महेन्द्र कुमार सिंह नीलम जी के लिखल किताब जियरा बोले जवन कि एगो भोजपुरी गीत संग्रह ह, जवना में नीलम जी २२ गो गीतन के संकलन कइले बानी।
नीचे दिहल गीत महेन्द्र कुमार सिंह नीलम जी के लिखल किताब जियरा बोले (भोजपुरी गीत संग्रह) से लिहल गइल बा।
सरस्वती वंदना
कमल बईठ हाथन में बीना लेहले तान सुना दऽ।
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ आज जगा दऽ
हंस वाहनी हऊ तू माई हंस सनेसा पठा दऽ
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ प्राज जगा दऽ।
कईसे पूजा-पाठ करी हम गियान नहीं हे माई,
अईसन बल दे देतू हमके लिखि तोहार गुन गाईं,
सगरो छिन में हो उजियारा अईसन जोति जगा दऽ
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ आज जगा दऽ।।
बिनती करी तुहार हे माई आई हिरदय में बईठऽ,
भाव जगा के हमरी लेखनी में माई तू पईठऽ;
निसि-दिन तोहरो गुन हम गाईं अईसन लगन लगा दऽ
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ आज जगा दऽ॥
जे तोहार सेवा हो कईलस अमर होई गयल माता,
हम अज्ञान जनम कऽ माई तू बाड़, हो दाता,
करी अमर गाथा तुहार हम अईसन भाव बुला दऽ,
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ आज जगा दऽ।।
आवऽ माई आव माई अईसन मन में अईहऽ,
मन का जोत्रि जगा के माई फेरि कबहूँ मत जईहऽ;
जेहिसे तोहरो दरसन पाईं अईसन जोग सिखा दऽ
सुत्तल भाव हिरदय कऽ माई अब तऽ आज जगा दऽ।।
फागुन के साँझ
बनवा में चिरई गावे ले,
जियरा कऽ हाल सुनावे ले,
संझियाँ में गते गते मनवा डोलावे लागल
फागुन कऽ अबतऽ बयार हो।
सुरूज कऽ मुंह भईलन लाल,
कि पोतलन मुहें में गुलाल,
कि संझियाँ के अंगना में, होरी हुरदंग भईल
भईल अबीरे कऽ मार हो ।
फुलवन में छिपलन बसंत,
जईसे गोरिया के अंखिया में कंत,
मनवा हो डोली जाला, भवंरा भईलन मतवाला
देहियाँ के पावे ना सम्हार हो।
इनरे पर पीए कोई भंगऽ,
कोई फाग गावे बाजे मिरिदंग,
फागुन के अवते, गंऊवन कऽ रंग बदलल
बदलल सब संसार हो॥
जाड़ बसेलन ओहि पार,
चिरई कहेले पुकार, अइसन जनाए लागल, गरमी के दुल्हाके
कान्हि पर धरिके आवत होईहें कहार हो ।
फागुन कऽ बयार
भुईयाँ फूल कऽ इढ़ावे अब हार,
पहुनवा फागुन अईलन दुआर,
गम गम गमके गुलबआ कऽ बगिया,
आम बऊरईल सेमर बन्हलन पगरिया,
देखिके हसेलंऽ कचनार हो,
फागुन अईलन, दुआर हो॥
फुलवन में छिपलन आईके बसंत राजा,
रसवा कऽ लोभी भंवरा गुन गुन गुन बजावे बाजा,
धरती करऽ अब सिंगार हो,
फागुन अईलन, दुआर हो॥
इनरे पर बईठ कोई पीएला भंगऽ,
कोई फाग गावे बईठ ढोलक के संगऽ,
कि ऐहि में बूड़ल संसार हो,
फागुन अईलन दुआर हो॥
गली गली धूम मचल फाग अऊर होरी कऽ,
