खोल, बाह्य आवरण के कहल जाला । ई प्राकृतिक आ कृत्रिम दुनो प्रकार के होला , जइसे- घोंघा के खोल, रजाई-तकिया के खोल आदि । एकरा अलावे खोल अईसन भी होला जे हमनी अपना कल्पना से आभासी दुनिया में रचेनी सs । एकरा के बनावे में कुछ लागेला ना , ई छुअल आ अलग से देखल ना जा सके ना कहीं सईंत के राखल जा सकेला बाकिर ऊ दोसरा के लउकेला , प्रभावित करेला ।
* वास्तव में आदमी जवन होला, ओकरा के ऊ छुपावे के कोशिश करेला आ ओइसन अपना के देखावे के कोशिश करेला जईसन ऊ दोसरा के निगाह में बनल चाहेला । ई प्रवृति नेता लोग में तनी बेसिये होला । आदमी अपना आदर्श के तरह बने/दिखे के चाहेला बाकिर ई तनी कठिन होला एहसे आदमी अपना आदर्श के अनुसरण ना करके उनकर अनुकरण करे लागेला । अनुसरण जेतने कठिन होला , अनुसरण ओतने आसान बाकिर दूर से आदमी के व्यक्तित्व त गढ़ ही देवेला। हालांकि पारखी निगाह त भांप ही लेवेला बाकिर ओइसन निगाह अपवाद स्वरूप ही होला समाज में आ एहसे ई अनुकरण वाला ‘खोल’ काम कर जाला ।
*फेसबुक , ट्विटर आदि आभासी इंटरनेट के दुनिया में ‘खोल’ के खेला अजब बा । कुछ लोग अपना के गंभीर,चिंतक,समाजसुधारक,जानकार,आदि देखावे के फेरा में दिन-रात जतन करेला । हल्का-फुल्का पोस्ट से बचेला । जरुरी नइखे जे हल्का पोस्ट या खाली गंभीर ही लिखाव , जरुरत बा कि आदमी के आपन मौलिकता बनल रहे बाकिर ई मुश्किल होला । कुछ दिन पहिले हम एगो विद्वान के फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजनी , स्वीकृत भी भईल बाकिर हमार सामान्य(कभी कभी मजाकिया भी ) पोस्ट उनका मित्र-सूची में बनल रहे खातिर घातक रहे, शायद लोग उनका के कहित कि, ”कैसे-कैसे लोग आपके मित्र हैं ”, त ऊ विद्वान जी चुप्पे से अन्फ्रेंड क देनी ।
*हमनी के घर के बैठका आ बाकी हिस्सा में फर्क होला । चुकी लोग बैठका में आवेला एहसे ओकरा के सजा-सवाँर के राखेनी आ बाकि के अपेक्षाकृत कम । ई बैठका हमनी के खोल ह जवन बाकि हिस्सा के छुपा के राखेला ।
*कम जानकारी भा अनुभव होखला के बाद भी अपना के जानकार/अनुभवी प्रदर्शित कईल आ ओकरा खातिर विभिन्न जतन भी खोल के स्वरुप ह ।
*चूकि भोजपुरी के पहचान अब तक अनपढ़-गंवार के ही बा एहसे भोजपुरी के जगह पर भी अंग्रेजी छाँटल कड़ा खोल के उदाहरण ह । अईसन बहुत सारा खोल/आवरण से हमनी अपना आप के ढक लेले बानी सs । तनी एक बेर निहारे के कोशिश करल जाव जे पियाज के छिलका नियर खोल दर खोल हमनी के असली रूप बा का ? कहीं पियाजे नियन अंत में शून्य त नइखे ?
#अंत में – ‘खोल’ एगो ताल-वाद्य भी होला जवन देखे में ढोलक/मृदंग से मिळत जुलत होला आ जवन पश्चिम बंगाल आ उड़ीसा में खूब प्रचलित ह ।
चन्दन सिंह (आखर के फेसबुक पेज से)