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लोककलाकार भिखारी ठाकुर जी के प्रतिनिधि रचना : बेटी विलाप
गिरिजा-कुमार!, करऽ दुखवा हमार पार,
ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी।
पढल-गुनल भूलि गइल,समदल भेंड़ा भइल,
सउदा बेसाहे में ठगइल हो बाबूजी।
केइ अइसन जादू कइल, पागल...