परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव अमित सिंह लोहतम जी के लिखल भोजपुरी कहानी बड बने में कुछ लागेला, रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा अमित सिंह लोहतम जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।
गंगा जी के किछाड़ा बसल एगो गांव रहे ओह गांव में वसुदेव अवरू चक्रधर नाम के दुगो सहोदर भाई रहत रहन । लइकाई में ही उनकरा लोग के बाबूजी स्वर्ग सिधार गइले जवना घरी वासुदेव के उमिर बारह बरिस आ चक्रधर के उमिर सात बरिस रहे। अब सारा घर के बोझा वसुदेव के कान्हा पे आ गईल रहे एगो बारह बरीस के लइका के जिनगी भादो के अन्हरिया हो गइल रहे। घर में वसुदेव के मुस्मात माई , पुरानिआ दादी- बाबा और दुगो बहिन के बोझा वसुदेव के ऊपर आ गईल काहे की घर में बड रहले। वसुदेव अभी छठवां क्लास में पढ़त रहले।
बाबूजी नोकरी में रहन ओह चलते कुछ पिंसीन माई के मिलत रहे जवना से आतना लमहर परिवार के दुनो बेरा के खरची चलावल भी पहाड़ लागत रहे । वसुदेव बेचारा के नानह उमीर रहल हा ऊपर से अनेरिया लाइका असही करेज़-टुटु हो जाला। घर में बुढ बाबा रहन थोड़ बहुत खेती-बधारी करत रहन जवना से कि घर के दुनो बेरा के भोजन चल सके हाल त ई रहे की गंगा जी के किछाड़ा गाॅव रहे ओह चलते धान के खेती ना हो पावत रहे काहे की हर सावन भादो में बाढ़ आ जात रहे बासुदेव लगे आतना पईसा ना रहे की चाऊर कीन लेस ।
वसुदेव तब बेचारे गेहूं के ही भात बना के अपन गरीबी में खात रहन काहे की तीनो पहर केहू रोटी ना खा सकेला ई सब देख के ऊ खाली आपन कमीनी के बारे में फिकिर करत रहन जइसे तइसे मैट्रिक पास कईले। एईसे पुरनिया पहिले कहत रहन जे मैट्रिक परीक्षा पास क लेल ऊ एक बिगहा कीन लेलस एईसन कहाऊत कहात रहे लेकिन बासुदेव के ता दिन पर दिन एक एक बिगहा खेत घर के खरची चालावे में ही बन्हकी राखात जात रहे ई सब देख के बासुदेव पानी बिना मछड़ी जइसन छटपटात रहन ओकरा बाद ऊ नोकरी चाकरी के फेरा में दउडे धुपे लगले हालांकि अनुकंपा पर बाबूजी के नोकरी के जगह पर उनकर नोकरी फउज में होत रहे काहे की उनकर बाबू जी फ़उज में रहन आ नोकरी में ही मऊअत भईल रहे बाकी ऊ आपन परिवार के देखते हुए सोचले कि अगर हम फउज में नोकरी करम त घर कइसे चली बाबा साठ बरिस के पुरानिया बाडे फउज में पुराना समय में 6 महीना पर छुट्टी मिलत रहे त हमरा घर के कोई देखे वाला ना रह जाई और हमार घर में बुढ़ बाबा दादी आ बहिन भाई सब एक बार फेरू अनेरिया हो जाई खइला बिना मर जाई।
गोतीया- पटीदार त सब बनला पर के ही होला अबरिया के त बरियारी खेत भी जोत लेवेला जईसे तईसे अपने राज्य में सरकारी नोकरी के फिरका में पडल रहले ढेर मेंनहत कइला के बादो कहूं नोकरी ना मिलल एही बिचे उनकर बियाह के भी बात होखे लागल काहे कि घर में काम -धाम करे वाला कोई ना रह गईल रहे बाबूजी के मरला के बाद उनकर माई के माथा पागल गइल रहै दिन प दिन उनकर मिजाज खराब भईल जात रहे।
