शहर काहे गइलऽ भईया
अपना गईंआ के बिसरईलऽ, माई बाबु के भुलइलऽ ।
लवटि के ना अइला भईया, शहर काहे गइलऽ भईया ।।
चाहे झरत रहे लाद , चाहे परल रहे आँव ।
बाबुजी बइठस सिरहानी, माई दबावत रही पाँव ।।
जहिया से गइलऽ शहर , रोवऽतारी कँहर कँहर ।
बाबुजी लोर छुपावस , गुमसुम रही के महटिआवस ।।
घुटुकत रहेले अंदर अंदर, दिने रात दुपहर ।
जबले भईया गइलऽ शहर, शहर काहे गइलऽ भईया ।।
भईया काहे डहँकइलऽ , माई बाबुजी के भुलइलऽ ।
देके दुनों परानी के दुःख, अपने कहाँ पइलऽ सुख ।।
जहिया से तु भईया गइलऽ, बकरी जइसन मेंमीअइलऽ ।
छोड़ि के सरग तुहू, आई नरक में समइलऽ ।।
केल्हु के बएल जइसन, पईसा खातिर पेरइलऽ ।
चवनिया मुस्की मारलऽ, काहे भुला गइलऽ ।।
सुघर जिनगी तोहार, भइल साँप के जहर ।
जबले भईया गइलऽ शहर, शहर काहे गइलऽ भईया ।।
जब चढ़ी ई जहर, अंगे अंग उठी लहर ।
कवनो ना सूई दवाई , तोहरा पऽ करी असर ।।
सभ कुछ तु भुलईबऽ, माई माई चिचिअइबऽ ।
तोहरा होई ना सबर, देखि ना पइबऽ एक नजर ।।
माथा में उठी जब लहर, भईया चलि जइबऽ ऊपर ।
जबले भईया गइलऽ शहर, शहर काहे गइलऽ भईया ।।
रचना – विमल कुमार
गाँव +पोस्ट – जमुआँव
पीरो, भोजपुर, बिहार