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भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए०

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भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए०

भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए० का पूरा नाम मोतीलाल उपाध्याय है। इनका जन्म देवरिया जिला के बरेजी नामक गाँव में पहली अगस्त 1919 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० राधाकृष्ण उपाध्याय और माता का नाम श्रीमती कौशल्या देवी है। इनकी शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम०ए० तक हुई है फिर भी अपने नाम के सम्मुख बी०ए० ही लिखते रहे हैं। सन् 1939 से सन् 1943 ई० तक मोती बी०ए० ‘अग्रगामी’, ‘आज’, ‘संसार’ और ‘आर्यावर्त’ आदि पत्रों के सम्पादकीय विभाग में और सन् 1944 से 1952 ई० तक पंचोली आर्ट पिक्चर्स, लाहौर, प्रकाश पिक्चर्स, बम्बई और फिल्मिस्तान लिमिटेड, बम्बई में गीतकार के पद पर कार्य करते रहे। इस दौरान इन्होंने अनेक सरस गीतों की रचना की। फिल्म ‘नदिया के पार’ के गीतों ने विशेष लोकप्रियता प्राप्त की।

कविवर मोती बी०ए० की काव्य-साधना एकसाथ चार भाषाओं-हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और भोजपुरी में चलती रही है। उन्होंने हिन्दी और भोजपुरी दोनों में ही राष्ट्रीय चेतना उभारने वाले कई गीत और कविताएँ लिखी हैं। अंग्रेजी में भी बहुत-से सॉनेट लिखे हैं। कई अंग्रेजी काव्यों का हिन्दी में अनुवाद भी किया है।

भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए०
भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए०

भोजपुरी कविता की तरफ मोती बी०ए० का आकर्षण ‘भोजपुरी’ मासिक पत्रिका के सम्पादक बाबू रघुवंशनारायण सिंह के आग्रह पर हुआ। परिणामतः उन्होंने ‘महुआबारी’ तथा ‘तनी अउरी दउरऽ हिरना पा जइबऽ किनारा’ जैसी बेजोड़ कविताएँ भोजपुरी में लिखीं। इन दोनों कविताओं का भोजपुरी-प्रेमियों ने दिल खोलकर स्वागत किया। उनकी कविता-पुस्तक ‘सेमर के फूल’ ने 1972 ई० में प्रकाशित होकर सर्वत्र प्रशंसा पाई। इसके बाद एक-से-एक भोजपुरी कविताएँ और भोजपुरी सॉनेट उन्होंने लिखे। मोती बी०ए० के भोजपुरी मुक्तक इतने लोकप्रिय हुए कि आम आदमी की जुबान पर जैसे छा गए।

कृतियाँ-मोती के मुक्तक, सेमर के फूल, बन-बन बोलेले कोइलिया, महुआ बारी, अब्राहम लिंकन (भोजपुरी नाटक), शेक्सपीयर के सॉनेट का अनुवाद, मेघदूत काव्य का भोजपुरी अनुवाद, तुलसी-रसायन आदि।

भोजपुरी के प्रसिद्ध गीतकार मोती बी०ए० कि कुछ प्रमुख रचनायें

महुआबारी में बहार

असों आइल महुआबारी में बहार सजनी
कोंचवा मातल भुंइया छूवे
महुआ रसे-रसे चूवे
जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी

पहिले हरका पछुवा बहलि झारि गिरवलसि पतवा
गहना-बीखो छोरि के मुँडववलसि सगरे मथवा
महुआ कुछू नाहीं कहलें
जेइसन परल ओइसन सहलें
तबले झारे लागलि पुरुवा दुआरि सजनी

अइसन नसा झोंकलसि कि गदाए लागलि पुलुई
पोरे-पोरे मधू से भराइ लागल कुरुई
महुआ अइसन ले रेंगरइलें
जरी-पुलुई ले कोचिअइले
लागल डाढ़ी-डाढ़ी डोलिया-कहाँर सजनी

गडी लागल रब्बी के लदाइल खरिहनवा
दँवरी खातिर ढहले बाड़े डॅठवा किसनवा
रस के मातल बहुआ डोले
फुलवा खिरिकी से मुँह खोले
घरवा छोड़ि के हो गइलि बा तइयार सजनी

होत मुन्हारे डलिया-दउरी ले के गइली सखिया
लोढ़े लगली फुलवा जुड़ावे लगली अँखिया
महुआ टप-टप फूल चुवावें
लइके सेल्हा ले-ले धावें
अब त लागि गइल दूसरे बाजार सजनी

