केकरा से नैना लड़ी, कौनो गारन्टी बा का।
केतना ऊपर से पड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
ई हऽ सम्मेलन कवि के, दउड़ के मत जा उहाँ।
चाए बिस्कुट हर घड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
ऊ हऽ नेता कइसे कह दीं, साँच बोली हर घड़ी।
ना करी धोखाधड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
खूब बा ससुराल पइसा वाला बाकिर यार जी।
तोहरा पर पइसा झड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
बाटे ऊ नीमन पड़ोसी बाकिर ऊ हमरा खेलाफ।
एगो दूगो ना जड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
करजा दे वे के ई आदत कइसे कह दीं ना करी।
खोंच के खटिया खड़ी, कौनो गारन्टी बा का।।
– मिर्जा खोंच