हिल-मिल गांव गावें राधा किसुन जोरी कऽ,
कि होला अबीरे कऽ मार हो,
फागुन अइले दुआर ॥
अगिया लगावे बहि बसंती बयरिया,
मदन सतावे गोरी बोले जब कोईलिया,
कि सिहकेला छिप के पियार हो,
फागुन अईलन दुआर हो ॥
जरेला गऊँवा हमार
गरमी में लुहिया तपनिया से चारू ओर ,
बहे लागल पछुवा बयार हो,
आगी बरसावेलन सुरूज किरनिया से,
जरे लागल गऊंवा हमार हो॥
सगरो झुराई गईल भुईयाँ कऽ दुबिया हो,
नदी कऽ फार जियरा निकलल रेतिया हो,
नेहियाँ तऽ छोड़ि चिरई परदेस उड़ि गईलिन,
पड़लन कछार दरार हो,
रामा जरे लागल गऊंवा हमार हो॥
बिरही अकास देक्खऽ रोवेलन मनवा में,
चिरई पियास के हो रोवेलिन बनवा में,
ताल अऊर पोखरी झुराई गईल चारूं ओर,
सूखे लागल सगरो ईनार हो,
रामा जरे लागल गऊंवा हमार हो।।
चारू ओर नाचे ले देखऽ अब खरवनियाँ,
मिरिगा पियास धावे बूझे कि मिली पनियाँ,
नद्दी के भरमऽ में धावत भरी जालन,
पवलन नऽ कबहूं किनार हो,
रामा जरे लागल गऊंवा हमार हो,
खेतऽ खरिहान में देवरी चले हो लागल,
उखियन के पेडियन में पनिया बहे हो लागल,
पाकड़ पिपरा के छहिया में गोरू बईठे,
बईठेलिन गईया दुधार हो,
रामा बहे लागल पछुवाँ बयार हो,
धरती पर आन्ही अऊर अन्हड़ देखात अब,
नन्हको चिरईया बड़ेरवन लुकात अब,
रतिया तऽ नन्ही चुक्की घुँघटा के डार लेहलस,
दिनवा तऽ भईलन पहार हो,
रामा जरे लागल गऊंवा हमार हो
लुहिया तs रहि रहि के देहिया जरावेले,
रतिया गरम होके मन उमसावले,
मनवा कऽ धीर गईल देहिया अधोर भईल,
बहेला पसनेवा कऽ धार हो,
रामा जरे लागल गऊंवा हमार हो।।
गुहार
धरती करेले अब तऽ गृहार
कि आवs बदरा,
जब से तूं परदेसी भईलs, सूना लगे अकास हो,
बढ़ल सुरुज कऽ तपन, अऊर बेधत बा गरम बतास हो,
मन व्याकुल बा तोहरे खातिर,
जियरा कहे पुकार,
कि आवs बदरा,
सूखल ताल अऊर पोखरी, कि कुईयाँ गईल पताल,
कोरॉ में रेतिया के लेहले, नदिया भईल बेहाल,
नेह छोड़ि चिरई उड़ि गईलिन,
रोवत सुनऽ कछार,
कि आवs बदरा, ॥
ना जाने कवने असगुनवां, बढ़ल बा सुनऽ तपनियां,
गऊवाँ के पिछवारे आके, नाचत बा खरवनियाँ,
माथ धुनत बा सोन चिरइया,
रोवत जार बेजार,
कि आवs बदरा,॥
अतना सिसकल रात कि ओकर , घटि गइल सुना उमिरिया,
भयल बेजार आज दिनवा बा, रोवत बा दुपहरिया,
पाकड़ पिपरा के छहियाँ में,
हाँफे गाय दुधार,
कि आवs बदरा,
दल बल बान्हि चले अन्हड़, कि जियरा बहुत डेरावे,
भरम जाल पनियाँ कऽ अइसन, मिरिगा प्रान गंवावे,
जिनगी पड़ल अथाह आज बा,
कईसे लागी पर,
कि आवs बदरा॥
जेठ कऽ तपन
गरमी के अवते किरिन जरावेलीं,
मनवा कऽ बैर काढ़े सुरूज निरिमोहिया,
भुईयाँ कऽ अंग अंगऽ रहि रहि तड़फेला,
लुहिया कऽ बान मारे पछुआँ बयरिया…..
