आई पढ़ल जाव शिप्रा मिश्रा स्वर्णिम जी के लिखल भोजपुरी कहानी अछर-अछर जोत जरे
कहिये से मरछिया छौ-छौ पाती रोअतीया। अबेर हो गईल।घास गढ़े ना जाई का रे..सुनेसर ब दुआरी पर कबे से ठडा़ बाड़ी। “भकोल हउए का रे..एके गो बात करेजा में धईले रहेले.. दुनिया बाउर बा त होखे..तोर मतारी निमन बीया नू..बाप के ढारे दे..अभगऊ कहियो ना सुधरिहें..तोर ईया अभिन जीयतारी..निमन घरे हाथ-बांह धरा दिहें।काका मरलें त तोरा लगे दांत ना रहे.. हबक लेते..”
काका सब सुनते रहलन।लगलें धिरावे-“मारेम एके लपड़ नु दिमाग के फेजे उधिया जाई..जवानी के हवा लागल बा..खाली छउड़न से बतियावेले”
मरछिया के त सोहात ना रहे।जेतना काबू रहे चिघरे-फेंकरे लागल-“केतनो मरब काका हम अभिन बियाह ना करेब..हमार माहटर कहले बाड़न..मराछी कुमारी..तुम सादी मत करना..तुम पढ़ने में बहुत तेज हो.. अफसर बनो..अब बताव भऊजी!! हम का बाऊर कहतानी”
भऊजी के त एडी़ से कपार जरत रहे..करेजा में धधास फूंकले रहे..मने मने सोचत रहली..ई बलाए कहिया बिदा होखी..ई जले बिदा ना होखी हमार राज-पाट लऊटी ना..बाकिर निमनको भऊजी कहाएके बा।काका के समझावल एतना आसान ना रहे।तबो अधिकई कईसे छोड़स..लगली पटपटाए-“ए काका!! पढ़ें दी..अभिन उमिरे का भईल बा..अपसर बनिहें तबे बियाह करेब।”
मरछिया समझ गईल कि भऊजी बेंग मारतारी।भऊजी के मुस्काईल बड़ा छेदत रहे बाकिर करो त का करो। माई त बैताल हिय।जेने घुमा द घूम जाई।
बिहान भईल गने गने खाएके बनवलस।जीऊ निमन ना रहे।माई दू दिन ला नईहर गईल बिया।छूतका परल बा पटिदारी में।काका खाए बईठले..चऊका लिपाईल लोटा-पानी धराईल..भूख त बेजोड़ लागल रहे।
पाता ना कटहर रहे आकि बड़हर..बडा़ जंठ लागत रहे।हियरा हरिहर भईल।
मरछिया बूझ गईल कि काका परसन्न बाड़े..”का हो काका हमरा से रंज बाड़ का?”
“ना रे..करलुठी के बियाह क देहनी..अब तोरो क देब त चएन से मुएम..तोरा बाप के कवनो भरोसा बा..माटी बेच के पी जाई..ई जीऊ नु बुझता तोर ईया केतरे गहना-बीखो बेंच के ई धरती कईले बिया। भोंथडो़ हंसुआ अपने ओर नु घींचेला.. हाकिम ईहां के कारो छूट गईल..तबो घर अगोरले बईठल बानी..एक-एक पाई के फिफकाल परल बा। निमन पढल लईका भेंटाईल बा..एक काठ्ठा खेत बा।दूगो लगहर भईंस बिया दुआरी पर। ढारे आला लखुत नईखे..एगो पान-बीडी़ सापनाबा..ललबेरिया में कार करेला.. अब कईसन होखो…कउनो लालपरी नईखिस नु तेहूं।”
काका-भतीजी में अभिन जकले बा तलेके दुअरिया पर लोटन खखारतारे-“कहवा बाड़ ए काका!! तोहरा के महटरऊ खोजतारें।”
सोझे माहटर मुसकियात ठडा़ रहलें-“यह लीजिए चाचाजी आपकी भतीजी मराछी कुमारी के लिए सरकार की तरफ से छात्रवृत्ति आई है, यह बहुत मेधावी छात्रा है।इसको खूब पढ़ाइए।आपका और पूरे गांव का नाम रौशन करेगी।”
काका के त ठकुआ मार देलस।छऊडा़ के पढाए खातिर कवन-कवन जतन ना कईले।ई छऊडी़ केगई उजिया गईल..
काका के जियरा कसमसाईल।बाकिर चल..हुनकर लीला के बूझे..कहीं एकरे से सभे के तारन लिखल होखे..”गोड़ लागतानी हे बऊधी भगऊती!! एकर मतारी के अचरा भर देहलू..भुखले आव अघाईले जा..बरहम बाबा के..सीतला माई के गोहरावतानी..हे माई!!बढ़न्ती द..आज करेजा बरियार कई देहलू”
गांव-जवार में लुत्ती खनिया ई बात पसर गईल-चिरकुटऊ के छऊडी़ के हाकिम पईसा भेजले बा.केतना लोग त सुनिए के भकुआ गईल.. केतना लोग के त जरतुआही हो गईल..आ केतना लोग के त बुझईबे ना कईल..एतना पढ़ के का करी छऊडी़.. झोंके के बा त चुल्हीए।
ई बात सुन के त गऊआ के छऊडी़ स अऊरी धिधिया गईली सन–बाबु हो!!हमहूं पढेम..नाव लिखवा द।काका हो!!काल्हू से घास गढ़े ना जाएब। बकरी ना चराएब।
माई लोगिन के त कुछु बुझईबे ना करे।बकचेटाह लेखा ताकत रहली सन।
माननीय मराछी कुमारी
मुख्य अतिथि, शिक्षा विभाग, बिहार
रउवा खातिर:
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