हिय में उठत जुआर, प्यार के ग़ज़ल कहीं
मउसम बा बटमार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
पियत दूध बछरू के जब गैया चाटे
तिरपित होत निहार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
जब सुधियन के आँगन में केहू अचके
भारत आइ अंकवार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
अंग-अंग दरपन में निरखि घवाइल बा
नयना बने कटार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
मुसुकी में मिसरी, करनी में जहर भरल
मित-हीत हतियार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
जब आंतर में पंइसि गिरावे गाज सभे,
तब का करीं गुहार, प्यार के ग़ज़ल कहीं
ठूंठ गाछ पर रुखी फुदुके, कउल करे
चीऊँटी चढ़े पहाड़, प्यार के ग़ज़ल कहीं.
(साभार : भोजपुरी सम्मलेन पत्रिका, जनवरी -मार्च /2003, पृष्ठ -07)