बदरा के खातिर उपराँ बिरही अकास रोवे,
पनियाँ के खातिर तरवाँ भुईयाँ पियास रोवे,
चान अऊर तरईन कऽ कुईयाँ झुराईल,
कि धरती कऽ छुछ भइलिन सगरो गगरिया,
लुहिया कऽ बान मारे पछुवाँ बयरिया…..
दुबियाँ कऽ अंचरा हटल भुईया उघार लागे,
लजिया बचाव केहू बहियाँ पसार मांगें,
आवऽ आवऽ आवऽ परदेसी मोरे बदरा,
क कहवा तूं भूली गईलऽ आपन डहरिया,
लुहिया कऽ बान मारे पछुवाँ बयरिया …..
पुरुबे से अन्हड़ चले पच्छिमे से आन्ही ,
रेतिया में मिरिगन कऽ लूटे जिनगानी,
खोतवन बड़ेरवन से झाँकि झाँकि सुटकेली,
चीव मींव बोलेली हो नन्हकी चिरईया,
लुहिया कऽ बान मारे पछुवाँ बयरिया……
नाचे ले खरवनियाँ गऊवाँ पिछिवारे,
थकल बटोही बईठे आई के दुआरे,
रतिया कऽ अब तs जिनगी हो घटि गईल,
दिनवा कऽ सवंसो बढ़ल हो उमिरिया,
लुहिया कऽ बान मारे पछुवाँ बयरिया …..
दंवरी चले अब तऽ खेत खरिहान हो,
नईको फसिलि दावें जुटि के किसान हो,
पिपरा की छहियां में गउवा कऽ गोरूआ,
करेलन पगुरी भरी दुपहरिया,
लुहिया कऽ बात मारे पछुवाँ बयरिया …..
रेतिया के कोराँ लेहले नदिया अब सिसकेले,
तलवा में बईठे खातिर चिरई हो झिझकेले,
ताल अऊर पोखरी कऽ देहियाँ झुराईल,
कि फाटल कछारे के हियरा दररिया,
लुहिया कऽ बान मारे पछवाँ बयरिया……
पंचवर्षीय योजना
खेतवा में धान लहरे,
नहरे में पानी,
भुई मुसुकाइल,
गऊंवा पवलन जिनगानी॥
ताल अऊर पोखरी कs,
गयल हो जमनवाँ,
पूर अऊर रहट भईलन,
सुनऊ हो सपनवाँ,
ट्यूब वेल अब करे सिंचाई,
कुईयाँ भईल हो पुरानी-राम………..”
गऊवन का मिटल अबs,
सुनअ अन्हियारा,
बिजुरी के खम्वहन से,
मिली उजियारा,
दियरा कऽ गईल जमाना,
कहे सब कहानी- राम…………
बैर भाव से नाहीं होला,
सुनऽ बंटवारा,
पंचईती गऊवन में,
करे निपटारा,
नाहीं अब केहू संगी,
करी मनमानी- राम…………
बान्हे से रोक न जाला,
बाढ़े कऽ पानी,
चऊवन कऽ जान बचल,
सुखी गाँव कऽ प्रानी,
खेते में खेतिहर हो गावें,
लऊटल बा जवानी- राम…………
हर बैल थकहर भईलन,
टैक्टर कऽ काम बा,
जे जयदाद अधिक उपजावे,
ओही कऽ अब नाम बा,
जे सबकर हो कंठ भरावे,
ऊहे बड़ा दानी- राम…………
कल-करखाना बढ़ेला दिन-दिन,
मेहनत घटि जाला,
गियान बढ़े खातिर गऊंवन में,
खुलल पाठशाला,
विद्या माई के अईला से,
मिटल अनूठी निसानी- राम…………
हिल मिल गऊंवा सड़क बनावे,
बिन कऊड़ी बिन दाम हो,
जहाँ पसेना गिरेला भईया,
ऊहाँ बनत बा धाम हो,
जाति पाँति कऽ भेद मिटल, अ
ब चलल हुक्का पानी- राम…………
बरसात कऽ विरहनी
चढ़ि के अकसवा बदरा हो छाई गईलन,
बरखा कऽ पड़लिन फुहार हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जइता,
जिनगी में आई जात बहार हो,
सोन्ह सोन्ह धरती महक गईल चारू ओर,
बुनियाँ गिरेली रसधार हो,
सुखली हो दुबिया हरी भईलिन भुइयवाँ,
ओरिया चुवेली दिन रात हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जइता,
जिनगी में पाई जात बहार हो,
नद्दी ताल भर गइलिन पोखरी हो भरि गइलिन,
आइल अब बरसात हो,
हंसवा हो उडलन पिया परदेसी कs,
लेहले सनेसा पियार हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जइता,
जिनगी में पाई जात बहार हो,
मनवा कऽ दुखड़ा कहे के हो बदरा से,
बन में कोईलिया बोलि जात हो,
मोर अऊर दादुर पपीहरा हो बोले लगलन,
मन उनहूं कऽ हरसात हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जईतs,
जिनगी में आई जात बहार हो,
पुरुवा के गोदिया में फेड़वा हो झुमें जईसे, .
