भोजपुरी सिनेमा में ऐसे लोग बहुत कम है जो इसे उज्जवल भविष्य और लोकप्रियता की अंतिम पायदान तक ले जाने के लिए तन, मन, धन, और समर्पण से जुड़े हों। ऐसे ही लोगों में एक नाम, आनंद बिहारी यादव का है। एक ऐसा बहुआयामी व्यक्तित्व जो राजनीतिक पृष्ठभूमिक में पल-बढ कर क्षेत्रीय सिनेमा की गोद में आ बसा है और अब भोजपुरी सिनेमा उसकी सांसो की धड़कन बन गया है। यही वो धड़कन थी जो भोजपुरी कलाकारों के लिए मचल उठी तो आनंद बिहारी ने अपने मित्र अभिनेता मनोज तिवारी के साथ उन्हें सी. सी. एस. क्रिकेट के मैदान तक ले गई। आनंद और मनोज के प्रयासों से ही भोजपुरी सिनेमा से जुड़े कलाकार इस प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट से जुड़ सके और चैके-छक्के लगा सके।
इस टूर्नामेंट से मेरा एक ही लक्ष्य था कि मैं अपने बिहारी धरतीपुत्रों को मैदान में खेलते हुए देख सकूं। जब मैंने अपनी भावना अपने मित्र मनोज तिवारी को बताई तो वह तुरंत बिना किसा शर्त और बिना शुल्क के मेरे साथ इस टूर्नामेंट से जुड़ गये। वास्तव में मेरी ही तरह मनोज की रंगों और सांसों में भोजपुरी सिनेमा धड़कता है। हम दोनों मित्र जब भी मिलते हैं तो अपने सिनेमा को उपर और उंचे से उंचे से स्तर पर ले जाने की बातें करते हैं। हम दोनों ही यह निरंतर महसूस करते हैं कि भोजपुरी सिनेमा को हर हालत में बहुत उंचाइयों पर जाना है।
हाल ही में चेन्नई के एक समारोह में भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में अनगिनत फिल्मी कलाकारों को भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया गया था और जब क्षेत्रीय सिनेमा के कलाकारों की बारी आई तो भोजपुरी सिनेमा से केवल एक ही हस्ताक्षर मनोज तिवारी थे। जब मनोज तिवारी को राष्ट्रपति के कर कमलों द्वारा सम्मानित किया गया तो यह आनंद बिहारी के लिए एक अविस्मरणीय पल था।
‘जब मुझे यह शुभ समाचार मिला मेरा हृदय खुशी से भर गया था। मुझे लगा कि यह सम्मान मनोज तिवारी को नहीं मुझे मिला है। पूरे भोजपुरी सिनेमा को मिला है। मेरी मातृभाषा के सिनेमा के लिए यह केवल एक सम्मान ही नहीं अपितु एक बड़ी उपलब्धि भी है। क्योंकि जो सम्मान महामहिम राष्ट्रपति के हाथों मुख्यधारा हिन्दी सिनेमा को सौ सालों के बाद मिला, हमारे भोजपुरी को कुछ ही सालों में मिल गया। हा, मनोज की तरह मुझे भी यही महसूस हुआ है कि यह सम्मान पूरे भोजपुरी सिनमा और इससे जुड़े हर इंसान का है।
आनंद बिहारी और मनोज तिवारी दो दिल एक जान हैं
वास्तव में आनंद बिहारी और मनोज तिवारी दो दिल एक जान हैं। दोनों की भावनाएं, सोच, दृष्टि और विचार एक – दूसरे से बहुत मिलते हैं। वे एक-दूसरे के बहुत करीब हैं। इसी करीबी का यह कारण था कि अचानक एक दिन जब आनंद को यह खबर मिली कि मनोज तिवारी ने एक निमार्णिधीन फिल्म के सेट पर अभिनेत्री पाखी हेगड़े से शादी कर ली है तो आनंद को बहुत गहरा झटका लगा और वे तुरंत फिल्म के सेट पर पहुॅंच गये। सेट पर पहुच कर जब पता चला कि शादी केवल फिल्मी थी और सेट पर मनोज-पाखी की शादी का दृश्य केवल फिल्म के लिए शूट किया जा रहा था।
