आई पढ़ल जाव बब्लु सिंह जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता, पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा कइसन लागल, रउवा सब से निहोरा बा पढ़ला के बाद शेयर जरूर करीं आ रचनाकार के हिम्मत बढ़ाई
आजाद तितली
जा तितली जा उड़ जा तू,
एह दिल के दुवारी से…
हक़ बुझाता नइखे अब,
कि तोहके रखी बरिआरी से !!
ए तितली जा उड़ जा तू,
एह दिल के दुवारी से………..
समय बावे खराब त तोहके,
नइखी हम समझा सकत,
ताहरा बिना जग सुना लागे,
नइखी हम बतला सकत !
कइसे मनावल जाला पता ना,
अइयार के अपना अइयारी से,
जा तितली जा उड़ जा तू
एह दिल के दुवारी से………..
ए तितली तू उड़ जइबू,
देखबु दुनिया के रीत,
ओहि बगिया में हंसबु खेलबू,
लगा लेबू तू प्रीत !
जबरन तोहके कैद ना राखब,
सनेह बा तोह जस प्यारी से,
जा तितली जा उड़ जा तू,
एह दिल के दुवारी से………….
रोवत अंखिया, धडकत छतिया,
नेह सनेह देखावत बा,
उजडल फुलवारी के रौनक रहलू
दिल माफ़ी के आसरा लगावत बा !
चिन्हबु नेहिया, वापिस अइबू,
मनइबू यार के आपना यारी से….
जा तितली जा उड़ जा तू,
एह दिल के दुवारी से…
हक़ बुझाता नइखे अब,
कि तोहके रखी बरिआरी से………!!!
चुनाव
आई फेरु चुनाव आ ,नेताजी लो आई,
दुधमुँहा लइकन जस, लोगवन के भरमाई !!
केहू मिटाई गरीबी,
केहू आरक्षण खतम कर जाई,
चोंगा लें के गली गली,
विकाश देखावल जाई !!
पाँच बरिश लउकले ना,
तबो इनकर जोर बा,
एक आना के काम ना भइल,
तबो इनकर शोर बा !!
प्रजातंत्र के हाला में,
ग़ुम भइल घोटाला बा,
ब्रह्मास्त्र सभे रखले बा,
लास्ट उपाय मधुशाला बा !!
रंगा सियार जस, रंग बदल, घरे घरे वोट मंगाई,
आई फेरु चुनाव आ , नेताजी लो आई !!
भरमावे के जडी जानत बा लो,
जनता के मूरख मानत बा लो,
बिना जरवले चुल्ही में लकड़ी
ढेरे पनिया में आंटा, सानत बा लो !!
राजनीती नाही इ अभिनय ह,
झूठ के साँच, बतावे के !
अकील ज़ब भुला जाव त,
जातिवाद में सेंध लगावे के !!
राजनीती नाही इ अभिनय ह,
मुखौटा आपन देखावे के !!
एक धर्म के बात ना बा, दलित, सामान्य कहाई,
आई फेरु चुनाव आ , नेताजी लो आई !!
बैनर पोस्टर के होइ बौछार
महीना चुनाव के, मचावे हंगामा,
चमचा बेलचा के आई बहार,
लोकतंत्र बनी फेरु पायजामा !!
वादा, इरादा सभ घुप्प हो जईहे ,
बुद्धिजीवी वर्ग सभ, चुप हो जईहे,
जमीनी समस्या के केहू ना निरखत
ढेरे लोग धन लोलुप हो जईहे !!
“बवाली” इहे सोचस खाली,
लुटल गरिमा ल लो बचाई
आई फेरु चुनाव आ , नेताजी लो आई !!
दुधमुँहा लइकन जस, लोगवन के भरमाई !!
विदाई
माथा धरी मंगरू सोंचस,
का असही जिनगी कटाई,
ना जाने कहिया होई
हामारा दुखावा के विदाई !
गरीबी अब कुहुकावत बा,
जाडा ढेर ठिठुरावत बा,
लगे बा ना रुपिया पइसा,
कइसे बबुआ के सीउटर किनाई !
ना जाने कहिया होई
हामारा दुखावा के विदाई !!
खेती किसानी करी के थकनी,
दोसरा के खेत में हर-बैल हंकनी,
दुइये बेरा के खाना खातिर,
बाहरो जा के कइनी कमाई,
ना जाने कहिया होई,
हामारा दुखावा के विदाई !!
बबुनिया भइल सेयान
कइसे राखब घर के आन,
कइसे करब हम विदाई,
उनकर सभ शाराधा पुराई !
बाड़ा खरच होता पढ़ावे में
बबुआ के फियूचर बनावे में,
निष्ठुर नियति के का कहीं
देहले बा रोग धाराई,
ना जाने कहिया होई,
हामारा दुखावा के विदाई !
जिनिगी के खेला में
बहुते झमेला बा,
इंसानियत कहीं लउके ना
पइसे खातिर रेलम रेला बा,
कामाये निकलले ज़ब विदेश बवाली
रोवत रहली उनकर माई,
माथा धरी मंगरू सोंचस
का असही जिनगी कटाई,
ना जानें कहिया होई,
हामारा दुखवा के विदाई !!!!