मद पीके कोई झूमी जाय हो,
जगवा के लोगन के अईसन अनन्दऽ मिले,
जईसे निधन धन पाय हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जईता,
जिनगी में पाई जात बहार हो,
बैरिन बिजुरी चमक जाले बदरा से,
जियरा बहुत डरि जाय हो,
दियरा जरा के अधी रात जोहे गोरिया,
मनवा बहुत अकुलाय हो,
अईसे में कंता बिदेसवा से आई जईता,
जिनगी में पाई जात बहार हो ।
सरद
भुईयाँ उतरल सरद महिनवा नु रे
जिया काँपि काँपि जाय ॥
सुखी भईलन हो अकास,
सीत बहे ला बतास,
देक्ख नद्दी दुबराईल,
ताल पोखरी अघाईल,
बरखा गईलन करे अब गवनवाँ नु रे
जिया काँपि काँपि जाय, ॥
सुरुज मुह ना देखावे,
पाला ओनके डेरावे,
ठिठुरै पुरबे सबेरा,
साँझ भूले आपन डेरा,
रात लमहर छोट भयल दिनवाँ नु रे,
जिया कॉपि कॉपि जाय, ॥
बने चिरई न बोले,
दादुर मुह नाहीं खोले,
मिटल सबकऽ पियास,
न छूटे जोगनी कऽ आस,
जब बोले रात सियरा सिवनवाँ नु रे,
जिया काँपि काँपि जाय,॥
मटर, राई, चना, फूले,
फूल सरसों कऽ झूले,
तीसो ठुमुक ठुमुक मनवा
कऽ बतिया हो बोले,
देख गेहूं जव, लहरे किसनवाँ नु रे,
जिया काँपि काँपि जाय,॥
जब कुहेसा छाई जाय,
नाहीं पैंयड़ा देखाय,
जिया परबस होवे,
देही रहि रहि जुड़ाय,
सुरुज गतै गतै उतरें अगनवाँ नु रे,
जिया काँपि काँपि जाय,॥
जुदाई
होई गइलन भिनसार, बुड़ली तरईया,
बिरिछन पर जागि जागि बोललिन चिरईया ।।
कांपे हो लगल देवख दियना कऽ जोतिया,
छिन में छुटि जईहैं इनकर जिनगी कऽ सथिया,
दिनवा में कवन होईहें धीर कऽ देवईया,
पेडवन पर जागिः जागि बोललिन चिरईया ॥
मन अब मुरझाइल जईसे हो की फुलवा,
सोचो सोची तोहरा के लागे जईसा सुलवा,
मोरे कंता निरमोही बन मत जरहिया,
बिरिछन पर जागि जागि बोललिन चिरईया ॥
मन नाहीं धीरज पवलन मिली के हो रतिया में,
बहुत कुच्छू रहि गईलन कहे के बतिया में,
सुनलऽ तूं अंखियन में आँसू जनि भरहिया,
पड़ेवन पर जागि जागि बोललिन चिरईया ॥
रतिया तs बीतल अईसे जईसे मन कऽ सपना,
केतनो बनावs चाहे होलन नाहीं अपना,
अईसे ही तूं मति कंता हमके बिसरिया,
बिरिछन पर जागि जागि बोललिन चिरईया ॥
अब कबऽ आवन होई सचऽ सचऽ बता दs,
कईसे हम धीरज धरबs बतिया सिखा दऽ,
हमरे तs जिनगी कs तूहीं तऽ खेवईया,
पेड़वन पर जागि-जागि बोललिन चिरईया ॥
सावन कऽ फुहार
सावन कऽ पड़लिन फुहार चारू ओरियाँ,
कि हमरे पिया हो परदेस सजनी,
बतिया बहुत कुछ कहे के बा मनवा कs,
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ॥
