अश्लीलता का पर्याय बन चुकी हैं भोजपुरी फिल्में। उन्हें मिलनेवाले सेंसर सर्टिफिकेट इस बात की गवाही देते हैं। लगभग हर फिल्म को यहां ‘ए’ सर्टिफिकेट ही मिलते हैं। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में किसी साफ-सुथरी फिल्मा के निर्माण के बारे में कल्पना करना भी कोई सामान्य बात नहीं है। बावजूद इसके
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अश्लीलता से कोसों दूर इस फिल्म के हीरो अखिलेश कुमार की हीरोइन कल्पना शाह हैं। पिंकी सिंह, उदय श्रीवास्तव, जितेंद्र वत्स, गिरीश शर्मा, अशोक कुमार शर्मा आदि की भी इसमें अहम भूमिकाएं हैं।
लेखक-निर्देशक राजेश कुमार की इस फिल्म, को यू सर्टिफिकेट मिलना ये दर्शाता है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए मेकर के पास जज्बा, और जमीर होना चाहिए। विषय की समझ होनी चाहिए। इत्तफाक से वो सारी चीजें राजेश कुमार के पास हैं। इतना ही नहीं, फिल्म के गीत भी राजेश कुमार ने खुद लिखे हैं और सभी गीत कमाल के हैं।
इस बारे में पूछने पर राजेश कुमार कहते हैं, “भोजपुरी फिल्मों में सबसे अधिक गंदगी गीतों के जरिए ही फैलायी जाती है। लिखनेवाले भी दोअर्थी गीत लिखने में ही अधिक रुचि लेते हैं। जबकि मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्मों में ऐसा कुछ भी न हो, जिससे किसी को किसी भी रूप में झेंप महसूस हो।”
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जरा सोचिए, आतंक के खिलाफ तो हम सभी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन दहेज के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा रहा है। ऐसा लगता है, जैसे ये समस्या अब मिट चुकी हो, जबकि दहेज का दानव अभी भी हर साल हजारों बेटियों को निगले जा रहा है।
अंत में सबसे अहम बात- अब तक जो लोग अश्लीलता के डर से भोजपुरी फिल्में देखने थियेटरों में नहीं जा रहे थे, उन्हें इस फिल्म को देखने जाना चाहिए, वो भी सपरिवार। अपनी बहन-बेटी-बेटे-माता-पिता सभी के साथ। आखिर यू सर्टिफिकेट का मिलना भी तो यही कह रहा है न कि फिल्म अश्लीेलता और हिंसा से दूर है। इतना ही नहीं, इसमें एक प्रकार का संदेश भी है, जो समाज को जागरूक बनाने का काम करेगा।