आई पढ़ल जाव अमरेन्द्र जी के लिखल एगो व्यंग विज्ञान, आधुनिकता आ साहित्य , पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा इ भोजपुरी व्यंग विज्ञान, आधुनिकता आ साहित्य कइसन लागल, रउवा सब से निहोरा बा पढ़ला के बाद शेयर जरूर करीं
ओ घरी हम बी•ए•सी•(गणित)के छात्र रहीं आ हाॅस्टल में रहत रहीं।ओतना त ना बाकी तनी-मनी साहित्य में भी रूचि राखत रहीं।सनिचर के राति खा खइला के बाद हमनी स संघतियन साथे हाॅस्टल के बहरी बगइचा में इंजोरिया के माजा लेवत रहीं जा।
आपस में चर्चा होत रहे।जवना के बिसय एगो लगले टटके छपल साहित्यिक किताब रहे।एही बीचे एगो संघतिया से ना रहाइल त ऊ एगो सवाल कइलसि,”आखिर ई साहित्य हउवे का?”
बगले में खाड़ा पीपर के फेंड़ के ओर से आवाज आईल,”साहित्य समाज के ऐनक ह।”हमनी स आगे पीछे देखनी,जँचनी स,बाकी ओहिजा केहू ना रहे।त आखिर ई आवाज आईल कहाँ से?भूत पिसाच के डर से हमनी स कपार प गोड़ धई के उहवाँ से नव दू एगारह हो गइनी सन।करीब डेढ़ घंटा के बाद हमनी सन फेरु ओहि जगहिया प जा के सवँचनी स बाकी ओहिजा किछु ना लऊकलि,ना भेंटाइल।
फिरु ऊ लइका उहे सवाल कइलसि कि साहित्य का ह?
अबकिओ बेरी ओह पीपर से उहे जबाब आइल कि साहित्य समाज के ऐनक ह।
तबे एगो दोसर छात्र सवाल कइलसि,”कविता का ह?”
ओने से आवाज आईल,”उँ •••ऽऽ।”
अतना कहके ऊ फेंड़ चुप हो गईल।अबकी बेरी पीछे से एगो तिसर लइका सवाल कइलसि,”काव्य का ह?”ओने से जबाब आईल,”वाक्यम् रसात्मकम् काव्यः।”
ई जबाब सुनि के त हमनी स के होशे उड़ि गईल।
एह बात के चरचा गते-गते पूरा युनिवर्सिटी में होखे लागल कि हाता में के दखिनवारा फेंड़ बतिआवत बाड़न सन।
फिजिक्स के आचार्य शर्मा जी,जवन कि विज्ञान के छाड़ि के दोसर कवनो बाति बिचार के अंधविश्वास समझत रहीं,उहों भिरी ई बाति चहुँपल।अब त कम्पस में बवाल हो गईल।
सभे के साथे शर्मा जी बगइचा में आ के दहड़लिं,बताव तऽ,”काव्य का ह?”
फिरु उहे साधल जबाब,”वाक्यम् रसात्मकम् काव्यः।”
शर्मा जी पितपिता के पूछनी कि आखिर तु हव के?
एह सवाल के कवनो जबाब ना आईल।
अगिला सवाल भोजपुरी वालु सर के रहे कि प्रगतिवाद का ह?
फेंड़ बोलल,एकरा के भाखा के नाया चोन्हा भा छाव समझ लीं।
त ई छायावाद का ह?
पीपरा ठठा के हँसलसि आ बोलल कि ई बड़ के निअम कायदा के खिलाफ छोट के ठानल राड़ भा बिद्रोह ह।
अतने में केहू पीछे से पूछल कि अछा ई बताव कि प्रयोगवाद का ह?
अबकी बेरी जबाब मिलल,”उँह•••• ऽऽ !”
संस्कृत के त्रिपाठी जी से ना रहाइल त उहों के आपन प्रश्न पूछनी,”अलंकारः किम्?”
पीपर के गाँछि उहें के भाखा में कहल क़,”तथाहि अचेतनं शवशरीरं कुंडलाद्युपेतमपि न भाति,अलंकार यस्य आभावात्लोचन।”
बाप रे बाप! ई का हो गईल।जरूर कवनो चमत्कार भा देबी के शक्ति के कमाल बा,त्रिपाठी जी अतने कहि के किछु मंत्र बुदबुदात बदहवासे उहां से भगनी।
बाकी शर्माजी अभिओ ई माने प तइआर ना रहीं कि पीपर जबाब देत बा।उहाँ के लगनी कहे कि सुन जा,हम एह पीपर के गाँछि के पिछिला पैंतीस साल से जादा से जानत बानी। हमार नाया नाया बहाली भईल रहे ओह घरी इहो बहुते छोटी मुकी रहे।हम ई बात मानिये ना सकीं।ठीक ओहि घरी प्रिंसीपल साहेब के साथे कमस्ट्री वालु चौधरी सर भी आ गइनी।उहाँ सभे भी ऊ सभ सवाल-जबाब कईनी जवन पहिले पूछाईल रहे।
अंत में चौधरी जी एगो सवाल कइनी,”दलित साहित्य का ह?”
