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सखी रे बरसे सावन के बदरवा

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सखी रे बरसे सावन के बदरवा भिन्जे मोर अँचारवा ना !
मोर, पपिहरा के बोली,बदरा से बदरा करेला ठिठोली,कुन्हुके आमराई मे कोइलारावा भिन्जे मोरअँचारवा ना !! सखी रे. … .. .
झूलुआ प लहरत सखियाँ के टोली,
लागे कि बरखा रानी घूँघटा खोली ,

छम -छम बूंदन से होखे झंकरावा भिन्जे मोरअँचारवा ना !! सखी रे. … .. .
असरा मे सजना के अखियाँ बिच्छवनी,
चंपा, चमेली के जुड़ा मे गज़रा लगवनी,

रही- रही तड़पावे बैरी हियरवा भिन्जे मोरअँचारवा ना !! सखी रे. … .. .
पियवा बेदर्दी बड़ा हमके सतावे
बैरी पुर्वइआ मिलन के पियास जागावे ,

सोच के मन मे मिलन के उठे हिलोरावा भिन्जे मोर अँचारवा ना !! सखी रे. ..
करेजवा से छल्कत नेहिया के मोती नैनन मे चमकत पिरीतीया के जोती,जिनिगि हो जाई

उनके से उजियरवा भिन्जे मोर अँचारवा ना !! सखी रे. … .. .
धयी बँहिया उनुकर मुहवा निहाराब अँखियाँ के मोती से पौआं पखारब हमरा परान के अधररवा भिन्जे मोर अँचारवा ना !! सखी रे. .

सखी रे बरसे सावन के बदरवा भिन्जे मोर अँचारवा ना ! सखी रे बरसे सावन
के बदरवा भिन्जे मोर अँचारवा ना !

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