आप भी कहिये जोगीरा सा रा रारा और फ़िर देखिये होली का मज़ा
एक तरफ़ हैं चाँद पर, इंसानों के पाँव,
और इधर अंधेर में, सदियों से हैं गाँव….
ना पानी, ना सड़क की, कोई करता बात,
हर नेता है पूछता, किसकी क्या है जात…
बाप दरोगा हो गए, बेटे हैं रंगदार,
माँ दुखियारी रो रही, हो बेबस, लाचार…
जब चाहा तब रात हो, पलक झपकते भोर,
क्या रखा है गाँव में, चलो शहर की ओर …
कर धुएँ का नाश्ता, झटपट हों तैयार,
गए पड़ोस के भोज में, लेकर अपनी कार…
आँगन मेरे गाँव का, शहरी फ्लैट से बीस,
तिलक बराबर हो गई, पहली क्लास की फीस…
घर की मुर्गी दाल है, ऐसी अपनी सोच,
सौ करोड़ के देश में, रखें विदेश कोच…
दिल्ली आकर खो गए, शब्द , भावना, गीत,
त्योहारों पर कभी-कभी, याद आए मनमीत…