डॉ. हरेश्वर राय जी के लिखल भोजपुरी कविता आवले बोलता नयका बिहान

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हर के कलम से
धरती के कागज प
पसीना के सियाही से
जीवन उकेरे ला किसान
बाकिर ओकरे घटल रहता
चाउर पिसान

ओकरे पसीना
अतना सस्ता काहे बा
ओकरे हालत
अतना खस्ता काहे बा
सवाल प सवाल
पूछता किसान ?

चुप्पी टूटल बा
त बुढ़िया आन्ही अइबे करी
ताश के पत्ता से बनल
ताज तखत उड़इबे करी
आ अन्हरिया के होई
सम्पुरने भसान।

उगिहें सुरुज
पुरुबवाके ओर
झाँकी किरिनिया
अंगनवा के ओर
बदलल बा मिजाज मौसम के
आवले बोलता नयका बिहान।

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