बासुदेव के नाए के ना केहू खेवे वाला रहे ना किनारे लगावे वाला। कईसहू वासुदेव के बियाह भईल बियाह के कुछ दिन बाद दादी के मऊअत हो गईल जइसे तइसे खेत -बधार बनहकी राख के दादी के किरिया करम भईल। वसुदेव के हमेशा फिकीर सतावत रहे कि नोकरी ना लागी त का होई। घर के खरची चलावे में ही हर महीना केहू से दांत चियार के करजा लेवे के पड़त रहे एही कंगाली देख के वसुदेव सेठ के दोकान पर 150 रोपया महीना पर नोकरी करे लगले। अब जइसे तइसे घर के कुछ खर्चा चले लागल एही बीच में वसुदेव के खेत बनहकी रखात जात रहे वसुदेव के कानहा पर अतना बोझा रहे जतना गदहा पर जबरी लादाला। दादी के किरिया के 6 महीना के बाद बाबा के मऊअत हो गईल बाबा के किरिया करें में वसुदेव के फिर आपन बाचल खेत बनहकी रखे के पड़ल जइसे तइसे वसुदेव के जिनगी कटत रहे बाकी कभी ऊ आपन भाई चक्रधर के एह बारे में एहसास ना होखे देलें। उनकारा के बढ़िया से बढ़िया पढ़ाई कपड़ा हर सुविधा देवेे के कोशिश कईले जतना सावंग रहे बासुदेव के शादी के दु साल हो गइल तीसरा साल में बासुदेव के पहिलका संतान एगो लईकी भइल बासुदेव के बोझा दिन पर दिन हनुमान जी पोंछ नियन बढल जात रहे।
घर में एगो पागल माई, एगो भाई, एगो मेहरारू, एगो लईकी, दूगो सेयान बहिन, साथे साथे सऊसे खेत बनहकी रखाईल बारह बरिस के बाद बसुदेव कबो आपन जिन गी में कातिक के पुरणवाशी के चांद ना देखले। जब उमर बीते लागल तब वसुदेव सोचले की काहे ना खेती ही करके अपन दिन दशा सुधारल जाए अाउरू खेती में लग गईले लेकिन आपन भाई के हमेशा पढ़ावेे पर ध्यान देले जवना से उनकारा कबो इ ना बुझाए की हम बिना बाप के लइका हई यही बीच में खेते से आवत रहले की बीच में ही डाकखाना पर उनका पता चलल की सरकारी नोकरी के कागज ( ज्वाइनिग लेटर) आ गईल बा और जल्द ही जाए के बा खेती के बीच में ही छोड़के आ एगो बूढ़ बैल के बेच नोकरी करे चल गइले नोकरी पर जाए से पहिले साल भर के घर के अनाज पानी बैल वाला पईसा आ कुछ करजा -गोआम लेके घरे राख देले जवना से की परिवार के खाए पिए में दूसरा के मूह ना ताके के परे ।
धीरे-धीरे उनकर छोट भाई चक्रधर के भी मैट्रिक के परीक्षा के रिजल्ट आ गईल चक्रधर भी नोकरी करे खातिर बेअगर रहले । चुकी बाबूजी के अनुकंपा के जगह खाली रहे ओह चलते चक्रधर फऊज में भर्ती हो गइले अब दूनों भाई कमाए लागल, माई के पिंसीन मिलत ही रहे तनी मनी वसुदेव के दिन दासा चिकन होखॆ लागल। चक्रधर के नोकरी के टरेनिग के बाद धूमधाम से चक्रधर के बियाह कईले जे से केहू ई ना कहे कि बाप ना रहले त छोट भाई के बियाह समय पर ना भ इल अा कमीनी खाए लगले। बियाह होते ही चक्रधर के मिजाज में बदलाव आवे लागल जईसे जेठ में गदहा के देह पे रोहानि चढ़ेला ।