कोंचवा के दुधवा से गोदना गोदावेली
केहू जनी महुआ से लपसी बनावेली
केहू भेजि दिहल देसाउर
केहू घरहि सरावे चाउर
लागल चढ़े-उतरे नसा आ खुमार सजनी

सँइया खातिर बारी धनियाँ महुअरि पकावेली
केहू बनिहारे खातिर तावा पर ततावेली
महुआ बैल प्रेम से खावें
गाड़ी खींचे जोत बनावें
ई गरीबवन के किसमिस-अनार सजनी

ओखरी में मूड़ी डरले मूसर से कुटइले
लाटा बनिके बाहर अइले हाथे-हाथे भइल
केतना कइले कुरुबानी
केतना कहीं ई कहानी
बहे अँखिया से अँसुआ के धार सजनी

अपने जनमला के बाति जे बिचारी
कोइना ओकर नाँव राखी बाप महतारी
कोइना सेंकेलें बेवाइ
पकना खा लइके अघाइ
उहवाँ जरे जहाँ देखेले अन्हार सजनी

दुनिया खातिर त्यागी भइलें जोगी रूप बनवलें
आपन सम्पति दूनू हाथे सबके लुटवले
जेतना होला ओतना देलें
बदला कुछू नाहिं लेलें
करी के कलऊ में अइसन उपकार सजनी

नरम-नरम हरियर-हरियर ओढ़ले चदरिया
फेरु से महुआ दुलहा भइलें बन्हले पगरिया
जइसे दिहलें, ओइसे पवलें
कविजी कविता में ई गवलें
ए संसार में ना चलेला उधार सजनी

जवने हाथे देबऽ पंचे ओही हाथे पइबs
जवन जिनिस बोइबऽ तू ओही के ओसइबऽ
केहू काहे घबराला
केहू काहे पछताला
अइसन जिनगी में मिली ना सुतार सजनी
असों आइल महुआबारी में बहार सजनी

सेमर के फूल

सुगना, सेमर के फूले का एतना लपटाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!
जेकर डाढ़ि-पात बेढंग
कवनो रूप न कवनो रंग
ओकरी झुमका पर तूं का एतना बउराइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

सब फेड़न से फरक रहे ई, केतना भरल गुमान बा
सब धरती के झुकि-झुकि चूमें, ई छूवत असमान बा
जेकर अइसन ओछ विचार
अलगा-बिलगी के बेहवार
ओकरे बातिन में तूं का एतना भरमाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

डाढ़ी-डाढ़ी फुनुगी-फुनुगी मोजरि मँहके आम के
जरी से पुलुई कोंचवा जूले रस बरिसे बेदाम के
जेकर अइसन सवख-सिंगार
ओह पर नेवछावर संसार
ओके छोड़ि-छाड़ि के इहवा कहाँ बिलाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

चटक लाल चटकारे देखिके झूलत झुलनी फूल के
उड़त जात रहलऽ तूं कहँवा इहँवा अइलऽ भूल के

सुधि-बुधि आपन सजी बिसारि
आके दिहलऽ डेरा डारि
कवने असरा में तूं एकरे उपर बिकाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

सेमर के जरी के ओखरि बने, मूसर बने बबूल के
हिंसा में ई दूनू सहायक दूनू एके खून के
कहियो लागी अइसन लासा
सुगना बनि जइबऽ तमासा
ईहो झुलनी हँसी ठठाके जेपर लुभाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

आम के धोखा में जनि रहिहऽ, ई सेमर के फूल ह
ऊपर से बा चीकन-चाकन, भीतर से ई सूल ह
जेहि दिन लागी एइमें फर
ओहि दिन मनवा जाई भर
लोगवा पूछी, सुगना चोंच में का लगवले बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलवले बाड़ऽ हो!