पीपर कहलसि कि ई पूँजीवालु लो के मसखरी ह।सनसनी फैल गईल।बहुते बहस बिचार भईल।तब जाके चौधरी जी बतइनी कि हम त ओह घरी से इहवाँ बानी जब ई पीपर लगवाल जात रहे। आजु जहवाँ ई गंछिया लागल बा ओकरा ठीक पीछवे पहिले यूनवर्सिटी के छपखाना रहे।ओमे हर तरह के संस्कृति, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, भाखा आ अउरी कतने बिषयन के किताब,पत्र पत्रिका आ शोध पत्र छपात रहे।जवना के बहारन आ कचड़ा एहिजे फेकात रहे।हो सकेला कि ओह कागज स के बीच रसायनिक प्रतिक्रिया से रिसल रस एकर सोरि चूसले होखे आ ई विद्वान भ गईल होखे।अतने में एगो छात्र खट से पूछ देलसि कि सर त ई बोलत काहे बा?चौधरीजी कहनी,”आरे भाई! जब लाद में किताब भरल रही त दिमाग में त बुद्धि होइबे नु करी,आ तब लोग बक बक ना करिहें त का गुँगी सधिहें?”
तब तक हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डाॅ• मल्लिक जी कतहीं से घूमत घामत आ गईनी।आ आवते उहाँ के किछु सवाल दगनी।
हिन्दी के सबसे निमन रचना?
कामायनी।
आ सबसे निमन नाटककार?
भारतेन्दु।
आ फिरु उनुकरा बाद?
प्रसाद।
उनुका बाद?
उँऽऽऽ••••
प्रेमचन के बारे में किछु ?
गवँई जीवन के चतुर चितेरा।”
सूर और तुलसी में निक के?
सूर सूर्•••••तुलसी शशि•••••!
जी एच डगलस के रहे?
ऊँहूँऽऽऽ•••
मल्लिक जी बतइनि कि अब त ई साफ हो गईल कि ई पीपर के फेंड़ पुरान आ शास्त्रीय साहित्य के जानकार बा।एकर मतलब ई कि नवका जबाना के साहित्य,दर्शन भा भाखा के जानकारी एकरा नईखे।ना त ई सभ सवालन के उत्तर दीहित।एकर माने कि एकरा सोरि के आसपास जरूर पुरान जबाना के साहित्य होई जवना के रसपान क के ई आतना काबिल आ विद्वान भईल बा।
तइ भइल कि अगिला दिन वैज्ञानिक शर्मा जी के अगुवाई में नवका जबाना के सभ किताब स येह फेंड़ के जड़ में रखाई जवना से कि ई फेंड़ भी आजु के मोताबिक अपडेट हो जाव।
अगिला दिन भोरहिं सभ बिद्वान लो जुटलन।फेंड़ के जड़ के अगल बगल दु फीट गहिड़ खोदि के-नवका जबाना के सभ किताब शोध पत्र,पत्र-पत्रिका रखाईल।आ उपर से माटी आ खाद-पानी डाल दिहल गईल।दु तीन दिन के बाद हमनी स फिरु ओह फेड़ के पले गइनी स।जा के उहे सब सवाल कईनी सन।बाकी फेंड़ चुपी सधले रही गईल।हमनी स तिसरा,चउथा,पाँचवा•••••दिन गईनी स बाकी ऊ काहे के?
पीपर के गाँछि एको सब्द ना बोलल।
वैद जी के बोलावल गईल।उहाँ के देखते कहनी कि पुरनका जबाना के लोग से इ नवका जीनिस ना नु पची।एही से येह बुढ़ फेंड़ के मिजाज निमन नइखे आ ई किछु बता नइखे पावत।हमनी स रात में कुदारी लेके जड़ के आसपास धइल नवका जबाना के सभ किताब निकालल चहनी जा।कि जवना से कि एह पुरान धरोहर के आपन इयाद आ बोली दुनो फिरु से मिल जाव कि हमनी स सुन सकीं।
बाकी ई ना हो सकल आ पुरान पीपर उखड़ि के जमीन प फेका गईल।हमनी के बुझाईल कि जनले बेजनले में हमनी के आपन एगो पुरान धराऊँ विरासत के हत्या अपने हाथे क देले बानी जा। हमनी के वैज्ञानिक सोच आ नवका भौतिक दर्शन आजु हमनी के एगो साहित्यिक युग के लील गईल।
भगवान के इच्छा से जवन भईल ऊ ठीके भईल।भले हमनी स चेत गईनी,ना त आजु हमनी स ई वैज्ञानिक,भौतिक आ अनैतिक सोच के चलते न जाने कतने पुरान पुरान विरासत के हत्या क देले रहितीं।
अगिला दिन भोरहिं बगइचा में हमनी स एगो शोक सभा रखनी स।आ तइ कइनी स कि आजु से आधुनिकता के फेरा में चाहे वैज्ञानिक सोच के चक्कर में अब अपना कवनो पुरान फेंड़ के हमनी के जीआ के राखबि मरे ना देब।
अमरेन्द्र,आरा,(भोजपुर),बिहार।
रउवा खातिर:
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
जानवर के नाम भोजपुरी में
भोजपुरी में चिरई चुरुंग के नाम