कन्हैया प्रसाद रसिक जी के लिखल पुर्वी भोजपुरी गीत

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लागल बा करेजवा में, बोलिया के बान
शान कइसे रही
अखड़ेरे होता जिनिगी जियान
शान कइसे रही

रोज रोज ओज क के बोलत रह बतिया
आज केकरफेरा में तु परल संघतिया
परल संघतिया
घोर माठा कय दिहल, सानलऽ पिसान शान कइसे रही ।।
अखड़ेरे होता जिनिगी जियान
शान कइसे रही ।।

हँसी हँसी बोलेनी त बोलत रह प्यार से
तनि कोहनइनी त फोरेल कपार के
फारेल कपार के
किरिया तु खइले रह, करब ना गुमान
शान कइसे रही ।।
अखड़ेरे होता जिनिगी जियान
शान कइसे रही ।।

कवना सवतिया के सेज गरमावेलऽ
पुछीना त हमरा के खाहें भरमावेलऽ
काहें भरमावेलऽ
हीरा के खजाना छोड़ी, कोइला देल जान
शान कइसे रही ।।
अखड़ेरे होता जिनिगी जियान
शान कइसे रही ।।

आव आव रसिक बाबा तु ही समझाव
पियवा के तनि निमन रहिया देखाव
रहिया देखाव
दुअरा पो सुतल बा चदरिया के तान
शान कइसे रही।।
अखड़ेरे होता जिनिगी जियान
शान कइसे रही ।।

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