ना जिये दी, ना मरे दी, याद हमरा के
दम कबो नाहीं धरे दी, याद हमरा के
दिल घवाहिल हो गइल बा चोट खा-खा के
घाव दिल के ना भरे दी याद हमरा के
भुक-भुका के जरि रहल बा प्रान के बाती
ना बुते दी, ना बरे दी याद हमरा के
नाव जिनिगी का किनारा आ रहल बाटे
पार बाकिर ना करे दी याद हमरा के
का करी अब बूढ तन के पेड़ ई रह के
ना फरे दी, ना झरे दी याद हमरा के
दोष हमरे बा कि कइलीं याद से यारी
बेवफाई ना करे दी याद हमरा के
लेखक: सतीश प्रसाद सिन्हा
ध्यान दीं: इ रचना सतीश प्रसाद सिन्हा जी के फेसबुक पेज से लिहल गइल बा