“का रे भगेलुआ, बाज़ारे चलबे” दीना पण्डित कहले,
सांझ के 4 बजे के बात ह, हाथ मे झोरा लेहले, दीना पाणे, बाजार करे निकलले त, सोन्च्ले की ,भगेलू (चमार) के भी बोला लीं | दुनु जाना पड़ोसी रहे लो |
” हऽ, बाबा, रुकीं, चलत बानी” मड़ई मे से आवाज आईल,
भगेलुआ, हाथ मे कुर्ता लेहले, अऊर झोरा ले के निकलल,
ई बात, सीवान के आलापूर गाँव के ह, दीना पाण्डेय, एगो बहुत ही दलिदर (गरीब) बाभन रहले, भीख मांग के अऊर, कथा-पूजा कराके, अपना परिवार के रोजी-रोटी चलवात रहले, घर मे पंडिताइन के अलावा एगो बेटी रहे, बड़ा परेसानी मे दिन कटत रहे|
उनकर पड़ोसी भगेलू राम (हरिजन), के घर मे मेहरारू झुनिया के अलावा एगो बेटा, अऊर एगो बेटी रहे, हालत पूछी मत, पाणेजी से तनी ज्यादा ही खराब, फिर भी आपसी मेलजोल पूरा रहे|
पण्डित जी कथा मे से जवन भी ले के आवस, दुनु घर के लईका-बड मिल-बाट के खाव लोग, जब भी भगेलुआ के धोती फाट जाव, पुछेके के ना रहे, पाणेजी के ईहा से काम चल जाव| पंडिताइन खातिर भी लवना -लकड़ी, अऊर कवनो भी सेवा होखे त, कहे के ना रहे, झुनिया सब सम्हार लेव|
अब ,आयी, बाज़ारे चलल जाव, दीना पाणे, अऊर भगेलू राम चल दिहल लोग |
बाजार थोड़ा दूर (1 कोस) रहे, आपन दुख-सुख बतियावत, दुनु जाना पहुंच गईल लो, कुल तरकारी, जीरा-धनिया, निमक सब लिया गईल| अब आवे के बेरा हो गईल,
” ए बाबा, रुक जा, तनी हम मूड बनाके आवत बानी” ई कह के भगेलुआ, भठ्ठी मे घुस गईल,
काफी देर ले, ना निकलल त, दीना पाणे भी ,सोचले की का बात बा, तनी देखी, अऊर भठ्ठी के अंदर घुस गईले, त देखतारे की, चार गो अऊर आदमी के साथे, भगेलुआ, पाऊच पी रहल बा, अऊर बेसुध हो गईल बा|
“भगेलुआ, चल रे, ते ससुरा मनबे ना, सब पी के खतम क देबे, चल अब” दीना पाणे कहले ,
” तू जा, बाबा, हम आ जाइब” भगेलुआ कहलस,
“चलबे की ना, की कुछ खोजत बाड़े, तोर बाकी बा, तवन सब पूरा क देब, ससुरा ” दीना पाणे कहले,
” ई, कौन ह, रे…., भगेलुआ, मार त, सारे के, बड़का गेयान, देबे आईल बा, एकर नोकर हई सन का? ” भगेलुआ के साथ मे जवन, पियत रहे तवन बोललस|
” रे, कम बोल रे, तोहनि के नासा मे बाड सन, कुछ बुझात, नईखे, अबे उठाइब, पैना सब नासा टूर देब “, दीना पाणे, कहले,
तबतक, पियत रहे, तावना मे से एगो उठ के, उनका उपर हाथ चला देहलस | नीचे गिर गईले पाणे, अऊर करोध मे उठ के , लगे ही रखल रहे कोइन से ओकरा के मारे खातिर, भजले तले भगेलुआ के लाग गईल अऊर ओकर कपार फाट गईल|
पाणेजी के त, उ दासा हो गईल ,जाइसे गो-हत्या क देहले बाड़े, लोग जुट गईल, भगेलुआ के उठा के अस्पताल ले गईल, पुलिस भी आ गईल , अऊर गाँव के मुखिया के चमचा भी | पीछे-पीछे पाणे भी गईले, अस्पताल, लेकिन तबतक सब उलटा हो ,चुकल रहे, पुलिस बयान लिख लेहले रहे, अऊर सार्वजनिक जगह पर गाली-गलौज कइल, अऊर मारपीट कइल खातिर पाणेजी पर हरिजन एक्ट लाग गईल |
