परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव संगीत सुभाष जी के लिखल भोजपुरी कहानी बेर कुबेर, रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा संगीत सुभाष जी जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर आ लाइक जरूर करी।
मनोहर कवनो काम से गोपालगंज जात रहलें। घर से निकललें तबे मलिकाइन कहली -‘ गाड़ी- घोड़ा के कवनो ठीक ना ह। आपन काम भइला का बाद एने- ओने रूकिके समय मति जिआन करबि, जल्दी बस पकड़ि के घरे चलि आएबि। अबेर होला त जिउ संशा में परि जाला।’
मनोहर कहलें- ‘ठीकबा, ठीक बा। तू चिन्ता मति करS। साँझि बेरा कई गो नेवता बा, जल्दिए आएबि।’ मनोहर घर से निकलि गइलें।
सड़क पर आके बस पर बइठलें। बस चलि दिहलसि। बस में बइठल सोचत रहलें कि आजु 10 बजे राति ले सँवास ना मिली। गोपालगंज से लवटि के कहाँ- कहाँ नेवता करे जाए के बा, जोजना बनावत रहलें। लेकिन, होनी कुछ दोसरे सोचले रहे। मीरगंज से बस आगे बढ़ल। गोपालगंज का ओर से बहुत तेजी से आवत एगो बस आ मनोहर जवना में रहलें ओ बस में आमने- सामने के जोरदार टक्कर भइल। दुनू बस सड़क से बहुत दूर जाके कई पलटनियाँ उलटि गइली सन। चोट आ दरद से लोग में चिग्घाड़ मचि गइल।
मनोहर का कपार में बहुत जोर से चोट लागल। खून के धार बहि चलल। कवनो तरे अगल- बगल के गाँवन के लोग बाहर निकलले रहे। बाहर धरती पर पटाइल मनोहर सोचलें कि इहाँ के दाही मिली? तले थावे में रहेआला इयार जनकदेव मन परि गइलें।
जनकदेव के मोबाइल बाजल। बड़ा नीमन रिंगटोन रहे–‘यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी।’ जनकदेव आवाज सुनिके मोबाइल देखलें आ ध देहलें। दू मिनट बाद दोहरउआ मोबाइल बाजल। फेरू देखलें आ फेरू ध दिहलें। उनुके मलिकाइन कहली कि फोनवा आवता त उठावत काहें नइखीं। जनकदेव कहलें कि का उठाईं? एके संग के पढ़ल मनोहरा ह। जब गोपालगंज आवेला त फोन क के बोला लेला आ अनासहुँ एने- ओने के बात बतिआवेला। जइसे, हमरा कवनो कामे नइखे? करे दS फोन, हम साँझी खान हालिचालि पूछि लेबि।
तेहरउआ फोन आइल। जनकदेव ना उठवले। मलिकाइन कहबो कइली कि कवनो अफड़ा- तफड़ी होई, फोनवा त उठाके सुनि लीं। ए बेर मलिकाइन के डाँटि देहलें -‘ तूहीं जानतारू, अफड़ा- तफड़ी? हम पूछबि नू हालिचालि।’
साँझि बेरा जनकदेव बेमने के मनोहर का नमर पर फोन लगवलें आ अनजान आवाज सुनिके पूछलें -‘ रउरा के बोलतानीं? मनोहर कहाँ बाड़ें?’
‘हम गोपालगंज से दरोगा जी बोलतानीं। बस- दुर्घटना में कई अदिमी के जान चलि गइल बा आ कई अदिमी घाही बा। सबलोग अस्पताल में बा। अनगिनत छिटाइल मोबाइलन में इहो मोबाइल मिलल बा। अपने आके देखि लीं कि जेकरा लग फोन कइनीं हँ, उहो त ओइमें नइखे?’
जनकदेव का अपना फोन ना उठवला की गलती के अफसोस होखे लागल। मन कोठा- कोठा दउरे लागल। जल्दी से मोटरसाइकिल से अस्पताल चहुँपलें। सब घाही लो के देखलें, मनोहर ना लउकलें। जनकदेव समुझि गइलें कि हमार इयार अब ए दुनियाँ में नइखन। मनोहर के जगह का अभाव में भुँइया सुतावल देखते आँखि लोर से भरि आइल। जइसे कि मनोहर कहत होखसु–“अब कबो फोन क के तहके परसान ना करबि, ए इयार।”
जनकदेव का चवन्हा आवे लागल। अलगे डाक्टर लो बतिआवत रहे– ‘ए अदिमी के त बँचावल जा सकत रहे। अगर, समय से अस्पताल आ गइल रहित आ एतना खून ना बहल रहित त।
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