कौनो ट्रेन से वापस जाससंयोग से उनकर मनी बेग उनका पासहीं रह गइल रहे, जे में आवे-जावे के खरचा के लाएक रुपया रहे, बाकिर कपड़ा आ सामान कीने खातिर पाँच हजार रुपया त ओही बकसा में रहेकलकत्ता पहुँचला पर बदले खातिर कपड़ा तक उनका पास ना रह गइल रहे। बाकिर फेर कुछ सोच-विचार के कलकत्ते जाए के तय कइलन। पुलिस के खबर दे के बेकार के बवाल खड़ा कइल अच्छा ना समुझले, काहे कि रुपया त अब मीले से रहल।

हबड़ा टीसन पर उतर के एगो टैक्सी कइलन आ अपना इयार प्रोफेसर एस.पी. मुखर्जी के इहाँ चल पड़ले। प्रोफेसर मुखर्जी से मिलला पर आपबीती उनका से कह सुनवले आ पाँच सौ रुपया उनका से उधार लेले। ओही रुपया से अपना खातिर कुछ कपड़ा आ जरूरी सामान किनले आ चार सौ रुपया बेयाना दे के कॉलेज खातिर वैज्ञानिक यंत्र कीन लेले, आ ओह यंत्र सब के पार्सल से भेज देबे के आर्डर दे देले। बाकी रुपया खातिर दूकानदार के बिल भेज देबे के कहले। प्रोफेसर मुखर्जी के साथ रहला से उनका कवनो दिक्कत ना भइल

सब काम खतम क के तीसरा दिने आधा रात के गाड़ी से बनारस खातिर रवाना भइले। अबकी बार एगो छोटहने चमड़ा के सूटकेस किनले रहले। ओकरा के अपना सिरहाने तकिया के नीचे दबा के रख लेले रहले। भोरे जब नींद टूटल त पर-पाखाना से निपट लेबे के खेयाल से बेंच के नीचे उतरलें। उनकर गोड़ एगो बकसा से ठेकल। देखस, त ई त उनकर उहे बकसा रहे जे चोरी चल गइल रहे। चाभी उनका पास रहबे कइल। तुरते खोल के देखे लगले। देखलन कि उनकर सभ सामान जइसे के तइसे रखल बा- तनिको एने-ओने नइखे कइल गइल। रुपया भी पूरा के पूरा बकसा में मौजूद बा। उनका नाँव के एगो मोहरबन्द लिफाफा सब सामान का ऊपर रखल बा।

लिफाफा खोल देलन। ओमें से एक सौ रुपया के एगो नोट आ एगो चिट्ठी निकलल जे उनही के लिखल गइल रहे। चिट्ठी पढे लगले-

गुरुजी!

अपने के चरन में हमार प्रणाम पहुँचे। जब हमार साथी लोग एह बकसा के हमरा आगे रखलन त हम देखनी कि ओकरा ऊपर अपने के नाम आ पता लिखल बा। हमनी के चोरी आ डकैती जइसन नीच करम में लागल बानी जरूर, बाकिर जवना गुरुजी के छत्रछाया में रहके हम एम.एस-सी. तक के पढ़ाई पढ़नी उनकर चीज हमरा चाहे हमरा साथी लोग से लूट लेहल जाय, हम एकरा के ना सह सकीं। हमनी अइसने काम में लागल बानी जवना के अपना के सभ्य कहे वाला समाज नीच काम बूझेला; बाकिर अइसन काम करे में हमनी के मजबूरी बा।

हम खुदे एम.एस-सी. हईं; हमरा साथी लोग में केहू भी ग्रेजुएट से कम नइखे। तबहूँ हमनी अइसन काम में लागल बानी। काहे ? काहे कि हमारा सामने सवाल बा-हम जीहीं त कइसे ? पापी पेट खातिर हमरा कुछ ना कुछ त करहीं के बा।

बाल-बच्चा के परवरिस कहाँ से होखी ? पढ़ाई-लिखाई में त हमनी में से जादे लोग अपना घरहूं के आटा गील क चुकल बा। पढ़-लिख के तइयार भइला के बाद हमनी के देखतानी कि हमनी खातिर कवनो कामे नइखे। फेर हमनी के करीं त का ?

अपने के आज्ञाकारी,
अपनहीं के एगो चेला।

फेन- एही लिफाफा में गुरु-दक्षिणा के रूप में अपने का एक सौ रुपया के एगो नोट पाएब। हम रउरा के बिसवास दिलावत बानी कि ई रुपया अमीर लोग के खजाना से लूटल गइल बा। हमनी का गरीबन के कबहीं ना सताईं। एह से एकरा के कबूल करे में अपने का संकोच मत कइल जाई।

प्रिंसिपल डॉक्टर करमरकर जब हिन्दू विश्वविद्यालय के अपना क्वाटर में घुसले, त उनकर चेहरा उतरल रहे, आ अपना ओह बेचीन्हल चेला के पेशा पर गंभीर हो के सोंचत रहले।

लेखक पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह जी के बारे में

पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह के जन्म 19 मई, 1905 के सारण जिला के शीतलपुर में भइल रहे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इनकर शिक्षा-दीक्षा भइल रहे। द्विवेदी युग के सुप्रसिद्ध साहित्यकार दामोदर सहाय‘कवि किंकर’ के सुपुत्र के रूप में साहित्यिक प्रतिभा विरासत के रूप में मिलल रहे। घरौंदा (हिन्दी कहानी संग्रह), खरोंच (भोजपुरी कहानी संग्रह) इनकर प्रकाशित पुस्तक बा एकरा अलावे ‘बवाल विनय’, ‘भारत-गीत’, ‘ग्राम-जीवन’ के सम्पादनों इहां के कइले रहीं। हिन्दी-भोजपुरी के विभिन्न पत्र-पत्रिकन में इनकर सैकड़न कहानी आदि प्रकाशित बा। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन आ बिहार सरकार के राजभाषा विभाग से इनका सम्मनित कइल जा चुकल बा।

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