आजू भारत के राजनीति में
एक्के गो चरित्र रह गइल बा
किसान
किसान हो के / उ / हो गइल बा
एगो सीढ़ी सत्ता के सिंहासन पर चन्हुपावे ला
सभे ओकरे कान्ह पर बाटे सवार
भले किसान हो गइल बा
लाचार/ बेकार/ बेमार
जंग लागल टीन नियर
टीनही हो गइल बा किसान
इ ओकर दुरभाग बा
सौभाग्य त नेता लोगन के बा
जे किसान चालीसा पढ़ि पढ़ि के
अपना दिन सुधारत बा
कहियो कहियो किसान के दूअरा पर
आपन रात गुजारत बा
कबो भूइया / त कबो खटिया पर ओठंग के
अजबे बा लोकतंत्र / आ
एकर सूत्रधार लोग
देश के कुल धेयान
किसाने पर खिंचाइले बा
अख़बार के खबर भा टीवी के
टी आर पी हो गइल बा आजू किसान
ओही से ओकरा देखा के
ओकरा कमाई से
अपना आप के सींचले बा
किसान त पिसान भइल जात बाड़ें
भूखमरी के चकरी में पिसा के
पुलिस के गोली खा के
महाजन के करजा में दबा के
गरीबी के ढेंकी में कूटा के
सूखा आ बाढ़, आ बेमौसम बरसात से
कबो मौसम के ससरी से
कबो कबो जंतर मंतर पर फंसरी से
बाकिर नेता लोग एही में
खोज लेत बा राजनीति
आ पाछे रह जात बा
किसान, किसान
संतोष जी के कविता प्रासंगिक, अर्थपूर्ण आ दमदार बिया.