किसान दिनभर धावेला
तबो कुछु ना पावेला,
थुके सातु सानेला।
दोसरा के जिनगी देवे,
अपने माड़भात पावेला।
दिन रात रो रो के
आपन जीवन सुखावेला।
पेट पीठ सभ एक भइल
तबो काम में जाले जुटी,
दईब कुछ त बताव
इनिकर किरिन कब फुटी।
कीड़ा,मकोड़ा,चिरई,चुरूंग
चोर,चाईं,दईब,गोसाईं
सभे इनिके के लुटी।
कवनों साल मिलला के छोड़ि
धईल पूँजी भी जाय टुटी।
दईब कुछ त बताव
इनिकर किरिन कब फुटी।
कब दिन कब रात भइल,
जवानी खेत में खपि गइल।
ना कुछउ टुटतारे, ना कुछउ पचि ।
जवानीए में मउनी भइले,
दाँत आँख साथ छोड़ि गइले।
कहँरे ले धइके खाटी,
गिरल बाड़े ना जाय उठी।
दईब कुछ त बताव
इनिकर किरिन कब फुटी।
सिहरल बाड़े देखि के बेटी,
तिलक दान दहेज देवेला,
रुपया पइसा कहाँ से जुटी।
बिना रुपया पइसा के,
सुनर बर कइसे भेंटी ।
एही सोच में डुबल रहेलन
लागे बेटी के जीवन दुखे में कटी।
दईब कुछ त बताव
इनिकर किरिन कब फुटी।
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रचना- विमल कुमार
ग्राम +पोस्ट- जमुआँव
थाना- पीरो, भोजपुर( बिहार )