जब भईया के ससुरारी भऊजी रहेली ओहघरी देवरलोग कवनो ना कवनो बहाने जाला। बाकी निगाह त भऊजी के कुंवार बहीन प रहेला। ई नाता भी तनी ना भरपूर रसगर होला। भऊजी के बहीन लोग के भी ई नीमने लागेला।एही भाव के उपर ई गीत-
दीदीया के देवरा
कतहीं जाईं कहीं लुकाई उ हमके पीठीअवले बा,
दीदीया के देवरा हमरे प ए सखी डीठ गड़वले बा।
मोका पावे तब चलि आवे, आवते रंग जमावेला,
हमरा माई के माईजी कहिके, छनभर में फुसीलावेला,
का का कहीं कईसे कहीं कि, उ का हमरा के बतलवले बा,
दीदीया के देवरा—————-डीठ गड़वले बा।
माई से कहि के ले गईल बजारे, बुलेट प बइठाई के,
मारे बीरेक उ अचके में , लेला मजा सटाई के,
पता ना कईसन कईसस टोना, हमरो मन सहकवले बा,
दीदीया के देवरा—————-डीठ गड़वले बा।
पीजा बरगर रोजे खीयावे, होटल में बइठाई के,
कालाकंद आ कालाजामुन, औडर से मंगवाघ के,
होटल में जाए के रोज, हमरा के आदत धरवले बा,
दीदीया के देवरा —————–डीठ गड़वले बा।
पावे अकेले धरे अंकवारी, धके गोदिया में सटावेला,
अंखिया में झांकत हमरा के, अजबे मन बहकावेला,
दीदीया के गोतीनी होइए जाईब, ईअईसन लत लगवले बा,
दीदीया के देवरा—————डीठ गड़वले बा।
(देवेन्द्र कुमार राय)
ग्राम +पो०-जमुआँव, पीरो , भोजपुर, बिहार