भोजपुरी भाषा परिवार के स्तर पर एगो आर्य भाषा ह, और इ मुख्य रुप से पश्चिम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी झारखण्ड में बोलल जाला। वैसे देखल जाव त आधिकारिक और व्यवहारिक रूप से भोजपुरी हिन्दी के एगो उपभाषा चाहे बोली ह। भोजपुरी आपन शब्द के खातिर मुख्यतः संस्कृत ऑरी हिन्दी पर निर्भर बा, कुछ शब्द उर्दू से भी लिहल गइल बा। भोजपुरी जानने-समझने वालों के विस्तार विश्व के बहुत सारे महाद्वीपों पर बाटे, जेकर कारन अंग्रेजन के टाइम पर उत्तर भारत से ले गइल मजदूर हवसन, जेकर वंशज जहाँ उनकर पुर्वज गईल रहें लोग़ वहिजा बस गईल लोग़। अइमे सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी जईसन देश प्रमुख बा। पूरा विश्व में भोजपुरी के जाने आउरी बोले वाला के संख्या ५ करोड़ से भी जयादा बा।
लेकिन आज के समय में एकरा दामन के आपन भोजपुरी फिलिम जगत बदनाम अउरी दागदार बना देहले बा, जेने देखीं तेने लोग इहे कह रहल बा कि भोजपुरी फिलिम अउरी गाना में अश्लीलता खूब परोसल जा रहल अउरी इ भोजपुरी भाषा अश्लीलता के एगो दोसर नाम भर बन के रह गईल बा।
इहे निर्माता लोग से पुछल गइल कि भोजपुरी एतना अश्लीलता काहे, उनका लोग के जबाब सुनके हमरा त बहुते आश्चर्य जनक लागल। उनका लोग के जबाब रहे साफ़ सुथरा फिलिम त भोजपुरी दर्शक देखबे ना करिहे। काहे भाई भोजपुरी दर्शक एतना भी बुरबक और संस्कार हीन नइखे।
निर्माता लोग के एह बात के तनिको ना भूले के चाहीं कि पइसा कमाये के चक्कर में भोजपुरी भाषा व संस्कृति दुनु के बर्बाद कर रहल बा लोग । भोजपुरी भाषा और संस्कृति हम भोजपुरियन के दहरोहर ह, एकरा हमनी के कोनो कीमत ना बर्बाद होखे दिहल जाई।
अपने सब के जानकारी खातिर हम बता दीं कि नवम्बर 2011 से रीलीज भईल अधिकतर फिलिमन के सेन्सर बोर्ड के तरफ से ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलल, जवन कि 2011 के पहिले बहुत कम रहे जरूरत बा हर एक भोजपुरिया दर्शक एह फिलिमन के विरोध करस, आज स्थिति ई बा कि फिलिमन के नाम तऽ बड़ी संस्कारी आ इज्जतदार रखात बा लेकिन ओकरा भी ‘ए’ सर्टिफिकेट हीं मिल रहल बा।
आज भोजपुरी दर्शक के ‘यू’ श्रेणी के फिलिम देखल एगो सपना हीं हो गईल बा, काहे कि ओकरा से वितरक भी मुंह फेर लेत बाड़न कि फिलिम में चटक-मटक मसाला नईखे, ई फिलिम ना चली कुछ फिलिमन के सर्टिफिकेट अपने सब के सामने बा।
टीम जोगीरा भोजपुरी फिलिम जगत में वयाप्त अश्लीलता के खिलाफ अभियान चला रही है रउरा लोगन से हमार बिनती बा कि इ अभियान में हमनी के साथ दी।
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तुलना करनी जरुरी नहीं है ! हिंदी की बात करे तो उनमे कहानियों में काफी प्रयोग भी होते है ,लेकिन हमारी भोजपुरी फिल्मो में कोई भी प्रयोग नहीं होता ,कहानिया आज भी सदियों पुरानी लिखी जाती है ,आठ दस गाने ठूंस दिए जाते है जबरदस्ती .बिना सिचुएशन के जिनमे से आधे गाने द्विअर्थी एवं अश्लील होते है , रही बात हिंदी फिल्मो की तो उनसे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ! किन्तु भोजपुरी फिल्मो को अक्सर उत्तर भारत और बिहार के समाज का प्रतिबिम्ब कहा जाता है ,और इनमे बढ़ते फूहड़पण एवं अश्लीलता से हमारे उत्तर भारत एवं बिहार की छवि ही खराब होती है .
हम सिर्फ तुलना ही करते रहेंगे तो बुराई पर ध्यान कैसे जायेगा ?
अब होली के पर्व को ही ले लीजिये ,होली के आते ही मार्किट में एक से बढकर एक गंदे द्विअर्थी गीत आने लगे है ,होली का मतलब इन सबके लिए सिर्फ ‘चोली ,ब्लाउज ,पेटीकोट ,केला ‘फलाना ढिमका ‘ही रह गया है !
कहानिया आज भी उसी तर्ज पर है जिस तर्ज पर भोजपुरी फिल्मो की शुरुवात हुयी थी !
बल्कि पहले की भोजपुरी फिल्मो में क्वालिटी होती थी जबकि आज की भोजपुरी फिल्मो का स्तर गिरते जा रहा है ,फिल्माकन की तकनीक तो किसी टीवी सीरियल से भी बदतर है ! इस दशा को बदलने का कोई प्रयास नहीं करना चाहता .
और जब ऐसी कोई बात सामने आएगी तो हम अपनी गलती देखने के बजाय पडोसी को दोष देना शुरू कर देते है /