माई के तेयाग तपस्या होला ओकरा के लिखल समझल भा बुझल बढ़ा भरी काम हा। ना जानी केतना किताब पर किताब लिखाइल होई। नव महीना भरभ के जवान पीरा के सहेल ली आ बाल बह्वान के पोसे पाले में जवान दुःख सहे ली उ काव्नाओ माइये के बस के बात बा काहे कि उनकर हिया परबत होला आ विचार गंगा।
राम दुलारी ओहि में के एगो मेहरारू रहली। पहिलउठी के लइका भईल आ तानिए दिन के बाद उनकर मर्द ऐ दुनिया से चल बसले। बिपत के पढद टूट ग ससुराल के खोबसन अइसन कि डूब के मर हाल हो गईल। बाकि मोदी के लइका के मुंह देख के सबुर करके जियते रहली। कहल बा कि विपत आवेला त चारु और से हहास पताल बांधले आवेला। राम दुलारी के जिनगी में बिपत एहि तरीके से रहे। उनके जिनिगी में रोजे आमावस रहे अपने त भूखे दुखे रहे के दिन काट लेस बाकिर भूख के लईकवा रोए त इनके कलेजा फाटे लागे।
तीन दिन उपासे कईसहूँ काट लेनी बाकर अब छाती में दूधो ना रहे जे बचवा पिए। गिरले परले हरिहरके दूअरा गईली आ चिल्लाय लागली हे मालिक ! तानी एक कटोरी भात देती जे बचवा के खिलाउती, उनका बोली में जवान पीरा आ करुणा रहे उ केहु के करेजा पिघला देवेवाला रहे। बाकिर हरिहर बड़ा कांईया आउर लालची राहेल ऊपर से बड़ा नीच विचार के रहले। उ झप से बाहिर निकललें त सबसे पाहिले उनकर आँख रामदुलारी के छाती पर गईल जवना के खिंच के बचवा अपना जिनिगी के बचावे में लागल रहे। लालची और ओ गिद्ध के फेटल लुगा के बिच में लउकत देहि पर नजर गड़ल रहे। हरिहर बोललें एह तारे काहे रोवत बादु तोहरा लइकवा के एक कटोरी भट का दू कटोरी भात मिली। बाकिर तानी तोहरा हाम्रो पर आपन मेहरबानी देखाए के पड़ी। राम दुलारी के तरवा टेल के जमीन हिल लागल। एक ओरिया बचवा के परान बचावे के फिकिर दोसरा ओरिया आपन इज्जत बचावे के एहि उधेड़बुन में उ धरती प धड़ाम से गिर गइली आ हरिहर के दिहल एक कटोरी भात छितरा गईल।
लेखक़ परिचय:-
नाम: डा. गोरख प्रसाद मस्ताना
जनम स्थान: बेतिया, बिहार
जनम दिन: 1 फरवरी 1954
शिक्षा: एम ए (त्रय), पी एच डी
किताब: जिनगी पहाड़ हो गईल (काव्य संग्रह), एकलव्य (खण्ड काव्य),
लगाव (लघुकथा संग्रह) औरी अंजुरी में अंजोर (गीत संग्रह)