बड़ी बड़ी बुनियाँ गिरेली हो भुईयवाँ,
ओरिया चुवेली दिन रात सजनी,
पुरुवा के चलला से तन अंगड़ाई ले ला,
बिरह सतावे बरसात सजनी,
बतिया बहुत कुछ कहे के वा मनवा कऽ,
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ॥
ताल अऊर पोखरी में आईल बा जवनियाँ,
नदिया बहे ले फुफकार सजनी,
अईसे में छोड़ि कंता मोहें परदेस गईलन,
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ।।
मोर अऊर दादुर पपिहरा हो पाई गईलन,
दुखड़ा कहे के अपने मन कऽ सजनी,
अमवन के पेड़वन के झुरमुट से झाँकि झाँकि,
बोले हो कोईलिया देक्ख बन कऽ सजनी,
बतिया बहुत कुछ कहे के बा मनवा कऽ,
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ॥
फुलवा खिलेलन जूही अऊर हो चमेलिया कs,
बेलवा खिलेला आधी रात सजनी,
पवन-देव फ़ईलाई देलन महकिया तऽ,
मनवा नऽ बस में रहि जात सजनी,
बतिया बहुत कुछू कहे के बा मनवा कऽ
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ॥
बिजुरी सवति डाह रखिके हो मनवा में,
रहि रहि हमके जराए सजनी,
हमके अकेले जानि बदरा हो गरजें तड़पे,
देहियाँ भिगाँ के हो पराए सजनी,
बतिया बहुत कुछ कहे के बा मनवा कs,
कईसे हम भेजों हो सनेस सजनी ॥
देक्खऽ बैरी हंस दूर से ही कतराय उड़े,
नाहीं हो सनेसा लेई जाए सजनी,
दूध भात खा के कागा अब निरमोही भईलन,
पिया कऽ बात कहे से लजाए सजनी,
बतिया बहुत कुछ कहे के बा मनवा कऽ,
कईसे हम भेजी हो सनेस सजनी ॥
बदरा आवत होईहें
बदरा आवत होईहेंहमरे दुआर,
क लेहले सनेसा पियार हो॥
नेहियाँ कऽ अब तऽ नदिया फफाई,
परत परत परती अगराई ।
कि बूड़ जईहैं बिपति कछार,
बदरा आवत होईहैं हमरे दुआर ॥
रतिया में भिंगुरन कऽ बाजी हो बंसुरिया,
बेला नीयर सुधिया कऽ गमकी पखुरिया।
कि झुकि जईहैं सईजन कऽ डार,
बदरा आवत होईहैं हमरे दुबार ॥
गम गम गमकी केहू कऽ पिरितिया,
ढ़ही ढिमिलाई जइहें दुखवा कऽ भितिया ।
जब बुनिया गिरी रसधार,
बदरा आवत होईहैं हमरे दुआर ॥
दुअरे पर ओरिया कऽ चूई जब पनियाँ,
अंगना में बुनियाँ कऽ बाजी पयजनियाँ।
झनक उठी मनवा कऽ तार;
बदरा आवत होईहैं हमरे दुआर ॥
बदरा से
नेहियाँ कऽ पनियाँ लेहले चाहे केतनो धावऽ बदरा,
नील हो अकसवा कऽ पईबन ना किनारा…..
रहि रहि भर लेहलेऽ, चाँन सूरूज झोरिया में,
तरईन के बईठाई लेहलऽ, तूं डोलिया में।
सज धज जात हऊवऽ कवने नगरिया तूं,
मरि जईब तबहूं न पईबऽ हो दुआरा…….