इधर आनंद बिहारी यादव खुद भी निर्माता बन गये हैं और फिल्मों का निर्माण करने जा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दो भोजपुरी फिल्मों के निर्माण की घोषणा की है।
‘इनमें एक फिल्म का टाइटल ‘धारा 144’ है और इसका एक गीत भी रिकार्ड कर लिया गया है। दूसरी फिल्म का टाइटल अभी नहीं रखा गया है। इस फिल्म के निर्दशक मंजुल ठाकुर हैं। यह फिल्म भी नवरात्रि के अवसर पर आरंभ होगी। जहा तक फिल्में बनाने का प्रश्न है, मैं बताना चाहूगा कि मेरा लक्ष्य मात्र धन कमाना नहीं है। धन कमाने-बनाने के लिए हमारे पास और भी व्यवसाय है। साधन है। मेरा लक्ष्य कुछ और है। मैं देख रहा हू कि हमारी भोजपुरी की अधिकांश फिल्मों में बिहार की संस्कृति और संस्कार नहीं है। वह परिवेश और सुगंध नहीं है जिसमें एक बिहारी जन्म लेता है। पल कर, चल कर बड़ा होता है।
हमारी फिल्म अपनी बड़ी दीदी हिन्दी फिल्मों के साए में जीती नज़र आती है। कहानी, गीत-संगीत, परिवेश सभी कुछ हिन्दी सा होता है। यही कारण है कि भोजपुरी फिल्में अपने समूचे अस्तित्व और चेहरे के साथ महसूस नहीं होती। केवल भाषा और नौटंकी से काम नहीं चल पायेगा। कभी -कभी मुझे अहसास होता है जैसे भोजपुरी फिल्में अपनी वास्तविक पहचान बनाने और पाने के लिए तड़प रही है। मैं अपनी फिल्मों को इस तड़प से बाहर निकालना चाहता हू। उन्हें वास्तविक पहचान और असली चेहरा देना चाहता हू। बड़ी दीदी के साये से निकाल कर अपनी मौलिकता, गरिमा और अपनी पहचान देना चाहता हू। मैं ऐसी ही फिल्में बनाना चाहता हू जो मेरे इस लक्ष्य को पूरा कर सकें।
मैं भोजपुरी सिनेमा को नंगी नौटंकी और नकली कथाओं की जंजीरों से आज़ाद कराने का एक सपना ले कर निर्माण के मैदान में उतरा हू। मैं अच्छी तरह जानता हू कि मैं अकेला यह लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्तरहीन और नकली फिल्मों के इस अंधकार में सिर्फ एक दीपक जलाने का काम कर रहा हू और चाहुंगा कि मेरे अन्य साथी निर्माता भी ऐसे ही दीपक जलाएं। दीप से दीप मिलेंगे, प्रज्जवलित होंगे तो निःसंदेह इस अंधकार में एक नया प्रकाश आयेगा और हम अपना सपना, अपना लक्ष्य पा सकेंगे। फिल्म देखते समय यह महसूस होगा कि हम सचमुच भोजपुरी फिल्म देख रहे हैं।
फिल्में बनाने के साथ आनंद बिहारी भोजपुरी फिल्मों को उत्साह और बिस्तार देने के लिए भोजपुरी अवार्ड समारोह के आयेजन भी करने का विचार रखते हैं। किंतु यह प्रश्न है कि क्या ऐसी भोजपुरी फिल्में बन भी रही हैं जो अवार्ड के योग्य हो? क्या हमारे कलाकार और तकनीशियंस ऐसा काम कर रहे हैं कि उन्हें अवार्ड के लिए गंभीरता से लिया जाए?
‘हां, यह प्रश्न अपनी जगह रही है किंतु यह भी सही है कि अभी पूरा तालाब गंदा नहीं हुआ है। हमारे सिनेमा में कर्मठ, योग्य और कुशल काम करने वाल लोग भी हैं। सशक्त और सुंदर अभिनय करने वाले कलाकार भी हैं और गुणवान तकनीशियंस भी हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं और सचमुच अवार्ड के योग्य हैं। हम ऐसे ही लोगों के लिए यह ‘अवार्ड समारोह’ करने जा रहे हैं जो भोजपुरी सिनेमा को स्तरीय फिल्में और उज्जवल भविष्य दे सकें।
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