पुलिस पाणेजी के पकड के थाना ले के चल गईल | ई बात, पूरा गाँव मे माटी के तेल खानी पसर गईल, भगेलुआ, पट्टी कराके, घर खातिर चल देहलस, लेकिन खाली पाणेजी के बारे मे सोचत रहे | हम त ,केस भी ना कइनी ह, बाबा, के सिपाही काहे ले गईले सन, झुनिया का, कही, पंडिताइन के का जवाब देब | गोड़ भारी लागे लागल, आगे बढ़े के मन ना करे , भगेलुआ के, लेकिन ,समय रुके ना देला, चलही के पड़ी, मन मे कई गो बिचार ले के , भगेलुआ चल देहलस घर के ओर |
ई खबर , जब पंडिताइन ,सुनलि,त उनका उपर त ,आसमान ही टूट गईल, करोध, अऊर लोर आख मे लेहले, भगेलुआ के घर के तरफ चल देहली | बात झुनिया के मालूम भइल, उ त भगेलुआ के फिकिर मे रहे, आ बाबा के भी , अऊर पंडिताइन के रूप मे आवेवाला तूफ़ान के भी | उहे भइल , तूफ़ान आ गईल|
“का रे झुनिया, कहा बा नातियाँ भगेलुआ, हमरा पंडी जी के सिपाही से पकड़ववाले बा, कहा बा मुअना, ओकरा के चूल्ही मे झोक दी ” पंडिताइन कहलि,
” का, गरियावत बाडू ए मतवा, हमरो उनकर त, कपार फूटल बा, का जाने कवना जनम के बैर साधले ह पंडि जी, अब ढेर मत गरियाव, गारी हमारो आवेला ” झुनिया कहलस,
अभी पंडिताइन ,कुछ जवाब देबे के सोचत रहली ,तले भगेलुआ घरे पहुंच गईल, झुनिया अऊर ओकर बेटी दऊर के लगे पहुंच गइली सन, पाजा मे पकड के झुनिया कहलस,
” केतना, हतयार बाड़े, बाबा, ताहार कपार फोर. देहले, बड़ी खून गिरल होइ, चल खटिया पर , हम पानी गरम करतानि सेंक दी ”
पंडिताइन चुपचाप देखे लगली, मन मे मोह आ गईल भगेलुआ खातिर, कुछ देर खातिर पाणेजी के भुला गइली,
” छोड़, रे झुनिया, हमरा ढेर चोट नईखे लागल, लेकिन बहुत भारी गलती हो , गईल रे, हम कुछ समझ ना पवनी ह, तले, मुखियावा के चमचवा , सिपाही के बोला के केस करवा देहले ह सन, हमरा से जबरजस्ती बयान भी दिलवा देहलेहसन, का जाने बाबा, के का होत होइ, उ त दोसरा पर लाठी चलऊअन, गलती से हमरा लाग गऊवे, बड़ा बड़हन पाप हो गईल रे झुनिया, अब हम का, करी, ” कह के भगेलुआ रोवे लागल |
तबतक आस-पड़ोस के अऊर लोग भी जमा हो गईल, पंडिताइन भी रोवे लगली, झुनिया भी | भीड़ मे से एगो आवाज आईल ,रामचनर काका के,
” आछा, अब त जवन होखे के रहल ह तवन हो गईल, चुप हो जा लोगिन, बिहान सबेरहीं, हमनी का सब केहू थाना मे जाइब, भगेलुआ, केस वापस लि, पण्डित छूट जईहे, ह पंडिताइन धीरज राख, रात भर के त बात बा, सब ठीक हो जाई”
एतना सुन के, बिना कुछ बोलले, रोअत पंडिताइन अपना घर के तरफ चल दिहली, सब लोग भी चल दिहल, अपना -अपना घरे, काहे की 12 बज गईल रहे रात के, सूते के टाइम हो गईल रहे, सभे जा के सूत भी गईल, बस चार गो परानी के आंख मे नींद ना रहे, चटाई पर लेटल भगेलुआ के साथे झुनिया, थाना मे पाणेजी, अऊर अपना घरे पंडिताइन|
लेखक: सुधीर पाण्डेय
ध्यान दीं: इ आलेख (हरिजन एक्ट) सुधीर पाण्डेय जी के फेसबुक से लिहल गइल बा।