पुरवा के संगवा में, हसत बोलत आयल हऊवs,
बिजुरी गोरिया के सत, चुनरी लिपायल हऊवऽ
साध नाहीं पूर होई, पहें, हो जगवा में,
धावत धावत थकि जईबऽ, पईबs नाहीं पारा………
अंसुवन के गिरला से गली जई हैं देहियाँ हो,
तबहूं ना पुर होई पहें तोहार नेहियाँ हो।
तड़प तड़प रही जईबऽ अपने तूं मनवा में,
कबहूँ नऽ मिली पहें तोहारो पियारा………
बिरही तूं होके सुनिलऽ बिरहिन जरावे लऽ,
तबहू तूं जाने काहे, मनवा के भावेलऽ।
गरज गरज चाहे केतनो, अरज तूं कर लऽ हो,
सूनी नाही केहूं बतिया केतनो पुकारा………
बरखा बहार
आईल बरखा का बहार,
सुनऽ मोरी सजनी,
पुरुवा बहे ललकार,
सुनऽ मोरी सजनी ।।
बुनियाँ नाचे धरती अंगना,
बदरा अईलन करे गवनां,
धरती कईलस हो सिंगार,
सुनऽ मोरी सजनी ॥
ताल पोखरी अघाईल,
नद्दी कs नेहियां फफाइल,
बूडल सवसों कछार,
सुनऽ मोरी सजनी ॥
मोर दादुर तान छोड़लन,
पंछी आपन बान तोडलन,
उड़ल बकुला कतार,
सुनऽ मोरी सजनी॥
भुईयाँ परत परत फूलल
दुबिया पुरुवा गोदी झूमल,
नाहीं लऊकत ददार,
सुनऽ मोरी सजनी॥
पुरुवा वैरी सनन बोले,
‘पेड़ कऽ जियरा हो डोले,
धरती होले हो उघार,
सुनऽ मोरी सजनी॥
बदरा जियरा डरावे,
बिजुरी सवति बन जरावे,
करे चारू ओर अन्हार,
सुनऽ मोरी सजनी ॥
सुनि पपीहा कऽ गुहार,
देहियाँ गले जस मनार,
अखियाँ चुवै ओरी कऽ धार,
सुन मोरी सजनो ॥
बारहमासा
रोई रोई कहे महतारी हो रामा
राम बिनु मनवा भिखारी हो रामा,
राम बन गईलन लखन बन गईलन ,
सीता बिनु नगरी दुखारी हो रामा॥
चईत मास अवते झुराई फुलवारी हो,
के सींची फुलवन किारी हो रामा,
रोई रोई कहे महतारी हो रामा..
वईसाख जेठवा, में लुहिया तपनियाँ से,
जरि जईहें मोर बनवारी हो रामा,
रोई रोई कहे महतारी………
चढ़ते अकसवा जब बदरा हो छाई जईहें
ठाड़ होई हैं कवने दुआरी हो रामा
रोई रोई कहे महतारी……
सावन भादों में ओरिया के चुवते,
सीता कऽ भीजिहैं सारी हो रामा
रोई रोई कहे महतारी………
कुआर, कातिक, में सरद के आवते
अरती के ओनकर उतारी हो रामा
रोई रोई कहे महतारी………
अगहन, पूस, माघ जड़वा जब पड़िहे,
लालन के तन पाला मारी हो रामा, .