पुरान दुख भुला के आपन मेहरारू के फेरा में रहे लगले तुरंत घर में कहले कि हमरा आपन परिवार के अपना साथे बाहर रखे के बा ई युग में परिवार माने मेहरारू होत रहे बेचारे बासुदेव जवन सोचले रहले ऊ सपना अब टूट के उजरे लाग़ल जैसे बनल बनावल चिरई के खोता उजर जाला कवनो आंधी बरखा में।बासुदेव खाली अतने कहले कि घर में दूगो जवान बहिन बाडी स बियाह सादी करे के बा कुछ दिन रुक जइता ता सब काम सम्हरा जाईत बाकी चक्रधर ना मानल आ आपन मेहरारू लेके नोकरी पर रहे लागल घर में दुगो जवान बहिन के बियाह अभी बाकी रहे चक्रधर सार ससुरारी से अानघा लगाव रखे लागल घर के कवनो उनका मतलब ना रहल काहे की वसुदेव शुरू से ही चक्रधर के कवनो बोझा ना देले छोट भाई होखे के दाह में ओकरा के हमेशा लाड- प्यार से पोस के सेयान कइले रहले।बासुदेव आपन सारा खेत वनहकी राख के दुनो बहिन के बियाह कईले और अपने नोकरी करे लागले लगभग बीस बरिस बीत गईल आस्ते आस्ते कर के घर दुआर सब बसुदेव बना देले।
वसुदेव के मेहरारू सुशीला भी उनका लेखा ही आपन घर के बोझा के समुझ के कबो वसुदेव के साथ बाहर रहे के ना कहली आ एक एक पाई जोड़ के बासुदेव के हर खाह-मो-खाह बेरा में हमेशा साथ दिहली। तेइस साल नोकरी के बाद चक्रधर रिटायर हो गइले आ गावे आ गइले चुकी चक्रधर देखावे में सब पइसा उड़ा देले ओह चलते पईसा ना बाचल जे से कि बाहर में जमीन लेके घर बना सकते। आवते घर में कलह कुचाह होखे लागल बासुदेव से कहले तोहरा के हम बीस बरीस छोड़ ले रही त का कईला तू। वसुदेव के करेजा में सहत्रो छेद हो गइल चक्रधर के बोली से बासुदेव पूछले तू का छोड़ के गईल रहा बबुआ आज तनी हमरा के बता दीहा सारा खेत बनहकी रहे,घर में दूदू बहिन के बियाह रहे घर टूटल रहे पागल माई रहे ईहे सब नू छोडले रहा कि कवनो बाप दादा के जिरात रहे। एकरा बाद चक्रधर के मेहरारू उठान डाल देलस की जब ले घर के बंटवारा ना होई हम केहू के चैन से ना रहे देब आ हुंड- भांड डाले लागल ।
बासुदेव के ता करेजवा ढेसराईल ककरी नियन फ़ाट के चरखी चरखी हो गइल । बासुदेव कहले जहां बुझाए उहा ले ला आ चैन से रहा चक्रधर दुआर पे दुगो कोठारी रहे एगो कोठारी में ताला मार ले ले घर में पांच गो कमरा रहे तीन गो में आपन सामान रखके चक्रधर रहे लगले बीस साल में वसुदेव के लइका कान्हा भी जवान हो गईल रहे । बासुदेव के लइका थोड़ा गर्म मिजाज के रहे चक्रधर के ई सब उखमजई देख के कहलस बाबूजी जब तू ही सब कईले बाड़ा ता काहे उनका के देत बानी पूरा घर के आधा आधा कर के बांटी चाहे घर तुरे के परे। बासुदेव कहले तू अा तोर चाचा घर बनवले रहते नू तब तोरा बुझाईत जे बनावे ला नू ऊ कबहु ना तुरल चाहे “कबो कवनो चिरई के आपन खोता उजारत देखले बाड़े”।
अईसे भी लोग कहे ला नू की *बड़ बने में कुछ लागेला* ता समुझ जो की हम बड़ हई घर में ता इहे सब लागेला बबुआ।आतना बात सुनके कन्हवा के कठमुरकी मार देलस जतना ओकर बेग उठल रहे सब नरमा गइल आ ऊ साग नियन नरमा गइल।काहे की *बड़ बने में कुछ लागेला* के मतलब त ऊ कुछ अवरू जानत रहे अभी तकले।
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