मूल कटे त ओखरि बने, फूल काम ना आवे
फर लागे चिरई पछताए, रूई कसल जावे
जेकर भाइ-पट्टीदार
बबुरे हँवनि काँटेदार
ओकरि चटक-मटक पर का सचहूँ ललचाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

झुमका-झुलनी-नकबेसरि ई पहिरि-पहिरि झमकावेला
चमकि-चमकि मुँह मोरि-मोरि पतइन के ताल बजावेला
मऽरद होके अइसन चालि
ओकरी पाछे तू पैमाल
तोहके देखत बानी, रा॒हू कुछु मधुआइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

निबिया फूले गम-गम गमके मोजरि मस्त बनावे
महुआ चुए मदन-रस बरिसे, कटहर सुधि बिसरावे

ई त ह सेमर के जाति
केतना बा औकाति-बिसाति
जवना के कदम्ब के छाँह समुझि अगराइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

प्रेम, त्याग, संयम, उदारता जे में जेतना होला
फूल, गंध, रस ओ सभनी वस्तुन मे ओतना होला
जइसन सेमर के व्यक्तित्व
ओइसन बा ओकर अस्तित्व
कइसे महकी ओकर फूल, का कठुवालि बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

जे समाज में मिलि-जुलि रहे समाज के जानेला
ज्ञानी, पण्डित, कलाका एकर मरम बखानेला
जब ई रस्ता जाई छूटि
गूहल माला जाई टूटि
पण्डित होके काहे सेमर के डाढ़ि टॅगाइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

ई संसार यथार्थवाद के कठिन भूमिपर बऽसल
सेमर के रूई आ लासा छेद-छेद में कऽसल
रहे के बाटे सबके बीच
केहू केतनो होई
नीच सुगना, तू सत्संगी हो के कहाँ हेराइल बाड़ऽ
सगरे ज्ञान भुलाइल बाड़ऽ हो!

मृगतृष्णा

नाचत बाटे घाम रे हिरना बा पिआसा
जेठ की दुपहरी में रेत के बा आसा
रेतिआ बतावे दूर नाहीं बाटे धारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबऽ किनारा

पछुवा लुआठी लेके चारो ओर धावे
रेतिआ के भउरा बनल देहिया तपावे
भीतर बा पिआसि ऊपर बरिसेला अंगारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबऽ किनारा

फेड़ नाहीं, रूख नाहीं, नाहीं कहूँ छाया
कइसन पिआसि विधिना काया में लगाया
रोआँ-रोआँ फूटे, मुँह से फेकेलऽ गजारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबs किनारा

खर-पतवार लेके मड़ई छवावें
दुनिया के लोग दुपहरिया मनावें
मारल-मारल फिरे एगो जिउवा बेचारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबऽ किनारा

तोहरो दरद दुनिया तनिको ना बूझे
कहेले गँवार तोहके झुठहूँ के जूझे
जवना में ना बस कवनो ओमें कवन चारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबऽ किनारा

दुनिया में केहूके ना मेहनति बेकार बा
जेही धाई ऊहे पाई एही के बाजार बा
छोड़ऽ सबके कहल-सुनल आपन ल सहारा
तनी अउरी दउरऽ हिरना, पा जइबऽ किनारा

मृग-कस्तूरी

गरजे लागल बदरा, धड़कि उठल जियरा
नाचे लागल मोरवा, पिहिकि उठल पपिहरा
गमके लागल देहिया त हो गइलऽ मस्ताना
चारो ओरिया खोजि अइलऽ, पवलऽ ना ठेकाना

अँखिया से लोरि बहे देही से पसेनवा
ऊपरा से जोर करे सावन के महीनवा
एन्ने-ओने पूछऽताड़ऽ, लगवे. खज़ाना

उड़ि जइहें सुगुना, बनल रही खतोना
टूटि जइहें पतई त बनी ओसे दोना
अपनी चिजुइया से होइके बेगाना

अपनी चिजुइया के जेही नाहीं बूझी
दुनिया में ओकरा के केहू नाहीं पूछी
बाड़s तू भुलात होके एतना सयाना

केहू अनचितला में छोरि ली बिखइया
मुँहवा बनावे लागी मिली ना बचइया
लही ना उपाइ एको चली ना बहाना

संपवा के मणि मिलल, हथिया के मोती
तोहके कस्तूरी मिलल, दियना के जोती
अपने में आपन रतनवा हेराना

दउरे ल अनेर तूं पहुँचले में देर बा
बूझि ल बचन ई समुझले के फेर बा
होखऽ तू सचेत पहिले, होखिहऽ दीवाना

रुकऽ-रुकऽ ठाड़ा हो जा काहें अगुतालऽ
हेने सुनऽ लगे आवs, झुठहीं डेरालऽ
एक दिन परि जइहें तोहे पछताना
जिनिगी अनेर जाई मिली ना ठेकाना

मोती बी०ए० जी के फोटो अमृतांशु जी के बनावल (कार्टून धुन )

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