रोई रोई कहे महतारी………
फागुन महीनवां जब होलिया हो अइहें,
के भरो रंग पिचकारी हो रामा
रोई रोई कहे महतारी………
मोहन-मोहनी
आवऽ-आवऽ आवs सखी,
धावऽ-धावऽ धावऽ सखी,
जमुना के तीरवाँ बाजल हो कन्हईया जी कऽ बंसी,
बाजल हो कन्हईया जी कऽ बंसी ॥
जुग जुग जागे लागल, तरई चारू ओरियाँ,
हरि जी हो बईठ लहोई हैं, कदम के छहियाँ;
चलऽ सखी धाई चलीं, चलऽ हो पराई चली;
जमुना के तीरवाँ बाजल हो कन्हईया जी कऽ बंसी,
बाजल हो कन्हईया जी कऽ बंसी ॥
बंसी कऽ सुन तान, जियरा में लागे बान,
मछरी के नियर तड़पे देहियाँ में मोरे प्रान;
चलऽ सखी बढ़ी चलीं, लपक लपक चलऽ चलीं;
जमुना के तीरवाँ बाजल हो कन्हईया जो की बंसी,
बाजल हो कन्हईया जी की बंसी ।।
तोड़ चल लोक लाज, छोड़ि चलऽ सगरो काज,
होत बा अबेर देक्ख, करअ ना सिंगार साज;
चला-चला चली सखी, जल्दी बढ़ी चलीं सखी;
जमुना के तीरवाँ बाजल हो कन्हईया जी को बंसी,
बाजल हो कन्हईया जी की बंसी॥
बंसी तऽ देक्खऽ सखी, हरि के नचावेले,
तबहूं हो जाने काहे, मनवा के भावे ले;
बंसी बोलावत बा, मनवा डोलावत बा;
जमुना के तीरवाँ बाजल हो कन्हईया जी को बंसी,
बाजल हो कन्हईया जी की बंसी॥
छेड़-छाड़
तूं तऽ करिया बाड़ऽ कन्हईया,
राधा देक्खऽ गोर हो।
बजा बजा के तारी लरिकन,
ब्रिज में मचवलन सोर हो ॥
देक्खऽ जमुना करिया बाँड़ी,
कदम कऽ फुलवा गोर हो।
बजा बजा के तारी लरिकन,
ब्रिज में मचवलन सोर हो।
जन्म कऽ भुक्खड़ऽ खईले खातिर,
गली गली तू मार करऽ।
भरलऽ मटुकिया दही कऽ घर,
घर से सुनलऽ तूं पार करऽ॥
बलदेऊ भईया हो सच्चा,
तू तs बाड़ऽ चोर हो
बजा बजा के तारो लरिकन,
ब्रिज में मचवलन सोर हो॥
कऊवा नीयर. तूं चलाक हो,
रहन न भावे तनिक कन्हईया।
बजा बजा के बंसी सबसे,
मांगऽ मक्खन दही मलईया ॥
बात बात में कहेलs तूं तऽ,
राधे गोईयाँ मोर हो।
बजा बजा के तारी लरिकन,
ब्रिज में मचवलन सोर हो ॥
छोट घुघट मुह बड़ डेरवावन,
जरीके में खिसियालऽ हो
ऊपरा से तूं भोला भाला,
भितरा से तूं काला हो ।
चिऊंटी नीयरऽ हाड़ मास बा,
पर बाड़ऽ मुह जोर हो।
बजा बजा के तारी लरिकन,
ब्रिज में मचवलन सोर हो ।
गंगा-पूजन
करतऽ निहोरा तूं बरऽ देतू गंगा मईया,
गोदिया हमार भरि जातऽ हो,
बन के भिखारिन अंचरा पसारत हई,
कोखिया हमार खुली जात हो॥
सुनीलऽ की दुखियन कऽ दुखवा तू काटे लू हो,
सुनीलऽ को पपीयन कऽ पपवा नसावे लू हो,
तोहरे दुआरी हम अरज करत बानी,
दुखवा हमार कटि जात हो॥
तोहके चढ़ाईबऽ सेनुर अऊर पियरी हो,
घिऊया कऽ रोज हम चढ़ाईब तू हे दियरी हो,
मनवा कऽ दुखवा तूं अईसन काट देतू,
लोगिनि भरम मिटि जात हो॥
तोहरा के आर पार मलवा चढ़ाईबऽ हो,
नईया पर चढ़ि के हम गितिया सुनाइब हो,
सब करब पूरा हो जेवने न कहबू,
रख दे तूं अतने मोरऽ बात हो॥
