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भोजपुरी लघु एकांकी मोकदमा : निर्भय नीर

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भोजपुरी लघु एकांकी मोकदमा : निर्भय नीर

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी लघु एकांकी मोकदमा , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं आ रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

[ गदबेर के बेरा , खटिया पर धरमदेव सिंह आ मनराखन पांडे बईठल बाड़े, धरमदेव सिंह खईनी मलत बाड़न, आ मनराखन पांडे जने बनावत कहत बाड़न ] –

” गिरहथ के दिन अदिन हो गईल। साल भर जांगर ठेंठा -ठेंठा के आदमी कमाला , आऊर काटे के बेरा खेत में गईला पर, आँख में जोन्हीं फुलाये लागता महराज। मन करेला कि डंरेरे पर हंसुआ ध के आ बईठ के अपना करम पर ठेहुना भर लोर चुआवो आदमी।”

एतना सुनते धरमदेव सिंह कह भईलन- ” काकहल जाव पंडी जी, रऊआ लोगिन के तऽ जजमनिका पा के कुछऊ सस्ती – मंहगी बुझईबे नइखे करतऽ, पेंरात त बानी सं हमनी गिरहथ।”

मनराखन पांडे:
” का कहनी धरमदेव बाबू ! अब तऽ अईसन जमाना आ गईल बा कि जजमान पीठी पर हाथे नईखन जाये देतऽ। पहिले गइला पर कहाँ उठाईं, कहाँ बइठाईं, लागल रहत रहल हऽ बाकि अब त कवनो पांवों नइखन सं लागतऽ। हई पढुआ-लिखुआ त हमनी के कुछू बुझते नईखन सन।”

धरमदेव सिंह:
“आरे बाबा एही से नूं दुनियाँ दिन पर दिन रसातल में मिलल जाता। पहिले 6 पसेरी के चाऊर कुकुर आ कछुओं ना पुछत रहलन, बाकीअब त डेढ़ सेर के चाऊर खातिर दोकान अगोरते-अगोरते मन अगुता जाता आ देह छिला जाता।”

मनराखन पांडे:

भोजपुरी लघु एकांकी मोकदमा : निर्भय नीर
भोजपुरी लघु एकांकी मोकदमा : निर्भय नीर

“हँ हँ ठीके कहत बानी गऊ माता आ बाभन देवता के जहिया से मान उठ गइल तहिया से धरती के सऊँसे संस-बरकत खतम हो गइल बाटे । जवन-जवन अनगुते आज ले ना भईल रहे, तवन-तवन होखे लागल।”

[ एही बीच बुधन तेली के 6-7 बरिस के लईका बाप रे बाप, दादा हो दादा, सुघन काका हमरा माई के मार के कपार फोड़ देले बाड़े, झर-झर लहू बहता , कहतऽ लगे आके भुईंआ लोटाये लागल।]

मनराखन पांडे:
काहे रे! काहे मरलख रे ? बताव-बताव”

लड़िका:
ँ-ँ-ँ—– हमरा माई ना जीही ऐ बाबा– खून के पवनारा बहता ऐ दादा।”

धरमदेव सिंह:
“आरे ! कुछ कहबो करबे कि खाली तेलही कटिया लेखा भभकबे करबे रे।”

मनराखन पांडे:
“हं -हं – कहू रे , जे बात होखे ! से खुलासा कहू।”

लड़िका—
हमार माई दुआरी पर बहारन फेंकले रल सियऽ। ( रोवता ) काका हरवाही से अइले हं त कहले हं, कि दुआरी पर काहे बहारन बिगलू ह ? बहरी निकल के फेंक अइतू तऽ गोड़ के महावर झर जाइत का ? ऐही सभ से नू आदमी बेमार होला , एँ–एँ–एँ।”

मनराखन पांडे:
“हँ, हँ – ठीके त कहलख ह , भला दुआरी पर बहारन फेंकला के, का फायदा , इहे सब नू बेमारी के घर होला । ई सब मन के सोखिए नूं हऽ, अच्छा ! तब आऊर का भईल ह रे।”

लड़िका:
“एँ- एँ- एँ- तब हमार माई कहलख हिय कि हम अपना दुआरी पर कुछूओ करब, एमें दोसरा कोई के बाप के का भुलाईल बा। एँ- एँ – एँ।”

धरमदेव सिंह:
“हँ ठीके त कहलखिअ ,अपना दुआरी पर केहू जटही काँट बोये, चाहे पैखाना घर बनावे, एह में अगर दोसर केहू टेंट बेसाही तऽ कवनों भल आदमी कहाई का ?”

