जगदीश खेतान जी के लिखल सरस्वती बंदना

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कई देतीं हमरो उद्धार ये सुरसती माई।
रोई रोई करीलां मनुहार ये सुरसती माई।

रउवा रामबोला के तुलसीदास बनवलीं
अमर ग्रन्थ रामचरित मानस लिखवइलीं
निपट गंवारे के कालीदास बनवलीं
हमरे लेखनीओ मे कई देईं सुधार ये सुरसती माई।
कई देतीं हमरो उद्धार ये सुरसती माई।

राजहंस पर रउवा करेलीं सवारी
वीणा बजाइलां तऽ सुनेलं त्रिपुरारी
सुरमुनि सुनेलं आ सुनेलं मुरारी
झनझनाय देईं हमरो मन के तार ये सुरसती माई।
कई देतीं हमरो उद्घार ये सुरसती माई।

चारो ओर लागे जइसे घोर अन्हेरा
राही ना लउके ना लउके आपन डेरा।
दिमागे मे घुमल करे छतीस गो फेरा।
कई देतीं चहुँ दिस उजियार हे सुरसती माई।
कई देती हमरो उद्धार ये सुरसती माई।।

पूजा के हमके ढंग लूर ना आवेला
आरती बन्दन के सऊर ना आवेला।
हईं मन के साफ न फितूर कौनो आवेला
अब दरसन दे दीं हो गईल भिनसार हे सुरसती माई।
कई देतीं हमरो उद्धार ये सुरसती माई॥

धन नाही चाहीं आ रतन नाही चाहीं
सुती रहब खटिया पर पीपरे के छाहीं।
धई देईं माथे पर हमरे आपन बाहीं।
रउवा दरसन बिना जीवन बा निस्सार ये सुरसती माई।
कई देतीं हमरो उद्धार ये सुरसती माई॥

भोजपुरी सरस्वती बंदना के लेखक हैं जगदीश खेतान जी

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