देस परदेसवा तोहार गुन गईब हो,
पाँच सुहागिन संग गितिया सुनाईब हो,
सुन्नर ललना तूं गोदिया मेंऽ देई देतू,
मनवा हुलस मोर जात हो॥
मन कऽ आसा
ऊचे हो अंटरिया से कागा आज बोले लागल,
पिया घर आवत होईहन जियरा हो डोले लागल ॥
नेहियाँ से पढ़ि पढ़ि के रखली ओनकर पाती,
दुखवा हो मनवा में रखली दिन राती।
आवन सनेसा सुनि दुखवा भुलाए लागल,
पिया घर पावत होई हैं जियरा हो डोले लागल ॥
डरियन पर हंसि हंसि के खिललिन चमेलिया,
छिपे लागल देक्ख अब बैरिन कोईलिया।
आवन सनेसा सुन मनवा हो गावे लागल,
पिया घर आवत होई हैं जियरा हो डोले लागल ॥
तू बतास निरमोही बन हो जरईलs,
दुखवा में बहि-बहि हमके सतईलऽ
तोहरो हो करतूति अबऽ मोहें भावे लागल,
पिया घर आवत होई हैं जियरा हो डोले लागल ॥
रोज हम केतना हो दियना जरवली,
केतने हो दियना कऽ बतिया बुझवलीं।
निसि-दिन जरे दियना मनवा हो कहे लागल,
पिया घर आवत होई हैं जियरा हो डोले लागल ॥
अंगने बेड़वन पर छईलिन अंजोरिया,
मनवा में गाई गाई सजले गुजरिया
पिया कऽ आवल सुनि घर दुआर भावे लागल,
ऊंचे हो अंटरिया से कागा आज बोले लागल॥ !
चान-चकोर
चाँन निरमोही हुउन चिरई छली, जईहे,
लाख तू मनऊती करलऽ नियरे नऽ अईहैं।।
जल से निकलि के हो, चढ़लन अकासा,
तरईन के देसवा में, कईलन जाके बासा,
चिरई जनि भरोस करऽ तहें भरमईहैं,
लाख तू मनऊती करलऽ नियरे नऽ अईहैं ।।
जाने केकर डीठ लागल, इन की सुरतिया परs,
दाग लागल जिनगी भरके, इनकी मुरतिया परऽ,
जेतने पियार करबs प्रोतने घटि जईहैं,
लाख तू मनऊती करलऽ नियरे नऽ अईहैं ।।
संग लेके आवलेन, तरईन कऽ बरतिया,
चुप चाप भेंटलन, दुल्हिन कारी रतिया,
चुपै बतियाई के हो, चुपै छिपी जईहैं,
लाख तू मनौती करलऽ नियरे नऽ अईहैं ।।
जगवा में कबहूं नऽ, पूरलिन नेहियां,
साध नाहीं पूर भईलिन, गलि गईलन देहियाँ ।
साध नाहीं तोहरो, पूरि होई पइहें,
लाख तू मनऊती करलऽ नियरे नऽ अईहैं ॥
डंऊगिन पर रोई रोई, चिरई मरि जईबऽ,
सुनुग सुनुग मनवा में, तू हूँ जरि जईबs,
तबहूं ना पियास तोहरो, कबहूं बूझि पइहें,
लाख तू मनऊती करलऽ नियरे नऽ अईहैं ॥
विरह
जब से पिया परदेसवा में छवलन,
सुधियो न लिहलन मोर।
कईसे जरेला ओनकर दियरा कऽ बाती,
पतियो न लिखलन थोर ॥
सुन हो अगनवाँ अंटरिया न भावे मोहें,
लागे दुआरी जस चोर।
अन, जल अऊर सिंगार नाहीं भावे मोहें,
देहियाँ झुराए जईसे धनवा कऽ पोर…..
रोई-रोई रतिया में अंखिया सिराई जाले,
भींजेला अंचरा कऽ छोर ।
चूल्लू भर पनियाँ में चानां तू हूँ बुडि जईता,
देला न सनेसा ओनके मोर…..
कऊया दहिजरा के लजियो न लागे देक्खऽ,
बईठे ना बड़ेरवन मोर
धुआँ उठे ओरमल बदरवा जे आयल बाड़न,
छूछे मचावेलन सोर….
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