फसल के कटाई के बाद चारो तरफ दूर-दूर तक नजर के रोक-थाम खातिर कुछो न लऊके | आपन नजर के जहाँ तक दौड़ाई उ दौडी , लेकिन ज्येष्ठ के तलफत दूपहर मे नईखे दौड़ सकत ! काहे की अगनी अस तमतमात घाम और ओकर असहाये ऊष्मा अखियन मे जलन पैदा कर देवे लाs !!||
अईसने दूपहर मे जहां ऐगो चिरई के भी अता-पता न चलत रहे | कबो-कबो गर्म हवा अपना मोजुदगी के ऐहसास दिला ज़ाए . मुनीया जोन अपना घर के दुवारी पर अपना गुडिया के सजावत-सवारत बिया ! अचके मे ओकर नजर केहु पर पड़ल और ऊ चिल्लाए लागल…
“मुनीया-: “पगली”,, माई पगली आईल बिया ,, “”माई रे “”पगली “” आईल बिया ||
मईल-कुचइल कपडा,बाल बिखरल हाथ मे मोटरी लेले जोन बदबुदार और देखे मे भदा बा! खुद अपने-आप से बात करत एगो औरत मुनीया के पास आ के बईठ गईल रहे ओर मुनीया से बोललस…
इहो पढ़ीं: विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा आश
“”पगली”: ई गुडिया हमार ह ई हम के देदs |
मुनीया फिर चिलाईल “” “माई आव न” ना त ई पगली हमार गुडिया छिन लीs |
हाथ मे दुगो रोटी और ओपे आम के अचार रख के मुनीया के माई “गिरजा” लेके आवतिया और पगली के देत बिया ||
गिरजा” ल “सिन्धु” हई रोटी खा ल और मुनीया के खेले दs |
उ पगली के नाम ही सिन्धु ह . सायद गिरजा ओकरा के जनत बाड़ी ! सिन्धु रोटी लेके तलफत घाम मे मुनीया और गिरजा के आँख से ओझल हो जात बिया | फिर मुनीया अपना माई से पुछत बिया!!
मुनीया” माई ई पगली के तु नाम कईसे जानतारू, ई पगली के ह माई “”..
गिरजा”” मुनी’ ई पगली न ई सिन्धु हई. इहो बहुत खुसहाल, मन मोजी और हमनी अस हसत बोलत रहली “”,?
‘मुनीया” फिर का भ्ईल माई इ काहे अईसन हो गईली . बताव न माई , बताव न “”..
‘गिरजा”- बेटी इ अईसन प्रमपरा और समाज के रिती-रिवाज बा की का बताई • भगवान अगर गरीब के बेटी देस त धन और दौलत भी देस ओकरा के |
सिन्धु के बाबू बहुत गरीब रहले और उनकर गरीबी के ई नतिजा आज सिन्धु के भोगे के पड़ताs ,,.. ओकर बाबू ओकर बिहाअ अपना हेसियत से ऊपर ही घर मे कईले. लेकिन ऊ सब बहुत लोभी रहे! ओर सिन्धु के हर तरह से तंग करे लोग, लेकिन सिन्धु सब कुछ अपना अन्दर दबा के खुश ही रहत रहे ! कुछ समय बाद ऊ माँ बने वाला रहे ,, एक दिन ओकर पिडा बढ़ल और ऊ अराम करत रहे लेकिन ओकरा सास से देखल न गईल ! ओर ओकर सास ओके आ के मारे-पिटे और गाली देवे लागल|
अचके मे सिन्धु के पेट मे चोट लागल और सिन्धु अचेत होके गिर गईल ! जब सिन्धु के होश आईल त ऊ होस्पिटल मे रहे ओर . और जब ओकरा पता चलल की ओकर बच्चा पेट मे ही दम तोर देले रहे! सिन्धु ई सदमा सह न पवली ! और ऊ आज ई दौड़ से गुजरत बारी ||||
मुनीया” माई आज के बाद हम उनकरा के पगली न कहेम |
गिरजा” ह बेटी केहु के भी जाने-अंजाने मे कुछो न कहें के चाही |
फिर दोसरे दिन दूपहर मे मुनीया गुडिया के सजावत-सवारत रहे और सिन्धु “”पगली”” ओकरा पास मे बैठ के रोटी-अचार खात रहे ||||