ना चाही हमरा ई पैकेज | भोजपुरी कहानी | चन्दन कुमार सिंह

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चन्दन कुमार सिंह
चन्दन कुमार सिंह

ई पिछले साल के बात ह, हमहुँ दिळी से दिवाली आ छठ पूजा तक के छुटी लेके घरे पहुँचल रहनी, बड़ा बढ़िया लागत रहे गावं मे आपन लोग से मिलके, अउरियो लोग परब मनावे छुटी लेके आइल रहे, सारा बहरवासु लोग (बाहर रहे वाला लोग के बोलल जाला ) उतरल रहले और कुछ के पहुंचे के रहे.…
जब हम साझी के घुमंतरा मार के घरे अइनी त माँ (माई ) बोलली काहो खाली घुमंतरे होइ.… की कुछ कामो कर बऽ सवेरे के निकलल ए बेरा घरे आवत बाड़ऽ त हम बोलनी का काम बा हमरा केहु बताई तब नुऽ

ताले पीछे से आवाज़ आइल (हमार बाबूजी) बाबू साहेब घरे रहस तब नु इहा के त घुमंतरे से फुरसत नइखे ई ना की तनी घरे बईठ के घरो के लोग से बात करली हाल चाल ले ली लेकिन दोस्तीयारी से फुरसत होखे तब नु दिन भर लखेरन के साथे घूमत बड़े।

एतना बात सुनला के बाद हम चुप चाप जाके के कुर्सी पर बइठ गइनी। सुनऽ हई लिस्ट ले ल ऽ आ काल मीर गंज () जाके परब के सारा सामान ले के अइह.… तनी सवकेरे निकल जइह बाजार मे भीड़ भड़का होइ, आ सामान तनी मोल मोला के ले ला (हमार बाबूजी)
ठीक बा (हम बोलनी)

हमहू सबरे उठ के चल देहनी

का हो का हाल बा (दोकानदार से हम पूछनी दोकानदार हमार जान पहचान के रहे )

दोकानदार: ठीक बा चन्दन भाई बड़ा ढेर दिन के बाद घरे आइल बाड़ऽ

का कहल जाव ई प्राइवेट नोकरी मे छूटीं के बड़ा मारा मारी रहेला

ताले पीछे से आवाज़ आइल (एक बुजुर्ग) हऽ भाई एघरी बाबू लोग MNC मे काम कर बा लोग आ अब सैलरी ना पैकेज मिलत बा, एतना पढ़ा लिखा दऽ आ ओकरा बाद फ़ोन करऽ त सुने के मिलत बा की हम घरे ना आ पाएब छूटी नइखे, एतना पढ़वला लिखावला के का फायदा की परबो तेव्हार मे छूटी नइखे, माई अलगे रोअत बाड़ी की दउरा के उठाई।

ये अच्छा बा की येहिजा रहऽ लोगीन कम से कम अकाजे सुकाजे काम त आई लोग ना चाही हमरा ई पैकेज। बुजुर्ग आपन झोरा उठवले आ चल देहले लेकिन उनकर ई बात हमरा दिल आ दिमाग मे बइठ गइल बा।

चन्दन कुमार सिंह (एगो सच्ची घटना पर आधारित )

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