मनराखन पांडे:
“तहरे कहल ठीक कहलख आ ठीक कइलख। बेमारी होई त खाली ऊहे मरी कि टोला- महाला आ गांव -ज्वार के भूँजा भुज के छोड़ दी। हँ हँ कहू ओकरा बाद का भईल ह ? ”

लड़िका:
[ सुसुक के ] ” एह पर काका खिसिया के कहले ह कि दुआरी पर बहारन ना बिगाई चाहे जे कुछ होखे, तब हमार माई गारी देवे लागल हिय त काका हरवाही के पैना से भुलाईला गदहा लेखाओकरा के ठेठवले हं ।”

धरमदेव सिंह:
“भला कहीं तऽ दोसरा के बेकत पर हाथ उठाई, ओकर अइसन हिम्मत ! जेकरा जे मन में आई से करी । उनकर अगरऽधल हम सब छोड़ावत बानी, चल त हम देखीं।”

मनराखन पांडे:
“ना- ना , कवनों बेंजाँय कइले बा का ? बड़की मुँहजोर हइये हिअ । छुटले मुँहे गारी देवेले। अरँग देवता के भरँग पूजा । ओकरा लायक नीमन पूजा देहले बा ।”

धरमदेव सिंह:
“हँ , हँ , ओकरा के नीमन कहबे करेब । सुघना राउर एह घरी हरवाही नूं करत बा। हम तऽ दूध के दूध आ पानी के पानी कइले बिना ना छोड़ब । हम सुघना के खेला – खेला के पानी ना पियवनी तऽ हमार नाम बदल देहब । का जाने कवना घमंड में मातल रहेला।”

[बुधन के बथान में- लड़िका सुसकत बा- बुधन गाल पर हाथ ध के मन मार के मचान पर बइठल बाड़न – धरमदेव सिंह धोती के फेटा कसत , झटकत बथान में ढुकत कहलन।]

“कह रे बुधना , ते इहाँ गाल पर हाथ ध के बछमूँहा नियर मुँह बना के बइठल बाडे, आ तोरा बेकत के ई हाल ? धिक्कार ह अइसन मरद भइला के। आज तोहरा मेहरारु के मरले बा, काल्ह तोहरा के मारी। जमुँहाँ के छुअला के डर ना होला, ओकरा परिकला के डर होला ।”

बुधन:
“जाए दी मालिक , आपन भाइये नुं हऽ। तनि गलतिये कर देहलस तऽ का करल जाई। गगरी एक लगे रहेला त ढाबा लागबे नूं करेला।”

धरमदेव सिंह:
“बस करऽ , आपन पिंगल पढ़ऽ मत, बुझा गइल कि ते कइसन मरद बाड़े । हमा-सुमा के बेकत पर केहु अँगुरी उठा दी तऽ ओहि घरी सतर जाना के भाला से गांथ देती।”

बुधन:
“तऽ का कह तानी , छोट भाइये नूं हऽ, तनी ठुनियाइये देहलस त कवनो इज्जत कम हो गइल का ? ओकर भऊजाइये नूं हियऽ , कवनो भवे ना नूं हियऽ।”

धरमदेव सिंह:
“तोरा तऽ मतिये में जाने का भरल बा, भला केहू के मेहर-बेटी के केहू कपार फोड़ दिही आ ओकर कवनों इज्जत ना जाई। अइसन तहार लोहा आ पत्थर के इज्जत हो गइल बा कि ओह पर कवनो रेप ना लागी।”

[मनराखन पांडे सुघन के संगे बथान में अइलन आ आवते कहलन।]

“सुघना एकदम ठीक कइले बा! बड़ा बरुआ भइले बिया , अपना आगे केहू के गुदनबे ना करले । सबका के दरमस के चलेली। जइसे कहीं के रानी महारानी भइल बाड़ी।”

[खटिया पर से उठ के खड़ा होके पगड़ी बान्धत धरमदेव सिंह कहलन।]

