का भईल जे सुने के खरी-खोटी देला
सहरवे हs जे पेट के रोजी-रोटी देला
जाके मिल में, तू लाख बुनs कपड़ा
ढके खातिर देह, खाली लंगोटी देला
मेहनतकस के नईखे कुछ हासिल इहाँ
जदि बेचs ईमान तs रक़म मोटी देला
चौउकाचउंध देख, हसरत जिन पालs
पसारे के पाँव चादर बहुत छोटी देला
इहाँ गरीबन के रोटी मिले भा ना मिले
अमीरन के कुकुरन के चांप-बोटी देला !
आसान नईखे इहाँ चैन के जिनगी “रोज़”
जिंदा रहे खातिर रोज नया कसौटी देला !!
-सरोज सिंह (आखर के फेसबुक पेज से)