हर के कलम से
धरती के कागज प
पसीना के सियाही से
जीवन उकेरे ला किसान
बाकिर ओकरे घटल रहता
चाउर पिसान।
ओकरे पसीना
अतना सस्ता काहे बा
ओकरे हालत
अतना खस्ता काहे बा
सवाल प सवाल
पूछता किसान ?
चुप्पी टूटल बा
त बुढ़िया आन्ही अइबे करी
ताश के पत्ता से बनल
ताज तखत उड़इबे करी
आ अन्हरिया के होई
सम्पुरने भसान।
उगिहें सुरुज
पुरुबवाके ओर
झाँकी किरिनिया
अंगनवा के ओर
बदलल बा मिजाज मौसम के
आवले बोलता नयका बिहान।
रचना छापे खातिर जोगीरा के प्रति आभार.