दरमस के चलेली त उनकर कपार फुटल, आ ई अईंठ के चलेले त इनकर सभाखन हो ता । डाँड़ में रास्सा लगा के चौकिदार से ना खिंचवा दिहनी तऽ कहिअ कि केहू का कहलस। ललका घर के खिंचड़ी ना खिअवनी तऽ हमरा नाम पर कुकुर पोस दिहऽ [ सुघना के गर्दन ध के ] का रे सुघना ते का बुझत बाड़े कि बुधना के पीठ पर केहू हइये नइखे।”

मनराखन पांडे:
“अरे जा हो धरमदेव ! तुहूँ ई मत बुझि हऽ कि सुघना कवनो रांड़ – बेवा हऽ , तहरा जवन बुझाव से कर गऽ । हाई कोर्ट ले देखल जाई। तूँ हूँ कवना गुमाने मातल बाड़ऽ देखल जाई। हमरो नाम मनराखन पांडे हऽ। तु चाऊर दे के पढ़ल बाड़ तऽ हमहुँ कवनो कोदो दे के नइखी पढ़ल। तहरा से बीस हई उनइस ना।”

धरमदेव सिंह:
“आच्छा त धरमदेव चलले, अब इजलास में भेंट होई।”

[समय 7 बजे अनगूत – धरमदेव सिंह के दुआर – धरमदेव सिंह मूँह धोवत बाड़न – बुधन उनकर कुट्टी काटत बाड़न ।]

बुधन:
“सरकार मोकदमा में अब ले केतना रुपिया टुटल होई।”

धरमदेव सिंह:
“तू आपन काम करअ , एकर हिसाब बाद में होखी नूं । सब तहरा के बतला देहबऽ।”

बुधन:
“ना- ना- तनी जान लेती त मन के सबुर हो जाइत ।”

धरमदेव सिंह:
“सब मिला के लगभग डेढ़ लाख के माथ धइले होई।”

बुधन:
“बाप रे ! बाप ! ई सब रुपिया कहाँ से आई ऐ दादा ? दिन भर त हरवाहिये कऽ के अपना लइकन सेयान के कलगुजारी चलावत बानी । एक सांझ जुटाईं त दोसरा सांझ के फिकिर में मुअत रहिले , आ अब ई ऊपर से डेढ़ लाख कहाँ से आई ऐ भगवान।”

धरमदेव सिंह:
“कहाँ से आई ? बुरबक कहीं का! सब भगवान दीहें । आरे ! खेतीबारी, गहना-गुरिया सब जुने-कुजुने खातिर नु होला। तोरा मेहरारू के कवनो गहना-ओहना होखे त ले अइहे हिसाब हो जाई।”

बुधन:
“सरकार , गरीब आदमी के देह पर गहना कहाँ से। बेचारी के नइहरे के एगो अधसेरा बाजूबंद भर बा, बाकि ओह से भला का होखी । ”

धरमदेव सिंह:
“ना तऽ कवनो ना कवनो उपाय करहिं के पड़ी। हमरा दुआरी पर जवन तहार दु काठा खेतवा बा तवने लिख दे। बाकि आउर सब आगे पीछे देखल जाई। घटला बिघटलखातिर हम बड़ले बानी।”

बुधन:
“मालिक ऊहे त दु काठा खेते बाँचल बा , जवना में लड़िका सभन अझुराइल रहेलन सं। आ ओहू पर धनई साह के पाँच हजार बड़की छउड़ी के बियाह में करजा लियाइये गइल बा। हमार लइका तऽ एगो बाल के होरहा खातिर छछन के रह जइहन सन।”

धरमदेव सिंह:
“एही कुल्ही से नु तोहनी के मर-मुकदमा में हम ना जाए के चाहेनी। एगो त अपने नुन – तेल नाप, दोसरे बदनामियों मिल जाला। आच्छा अब मोकदमा लड़बअ भा ना लड़बअ ,हमार हिसाब किताब कर दऽ। ना होखे त सदिये कागज पर आपन अँगूठा के निशान दे दऽ।हम त तहरा के आपने सवांग नूं बुझेनी।”

बुधन:
“हँ – हँ- हमनी के संगे त अपने सभे निगद नेकी कइले बानी। एक भाई के पांडे जी फुटका के हर ठेलवावत बानीं आ रऊआ हमरा गरदन में फांसी लगाइये देनीं। गरीब के कहीं निस्तार नइखे। हे भगवान एह गरीबन के कब ले उद्धार करबअ।”

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